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Puri Jagannath Rath Yatra 2022: विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए प्रतिवर्ष किया जाता है रथों का निर्माण, जानें इससे जुड़े रोचक तथ्‍य

विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा विश्व मैत्री शांति भाईचारे सद्भाव तथा एकता के प्रतीक है। रथनिर्माण विशेषज्ञों का यह मानना है कि तीनों रथ बलभद्रजी का रथ तालध्वज रथ सुभद्राजी का रथ देवदलन रथ तथा भगवान जगन्नाथ के रथ नंदिघोष रथ का निर्माण पूरी तरह से शास्त्रसम्मत तथा वैज्ञानिक तरीके से होता है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Thu, 30 Jun 2022 03:02 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2022 03:02 PM (IST)
Puri Jagannath Rath Yatra 2022: विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए प्रतिवर्ष किया जाता है रथों का निर्माण, जानें इससे जुड़े रोचक तथ्‍य
भगन्नाथ भगवान की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का एक अवलोकन

भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। भारत के अन्यतम धाम पुरी (ओडिशा) में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा आगामी पहली जुलाई को है। जिस जगत के नाथ को उनके भक्त महाप्रभु, महाबाहु, कालिया, जागा, नीलमाधव, जगदीश, लोकेश्वर और पतितपावन आदि के नाम से पुकारते हैं, वे सर्वधर्म समन्वय के प्रतीक हैं। वे अपने विग्रह रुप में वैष्णव, शैव, साक्त, सौर, गाणपत्य, बौद्ध और जैन रुप में पूजित होते हैं। उनकी विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा विश्व मैत्री, शांति, भाईचारे, सद्भाव तथा एकता के प्रतीक हैं। जगन्नाथ जी कलियुग के एकमात्र पूर्ण दारुब्रह्म हैं।

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प्रतिवर्ष आषाढ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथ भगवान की रथयात्रा अनुष्ठित होती है जो एक सांस्कृतिक महोत्सव होता है, आध्यात्मिक समावेश होता है। पतितपावन महोत्सव होता है। जनता-जनार्दन से मिलने का अलौकिक अवसर होता है। रथयात्रा को दशावतार यात्रा कहते हैं। गुण्डीचा यात्रा कहते हैं। जनकपुरी यात्रा कहते हैं। घोषयात्रा कहते हैं। पतितपावनी यात्रा कहते हैं। दशावतार यात्रा कहते हैं। नव दिवसीय यात्रा कहते हैं।

भगवान जगन्नाथजी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए प्रति वर्ष तीन नये रथों का निर्माण होता है और पुराने रथों को तोड़ दिया जाता है। ये तीनों ही रथ रथयात्रा के दिन बडदाण्ड पर चलते-फिरते मंदिर के रुप में नजर आते हैं।

रथ-निर्माण की अत्यंत गौरवशाली सुदीर्घ परम्परा है। इस पवित्र कार्य को वंशानुक्रम से सुनिश्चित बढईगण ही करते हैं। यह कार्य पूर्णतः शास्त्रसम्मत विधि से संपन्न होता है। रथनिर्माण विशेषज्ञों का यह मानना है कि तीनों रथ, बलभद्रजी का रथ तालध्वज रथ, सुभद्राजी का रथ देवदलन रथ तथा भगवान जगन्नाथ के रथ नंदिघोष रथ का निर्माण पूरी तरह से शास्त्रसम्मत तथा वैज्ञानिक तरीके से होता है। रथ-निर्माण में कुल लगभग 205 प्रकार के अलग-अलग सेवायतगण सहयोग करते हैं।

