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श्रीजगन्नाथ धर्म, संस्कार पद्धति को बचाकर रखने की जरूरत : सिंघारी

श्री जगन्नाथ महाप्रभु के अंगलागी सेवक गौरीशंकर सिघारी ने श्रीजगन्नाथ धर्म संस्कार पद्धति को बचाए रखने की जरूरत पर जोर दिया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Mar 2019 09:59 PM (IST)Updated: Sat, 09 Mar 2019 09:59 PM (IST)
श्रीजगन्नाथ धर्म, संस्कार पद्धति को बचाकर रखने की जरूरत : सिंघारी
श्रीजगन्नाथ धर्म, संस्कार पद्धति को बचाकर रखने की जरूरत : सिंघारी

जेएनएन, पुरी : श्री जगन्नाथ महाप्रभु के अंगलागी सेवक गौरीशंकर सिघारी ने श्रीजगन्नाथ धर्म, संस्कार पद्धति को बचाकर रखने की जरूरत पर जोर दिया है। पत्रकारों से बातचीत में सिंघारी ने कहा श्री जगन्नाथ महाप्रभु की विलुप्त सेवा को पुनरुद्धार करने की जरूरत है और इस सेवा को भक्तों को लाभ दिलाने के लिए उन्होंने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल की है। श्रीजगन्नाथ जी का क्षेत्र पाप को पराक्षित (प्रायश्चित) का क्षेत्र है। भक्त शरीर को पवित्र करने के लिए समुद्र में स्नान करते हैं एवं आत्मा की पवित्रता के लिए श्रीमंदिर में प्रार्थना करते हैं। हिदुओं के इस दो कर्म को श्री जगन्नाथ के क्षेत्र में बचाए रखने की आज जरूरत है। समुद्र के किनारे धर्म की रक्षा के लिए सेवक जो सेवा कर रहे हैं और श्रीमंदिर में अन्नदान के लिए जो सेवा सेवकों के द्वारा की जा रही है, इसे बचाना हमारा धर्म है। भारत के चारों धाम में से श्री जगन्नाथ धाम भगवान का भोजन स्थल है। इसीलिए भक्त अन्नदान करने के लिए हर दिन आते हैं। हमारी वंशानुक्रमिक सेवा को बचाकर रखने के लिए भक्त हुंडी में दान न कर जो ब्राह्माण मंदिर में पूजा करते हैं, उनको दान करना ठीक रहेगा। भारतीय संविधान के 26(क) धारा के अनुसार धाíमक स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए चार द्वार के जरिए दर्शन करने की व्यवस्था होनी चाहिए।

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