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दान-दक्षिणा मामले में दईतापति नियोग में अलग-अलग राय

सर्वोच्च न्यायलय के निर्देश के बाद श्रीमंदिर प्रशासन ने जब सेवायतों को दान न लेन

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 Jun 2018 04:51 PM (IST)Updated: Mon, 11 Jun 2018 04:51 PM (IST)
दान-दक्षिणा मामले में दईतापति नियोग में अलग-अलग राय
दान-दक्षिणा मामले में दईतापति नियोग में अलग-अलग राय

संवादसूत्र, पुरी : सर्वोच्च न्यायलय के निर्देश के बाद श्रीमंदिर प्रशासन ने जब सेवायतों को दान न लेने की हिदायत देते हुए नोटिस जारी किया तो कई सेवायत इसके विरोध में उठ खड़े हुए। कुछ सेवायतों ने तर्क दिया है कि श्रीमंदिर स्वत्वलिपि के अनुसार दान दक्षिणा लेने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता है। खासकर दईता सेवायत गुट इस नोटिस को लेकर विरोध-प्रदर्शन कर रहा है। इसमें भी सेवायतों में मतभेद सामने आया है। दईतापति विश्वाबसु विनायक दास महापात्र ने कहा कि स्नान पूर्णिमा से लेकर नीलाद्री बिजे तक दईतापति सेवकों को पहले की तरह दान-दक्षिणा लेने का अधिकार है और इस अधिकार को कोई छीन नहीं सकता है। यह उनके पेट का सवाल है, इसे वे लोग कैसे छोड़ सकते हैं। जबकि दईता सेवक रामकृष्ण दास महापात्र का कहना है कि महाप्रभु जगन्नाथ की सेवा करना उनका मकसद है और वे सेवा करेंगे, इसके लिए उन्हें दान दक्षिणा मिले या न मिले, कोई फर्क नहीं पड़ता।

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उल्लेखनीय है कि स्नान पूर्णिमा से लेकर रथयात्रा के उपरांत महाप्रभु के श्रीमंदिर लौटने तक दईतापति सेवायतो की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इस दौरान महाप्रभु को आने वाले चढ़ावे पर उनका अधिकार है, ऐसा उनका मानना है। लेकिन इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर विचार करते हुए अदालत ने निर्देश दिया है कि महाप्रभु को मिलने वाले दान- दक्षिणा को प्रशासन के जिम्मे दिया जाना जरूरी है। इसे लेकर सेवायत गुट नाराज हैं, कुछ का तो आरोप है कि रत्न भंडार चाबी गुम होने के प्रसंग से लोगों का ध्यान हटाने के लिए दान-दक्षिणा का मुद्दा उठाया जा रहा है।


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