प्रतिवर्ष वसंतपंचमी के दिन से रथनिर्माण के लिए काष्ठसंग्रह का पवित्र कार्य आरंभ होता है। जिस प्रकार पंचतत्वों से मानव-शरीर का निर्माण हुआ है ठीक उसी प्रकार काष्ठ,धातु, रंग, परिधान तथा सजावट आदि की सामग्रियों से रथों का पूर्णरुपेण निर्माण होता है। पौराणिक मान्यता के आधार पर रथ-यात्रा के क्रम में रथ मानव-शरीर होता है। रथि मानव-आत्मा होती है। सारथि-बुद्धि होती है।लगाम-मानव-मन होता है तथा रथ के घोडे मानव-इंद्रियां होती हैं।

पुरी के 145वें शंकराचार्य जगतगुरु परमपाद स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती महाभाग गोवर्द्धन मठ से अपने परिकरों के साथ आकर रथों का अवलोकन करेंगे तथा अपना आत्मनिवेदन करेंगे। पुरी के गजपति महाराजा तथा भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक श्री दिव्यसिंहदेवजी महाराजा अपने राजमहल श्रीनअर से पालकी में सवार होकर आएंगे तथा तीनों रथों पर छेरापंहरा का पवित्र दायित्व निभाएंगे। उसके उपरांत आरंभ होगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा। ऐसी मान्यता है कि रथयात्रा के पावन अवसर पर रथारुढ भगवान जगन्नाथ के दर्शन मात्र से मोक्ष मिल जाता है।

रथों का विवरण: 

तालध्वज रथ

यह रथ बलभद्रजी का रथ है जिसे बहलध्वज भी कहते हैं। यह 44 फीट ऊंचा होता है। इसमें 14चक्के लगे होते हैं। इसके निर्माण में कुल 763 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इस रथ पर लगे पताकों को नाम उन्नानी है। इस रथ पर लगे नये परिधान के रुप में लाल-हरा होता है। इसके घोडों का नामः तीव्र, घोर, दीर्घाश्रम और स्वर्णनाभ हैं। घोडों का रंग काला होता है। रथ के रस्से का नाम बासुकी है।रथ के पार्श्व देव-देवतागण के रुप में गणेश, कार्तिकेय, सर्वमंगला, प्रलंबरी, हलयुध, मृत्युंजय, नतंभरा, मुक्तेश्वर तथा शेषदेव हैं। रथ के सारथि मातली तथा रक्षक वासुदेव हैं।

देवदलन रथ

यह रथ सुभद्राजी का है जो 43 फीट ऊंचा होता है। इसे देवदलन तथा दर्पदलन भी कहा जाता है। इसमें कुल 593 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। इसपर लगे नये परिधान का रंग लाल-काला होता है। इसमें 12चक्के होते हैं। रथ के सारथी का नाम अर्जुन है। रक्षक जयदुर्गा हैं। रथ पर लगे पताके का नाम नदंबिका है। रथ के चार घोड़े हैं- रुचिका, मोचिका, जीत तथा अपराजिता। घोड़ों का रंग भूरा है। रथ में उपयोग में आने वाले रस्से का नाम स्वर्णचूड है। रथ के पार्श्व देव-देवियां हैः चण्डी, चमुण्डी, उग्रतारा, शुलीदुर्गा, वराही, श्यामकाली, मंगला और विमला हैं।

नंदी घोष रथ

यह रथ भगवान जगन्नाथ जी का है जिसकी ऊंचाई 45फीट होता है। इसमें 16चक्के होते हैं। इसके निर्माण में कुल 832 काष्ठ खण्डों का प्रयोग होता है। रथ पर लगे नये परिधानों का रंग लाल-पीला होता है। इस पर लगे पताके का नाम त्रैलोक्यमोहिनी है। इसके सारथि दारुक तथा रक्षक गरुण हैं। इसके चार घोड़े हैं- शंख, बलाहक, सुश्वेत तथा हरिदाश्व।इस रथ में लगे रस्से का नामः शंखचूड है। रथ के पार्श्व देव-देवियां है। वराह, गोवर्धन, कृष्ण, गोपीकृष्ण, नरसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान तथा रुद्र।


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