रत्न भण्डार जांच को लेकर श्रीमंदिर प्रशासन ने हाईकोर्ट में दाखिल की रिपोर्ट
मंदिर प्रशासन उस हलफनामा में स्पष्ट करेगा कि कब जगमोहन को खोला जाएगा एवं आम लोगों के दर्शन के लिए बहाल कर दिया जाएगा।
कटक, जेएनएन। पुरी श्रीमंदिर जगमोहन मरम्मत मामले की सुनवाई गुरुवार को ओडि़शा हाईकोर्ट में हुई। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के पूर्व निर्देश के मुताबिक श्रीमंदिर प्रशासन की ओर से हलफनामा दाखिल किया गया। जगमोहन को 25 जुलाई 2018 से पहले नहीं खोला जा सकता है। महाप्रभु की कुछ पूजा नीतियों के चलते 25 जुलाई से पहले इसे न खोलने के लिए मोहलत देने की बात को हलफनामा में दर्शाया गया था। इस पर असंतोष प्रकट करते हुए कोर्ट ने आगामी 10 अप्रैल को मंदिर प्रशासन को फिर से हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
मंदिर प्रशासन उस हलफनामा में स्पष्ट करेगा कि कब जगमोहन को खोला जाएगा एवं आम लोगों के दर्शन के लिए बहाल कर दिया जाएगा। जगमोहन मरम्मत को लेकर आर्किलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया (एएसआई) की ओर से पहले से दिए गए हलफनामा में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया था कि श्रीमंदिर के जगमोहन की मरम्मत 6 मार्च 2018 के अन्दर हो चुकी है। इसे 31 मार्च 2018 के अन्दर खोल देना चाहिए। अभी तक मंदिर प्रशासन की तरफ से श्रीमंदिर के जगमोहन को खोले जाने को लेकर कोई स्पष्ट तिथि के बारे में कोर्ट को अवगत नहीं कराया गया है।
उसी तरह आज की सुनवाई के दौरान मंदिर प्रशासन ने रत्न भण्डार खोले जाने को लेकर सील लिफाफा में एक रिपोर्ट भी अदालत को दी है। इस रिपोर्ट में क्या उल्लेख किया गया है, वह जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। सुनवाई के दौरान कोर्ट द्वारा पूछे जाने वाले सवाल का जवाब देते हुए आमिकस क्यूरी एन.के.महांती ने अदालत को दर्शाया है कि रत्न भण्डार के कुछ जगहों पर टूटा-फूटा नजर आया है, जिसके मरम्मत की आवश्यकता है। बाद में उसकी मरम्मत करने से भी चलेगा। यह जानकारी मीडिया को आवेदनकारी के वकील अशोक कुमार महापात्र ने दी है।
गौरतलब है कि पुरी श्रीमंदिर जगमोहन मरम्मत को लेकर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिकसामाजिक कार्यकर्ता अभिषेक दास ने दायर की है। उन्होंने श्रीमंदिर जगमोहन की हालत खराब होने हेतु उसकी मरम्मत जल्द किए जाने की बात अपनी याचिका में दर्शाया है। इसकी सुनवाई कर हाईकोर्ट ने जगमोहन के मरम्मत करने को एएसआई को निर्देश दिया है। इसमें सहयोग करने के लिए श्रीमंदिर प्रशासन एवं राज्य सरकार को भी हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है।