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संकट में जिले की लघु वन्यजात सामग्री

झारसुगुड़ा जिले में सबसे कम जंगल है। वही बचे जंगल भी अब नष्ट होने लगे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है अवैध रूप से बड़े पैमाने में जंगलों की कटाई। इस प्रकार कि परिस्थिति में जंगल विभाग कि आश्चर्यजनक चुप्पी पर्यावरण प्रेमियों को निराश कर रही है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 26 Apr 2021 07:47 PM (IST)Updated: Mon, 26 Apr 2021 07:47 PM (IST)
संकट में जिले की लघु वन्यजात सामग्री
संकट में जिले की लघु वन्यजात सामग्री

संसू, झारसुगुड़ा : झारसुगुड़ा जिले में सबसे कम जंगल है। वही बचे जंगल भी अब नष्ट होने लगे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है अवैध रूप से बड़े पैमाने में जंगलों की कटाई। इस प्रकार कि परिस्थिति में जंगल विभाग कि आश्चर्यजनक चुप्पी पर्यावरण प्रेमियों को निराश कर रही है। और इससे जिला का पर्यावरण भी नष्ट हो रहा है। जैविक विविधता भी नष्ट हो रही है। साथ ही जंगल पर निर्भर रह कर अपनी जीविका चलाने वाले जिले के गरीब आदिवासी अभी अपने सर में हाथ धर कर बैठे है। जंगल में लगातार हो रहे अत्याचार से वर्तमान में जिले के जंगलों में उत्पादित लघु वन्यजात सामग्री भी संकट में आ गई है। जिले में लगातार बढ़ते शिल्पायान व इसके प्रभाव से धीरे धीरे जंगल खत्म हो रहे है। और जो कुछ जंगल बचे है। उसे लकड़ी माफिया काट कर खत्म कर रहे है। कुछ लोग गर्मी के दिन जंगल में आग लगा देते है। इन सभी से गरीब आदिवासी श्रेणी के लोगों की जीविका भी नष्ट हो रही है। जिला के कोलाबीरा, लैयकरा व लखनपुर ब्लाक में बहुत बड़ी संख्या में गरीब आदिवासी श्रेणी के लोग आज भी जंगल में होने वाले टोल, महुआ, आम, चार, खजुरी, केंदुपता, शालपता, दातकाठी, झाडु, वेणचेर व सुखी लकड़ी आदि संग्रह कर उसे बाजार में बेच कर अपना परिवार पालते है। मगर वर्तमान में विभिन्न कल कारखानों की जली हुई राख व रासायनिक कचरा जंगल के भीतर फेंकने व बार-बार आग लगा देने से मूल्यवान जंगल नष्ट हो जा रहे है। इसके प्रभाव से लघु वन्यजात द्रव्य व सामग्री मिलना भी कष्ट कर हो रहा है। इसका सीधा प्रभाव जिले के गरीब, दिहाड़ी मजदूर व सैकडों आदिवासी परिवार पर पड़ रहा है। इसी के साथ जिले की अर्थनीति पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। जंगल नष्ट होने से जंगल में रहने वाले जंगली जीव जंतू की संख्या भी लगातार कम हो रही है।

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