ओडिशा कैबिनेट में वंदे उत्कल जननी गीत को मिली राज्य गीत की मान्यता
Vande Utkal Janani Sangeet कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र के द्वारा रचित वंदे उत्कल जननी संगीत गान को 110 साल बाद ओडिशा कैबिनेट ने राज्य गीत की मान्यता दी है।
भुवनेश्वर, जागरण संवाददाता। ओडिशा कैबिनेट ने कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र के द्वारा रचित वंदे उत्कल जननी संगीत गान को 110 साल बाद राज्य गीत की मान्यता दी है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में रविवार को आयोजित कैबिनेट ने इस गीत को सरकारी मान्यता देने के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगा दी है। विधानसभा में विधिवत विधेयक आने के बाद यह गीत राज्य का सरकारी गीत बन जाएगा।
जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अध्यक्षता में वीडियो कान्फ्रेसिंग के जरिए आयोजित कैबिनेट बैठक में वंदे उत्कल जननी गीत को सरकारी मान्यता देने के लिए एक प्रस्ताव संस्कृति विभाग की तरफ से पेश किया गया। इस प्रस्ताव को कैबिनेट ने मात्र 7 मिनट के अन्दर ही पारित कर दिया।
यहां उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के आह्वान पर कोरोना योद्धाओं के सम्मान में पिछले 30 मई शाम साढ़े पांच बजे वंदे उत्कल जननी गान ओडिशा के साथ देश-विदेश में रहने वाले ओडिआ लोगों ने गाया था। इससे उत्साहित राज्य सरकार के ऊपर वंदे उत्कल जननी गीत को सरकारी गीत की मान्यता देने का दबाव भी बन गया था, जिस पर आज कैबिनेट ने अपनी मुहर लगा दी है। इस संदर्भ में मीडिया को जानकारी देते हुए संसदीय व्यापार मंत्री विक्रम केशरी आरूख ने कहा है कि मुख्यमंत्री की दृढ़ इच्छा शक्ति एवं प्रयास के कारण आज कांतकवि के कालजयी सृष्टि को राज्य संगीत की मान्यता देने का निर्णय कैबिनेट ने लिया है।
यहां उल्लेखनीय है कि वंदे उत्कल जननी गीत ओडिशा विधानसभा एवं सभी सरकारी कार्यक्रम में गाया जा रहा था मगर इसे सरकारी मान्यता नहीं दिए जाने से भाषा प्रेमी नाराज थे। कई बार इस गीत को सरकारी मान्यता देने की मांग भी उठी थी। राज्यवासियों की भावना को सम्मान देते हुए सरकार ने मार्च 2016 में इसके लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट जून 2018 में सरकार को दे दी थी।
गौरतलब है कि सन् 1910 में कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र के द्वारा रचित वंदे उत्कल जननी गीत को पहली बार सन् 1912 में बालेश्वर में आयोजित उत्कल सम्मेलन में गाया गया था। 1 अप्रैल 1936 को ओडिशा को स्वतंत्र राज्य की मान्यता मिली और इस समय भी इस गीत को गाया गया था। इसके बाद 1994 नवम्बर महीने में इस गीत को सरकारी गीत के रूप में उपयोग करने के लिए तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष युुधिष्ठिर दास ने सर्वदलीय कमेटी का गठन किया। 22 दिसम्बर 1994 से इस गीत को विधानसभा के प्रत्येक अधिवेशन के आरंभ एवं अंत में गाने का निर्णय लिया गया। सन् 2000 में विधानसभा अध्यक्ष शरत कर एवं 2006 में महेश्वर महांती के समय में भी इस गीत को सरकारी मान्यता देने की मांग विधानसभा में उठी थी।