कब तक समाज के दबाव में रहेगी लड़कियां
हमारे देश में समय के अनुसार महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया है। महिलाओं एवं लड़कियों के
हमारे देश में समय के अनुसार महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया है। महिलाओं एवं लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदलने लगी है। हमारे समाज में बिगड़ते हालातों को देखते हुए महान नेताओं और समाज सुधारकों ने इस दिशा में काम करने की ठानी है। प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति ठीक थी। मध्यकालीन युग तक आते-आते उनकी दशा बेहद खराब हो गई। हमारा देश आजाद हो गया। आज हम आधुनिक तरीके से जी रहे हैं। किंतु महिलाओं की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है।
हमारे समाज में सम्मान के लिए लड़ने का अधिकार। अपने सोच को सबके समक्ष रखने का अधिकार। इसी प्रकार के कई अधिकार सरकार की ओर से दिया गया है। इन अधिकारों के बावजूद हमारा देश-हमारा शहर, स्थानीय क्षेत्र की महिलाएं असुरक्षित जीवन यापन कर रही हैं। महिलाएं देर रात तक घर से बाहर सुरक्षित नहीं रह पाती हैं। हमारे शहर में अधिकारों की बात करें तो लोग बेटे और बेटियां दोनों को एक नजर से देखते हैं। परंतु ये समाज उन्हें स्वीकार करने से हिचकता है। उन्हें असुरक्षा की भावना से देखा जाता हैं। लोगों को लगता है कि लड़कियों को लड़को जैसा रखना नामुमकिन है। अगर लड़की घर से बाहर पढ़ाई के लिए जाती है या फिर नौकरी करने के लिए तो हजारों किस्म के सवाल उनके सामने रखे जाते हैं। ऐसा इसलिए कि आए दिन ऐसी घटनाएं हो रही हैं जिससे लोग चकित हो जाते हैं। ऐसा कब तक चलता रहेगा हमारे समाज में ? हमारा समाज कब महिलाओं को सुरक्षा दे पाएगा? यह समझ में नहीं आ रहा है। महिलाओं को हर वक्त डर बना रहता है। चाहे वो स्कूल, कॉलेज जाएं या दफ्तरों में या कंपनियों में। सरकार द्वारा लड़कियों की सुरक्षा हेतु तमाम उपाय किया गया है। कोर्ट कचहरी भी सख्त हुए हैं। वाबजूद इसके व्यवस्था पुख्ता नजर नहीं आ रही है। हमारे शहर में आये दिन ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं, जिससे दिल दहल जाता है। महिलाओं से छेड़खानी आम बात हो गई है। आखिर समाज कब तक यह सब देखता रहेगा। महिलाओं को स्वच्छ समाज की जरूरत है। उन्हें आत्मनिर्भर बनना होगा। ताकि हर क्षेत्र में खुद फैसला ले सकें। महिलाओं को इस बारे में सोचना चाहिए। परिवार में कुछ ऐसा भी देखा जाता है कि जब कोई लड़की बदमाशों के दुराचार की शिकार होती है तो घर वाले लड़की पर कलंक और बदनामी थोप देते हैं। ताना के डर से लड़की को जलाकर मार देते हैं या फिर उसे अपने स्थान और शहर से दूर कर देते हैं। ताना मारने में या खिल्ली उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। जिसके कारण लड़कियां परिवार वालों से तंग आकर कुछ गलत कदम उठा लेती हैं। अपनी जिंदगी को समाप्त कर लेती है। आज भी कई लड़कियां ऐसे अत्याचार की शिकार हो रही हैं। इसका कारण महिलाओं का अशिक्षित और अनपढ़ होना है। ऐसे माता-पिता जो अपनी इज्जत को बेटियों की खुशी से ज्यादा मायने रखते हैं, वो अपनी बेटियों से हाथ धो बैठते हैं। आखिर क्यों समाज के चलते अपने बेटियों की खुशी को दबा कर रखते हैं। क्यों उन्हें आगे नहीं बढ़ने देना चाहते हैं। वह इसलिए कि वो अगर घर से बाहर निकले तो मोहल्ले वाले समाज के लोग उसका मजा उड़ाएंगे। हमारे शहर में देखा जाए तो सौ में से 15 प्रतिशत महिलाएं आज के दिनों में गलत कार्य कर रही हैं। जो विवाहित होने के बावजूद अन्य पुरुषों के साथ गुलछर्रे उड़ाती हैं। आये दिन खबरों में किसी न किसी महिला के बारे में सुनने को मिलता है। ऐसी महिलाएं जिसके बच्चे भी होते है। जो अपने खुद के पति के बारे में भी नहीं सोचतीं। ऐसे में कानून को सशक्त किया जाना चाहिए। आज उनके बारे में या उनकी इज्जत के बारे में शहर वासियों को सोचना चाहिए। हमारे शहर में महिला थाना और कई प्रकार के सेंटर खोले गए हैं। जब तक पुरुषों को महिलाओं पर या लड़कियों पर कुदृष्टि डालने से पहले अपने घर की बहन-बेटियों की याद ना आ जाए, समाज नहीं बदल सकता। ऐसा तब होगा जब परिवार और शिक्षकों द्वारा उसे संस्कार दिया जाए।