Bahuda Rath Yatra 2020 : कड़ी सुरक्षा के बीच सम्पन्न हुई महाप्रभु श्रीजगन्नाथ जी की बाहुड़ा यात्रा
Bahuda Rath Yatra 2020 श्रीमंदिर के पास पहुंचे तीनों रथ वापसी यात्रा में भी भक्त शून्य रहा बड़दांड निर्धारित समय से 35 मिनट पहले ही शुरु हुई रथ खींचने की प्रक्रिया।
भुवनेश्वर/पुरी, जेएनएन। देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देश के तहत रथयात्रा की ही तरह बुधवार को शहर को शट डाउन कर बिना भक्तों के कड़ी सुरक्षा के बीच श्रीक्षेत्र धाम पुरी में महाप्रभु श्रीजगन्नाथ जी की बाहुड़ा यात्रा अर्थात वापसी यात्रा निकाली गई। हर साल की तरह इस साल भी मौसी के घर पर 9 दिनों तक लीलाखेला खत्म करने के बाद भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा को साथ लेकर महाप्रभु श्रीजगन्नाथ जी जन्म वेदी से रत्न वेदी को रवाना हुए। हालांकि हर साल महाप्रभु की वापसी यात्रा को देखने एवं रथ खींचने के लिए जहां 10 लाख से अधिक भक्तों का समागम होता था वहीं इस साल रथयात्रा की ही तरह प्रभु की वापसी यात्रा में भी बड़दांड (श्रीमंदिर से गुंडिचा मंदिर तक का मार्ग) भक्त शून्य रहा। भक्तों की जगह पर इस बार श्रीमंदिर के सेवक एवं पुलिस कर्मचारियों ने तीनों रथों को खींचा और रथारूढ़ श्री विग्रहों को गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर तक पहुंचाया।
जानकारी के मुताबिक सुबह के समय गुंडिचा मंदिर में 3 बजकर 50 मिनट पर मंगल आरती, 4 बजकर 5 मिनट पर मइलम, 4 बजकर 20 मिनट पर तड़पलागी, रोष होम, 4 बजकर 55 मिनट पर अवकाश नीति, 5 बजे से 5 बजकर 10 मिनट तक सूर्यपूजा एवं द्वारपाल पूजा नीति सम्पन्न की गई। इसके बाद 5 बजकर 15 मिनट पर भगवान का वेश करने के बाद 5 बजकर 45 से 6 बजकर 45 मिनट तक गोपाल बल्लभ भोग किया गया। 5 बजकर 50 मिनट से 6 बजकर 20 मिनट तक सुबह का भोग सम्पन्न किया गया। सुबह के समय भोग में केवल खिचड़ी भोग लगाया गया। 6 बजकर 25 मिनट से 7 बजकर 10 मिनट तक सेनापटा लागी किया गया है। 7 बजकर 40 मिनट पर मंगलार्पण नीति सम्पन्न किए जाने के बाद सुबह 7 बजकर 45 मिनट पर श्रीविग्रहों की पहंडी बिजे नीति शुरू की गई जो कि 9 बजकर 20 मिनट पर खत्म हुई। पहंडी नीति सम्पन्न होने के बाद 9 बजकर 25 मिनट पर मदन मोहन एवं रामकृष्ण को रथ के ऊपर लाया गया।
इसके बाद गजपति महाराज दिव्य सिंहदेव ने तीनों रथों पर छेरांपहंरा नीति सम्पन्न की। श्रीविग्रहों की ये तमाम रीति नीति निर्धारित समय से पहले सम्पन्न हो जाने से रथ खींचने का कार्य भी निर्धारित समय से 35 मिनट पहले ही 11 बजकर 25 मिनट पर शुरु हो गया। सबसे पहले 11 बजकर 25 मिनट पर प्रभु बलभद्र का तालध्वज रथ, इसके बाद 12 बजकर 25 मिनट पर देवि सुभद्रा का दर्पदलन रथ एवं सबसे अंत में 1 बजकर 20 मिनट पर महाप्रभु श्री जगन्नाथजी के नंदीघोष रथ को खींचने की प्रक्रिया शुरू हुई। जानकारी के मुताबिक प्रभु बलभद्र जी का तालध्वज रथ 2 बजकर 47 मिनट पर श्रीमंदिर मंदिर के सामने पहुंच गया जबकि देवि सुभद्रा जी का दर्पदलन रथ 3 बजकर 7 मिनट पर श्रीमंदिर के सामने पहुंचा।
बड़दांड में हुई लक्ष्मी-नारायण भेंट
सबसे अंत में चलने वाला महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी का नंदीघोष रथ श्रीनहर के पास पहुंचने के बाद रथ को रोककर वहां पर लक्ष्मी-नारायण भेंट (मुलाकात) नीति सम्पन्न की गई। महाप्रभु श्रीजगन्नाथ जी एवं महालक्ष्मी की आरती एवं वंदापना गजपति महाराज द्वारा की गई। यहीं पर जगन्नाथ जी से एक माला लाकर माता लक्ष्मी को गजपति महाराज ने दी। माना जाता है कि महाप्रभु माता लक्ष्मी को लिए बिना मौसी के घर चले जाने से लक्ष्मी जी नाराज हो जाती है। गुस्से में श्री गुंडिचा मंदिर पहुंचकर माता लक्ष्मी जगन्नाथ जी के नंदीघोष रथ को भी तोड़ देती हैं। ऐसे में आज जब महाप्रभु जन्म वेदी से रत्न वेदी को लौट रहे हैं तो प्रभु के रत्न वेदी में पहुंचने से पहले माता लक्ष्मी एवं प्रभु जगन्नाथ को मिलाने की मध्यस्थता गजपति महाराजा करते हैं।
इसी परंपरा के तहत श्रीमंदिर से श्री जगन्नाथ महाप्रभु के पुष्पालक सेवक माता लक्ष्मी को पालकी में बिठाकर गजपति महाराज के घर के सामने लाया गया, जहां पर लक्ष्मी-नारायण भेंट हुई। लक्ष्मी-नारायण मुलाकात होने के बाद महाप्रभु श्रीजगन्नाथ जी का रथ पुन: श्रीमंदिर की तरफ रवाना हुआ और 4 बजकर 40 मिनट पर श्रीमंदिर के पास पहुंच गया।