क्या है रथयात्रा के संदर्भ में पौराणिक कथा
नौ दिनों की रथ यात्रा के बाद दशमी के दिन रथों की वापसी होती है। एकादशी को विग्रहों का श्रंृगार, द्वादशी को मंदिर में तीनों विग्रहों का पुन: प्रवेश होता है।
जेएनएन। अपूर्ण होने के बावजूद लोग जगन्नाथ जी की मूर्ति को पूजते हैं। यह संकेत है कि कोई भी व्यक्ति अपूर्ण नहीं होता। हमें अपनी कमी का रोना रोने के बजाय उस कमी को अपनी शक्ति बना लेना चाहिए। जगन्नाथ रथ-यात्रा पर विशेष..
जगन्नाथ जी को श्रीकृष्ण का अवतार माना गया है। उनका पावन धाम उड़ीसा में जगन्नाथपुरी है। इसे प्रमुख चार धामों में से एक माना गया है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को यहां जगन्नाथ जी, बलराम जी और सुभद्रा जी की रथ यात्रा निकाली जाती है।
रथयात्रा के संदर्भ में पौराणिक कथा है कि एक बार सुभद्रा जी ने नगर देखने की इच्छा व्यक्त की। अपनी बहन को नगर भ्रमण करवाने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण और बलराम जी अपने-अपने रथों पर बैठकर नगर भ्रमण के लिए चल पड़े। देवर्षि नारद ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की, हे सर्वेश्वर, आप तीनों इसी रूप में विराजमान हों। श्रीकृष्ण ने कहा कि कलियुग में दारुविग्रह (काष्ठ) में इसी रूप में हम तीनों स्थित होंगे। इसी घटना की स्मृति में प्रत्येक आषाढ़ शुक्ल द्वितीया के दिन रथयात्रा महोत्सव मनाया जाता है। इस रथ-यात्रा में जगन्नाथ जी अपने मंदिर से भाई बलराम और बहन सुभद्राजी के साथ अलग-अलग रथों पर बैठकर गुंडीचा मंदिर जाते हैं, जहां उनके श्रीविग्रह की रचना हुई थी। महोत्सव की अवधि (आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से दशमी तक) नौ दिनों की है।
यह विग्रह अधूरा है। कथा के अनुसार, उत्कल प्रदेश के राजा इंद्रद्युम्न ने देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा जी से काष्ठ की प्रतिमा बनवाई थी, लेकिन विश्वकर्मा जी ने शर्त पूरी न होने पर उसे बीच में ही छोड़ दिया था। इससे राजा दुखी हो गया, किंतु श्रीकृष्ण ने उनसे कहा, 'आप दुखी मत हों, हम इसी रूप में पृथ्वी पर रहना चाहते हैं'।
जिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत में जीवन-दर्शन की सीख दी थी, उनका इस रूप में आने का निश्चित ही कोई प्रयोजन रहा होगा। संभवत: इसके पीछे यह सोच रही होगी कि कोई भी अपनी शारीरिक अक्षमता या कमी के बारे में सोचकर यह न समझे कि मैं कोई कार्य करूंगा तो असफल हो जाऊंगा। भगवान का यह रूप यह दिलासा देता है कि हमारे भीतर निश्चित रूप से कमियां होती हैं, लेकिन यदि उन्हें सही दिशा दे दी जाए, तो वही कमियां हमारी ताकत बन जाती हैं और लोग हमारा आदर-सम्मान करने लगते हैं। नौ दिनों की रथ यात्रा के बाद दशमी के दिन रथों की वापसी होती है। एकादशी को विग्रहों का श्रंृगार, द्वादशी को मंदिर में तीनों विग्रहों का पुन: प्रवेश होता है।