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¨हदी में काम करने वालों को मिले सम्मान : डॉ. सिंह

एक ¨हदुस्तानी को अपने ही देश में ¨हदी के प्रचार-प्रसार के लिए ¨हदी दिवस म

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Sep 2018 05:47 PM (IST)Updated: Tue, 18 Sep 2018 05:47 PM (IST)
¨हदी में काम करने वालों को मिले सम्मान : डॉ. सिंह
¨हदी में काम करने वालों को मिले सम्मान : डॉ. सिंह

जासं,. भुवनेश्वर : एक ¨हदुस्तानी को अपने ही देश में ¨हदी के प्रचार-प्रसार के लिए ¨हदी दिवस मनाना पड़े, सुनकर दुख लगता है। देश में आज स्थिति ऐसी हो गई है कि अपनी भाषा बढ़ाने के लिए हमें समारोह का आयोजन करना पड़ रहा है। देश आज दो भागों में विभक्त हो गया है, इसमें एक भारत तो एक है इंडिया। इंडिया के जो लोग हैं वे अंग्रेजी जानते हैं, समर्थवान है और उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। वहीं भारत के लोग जिन्हें अंग्रेजी नहीं पता है तथा सभी कार्य ¨हदी में करते हैं, उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता है, यह दुर्भाग्यजनक है। यह बात डॉ. अजय बहादुर ¨सह ने आइआइटी, खड़गपुर परिसर में आयोजित ¨हदी दिवस समारोह में बतौर अतिथि अपने संबोधन में कही। डॉ. ¨सह ने कहा कि ¨हदी एक ऐसी भाषा है जिसके उच्चारण मात्र से मन को शांति मिलती है। उन्होंने कहा कि देश के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूछा कि अंतरिक्ष से हमारा देश कैसा दिखता है तब शर्मा ने ¨हदी में उत्तर देते हुए कहा कि सारे जहां से अच्छा ¨हदोस्तां हमारा। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्रसभा में अपना भाषण ¨हदी में दिया था। आज समय आ गया है कि देश में ऐसे व्यक्तित्व की संख्या को बढ़ाया जाए। डॉ. ¨सह ने कहा कि रूस, जापान, फ्रांस, जर्मन आदि देश ऐसे हैं जो अपनी भाषा में काम करते हुए विकसित देशों में शामिल हैं। डॉ. ¨सह ने अपने इंस्टीट्यूट के ¨जदगी कार्यक्रम का उदाहरण देते हुए कहा कि ओड़िया भाषा में पढ़ाई कर हमारे छात्र डॉक्टरी परीक्षा में उत्तीर्ण होने में सक्षम हुए हैं। उन्होंने कहा कि अपने अंदर छिपी प्रतिभा को पहचानने एवं आत्मविश्वास के साथ लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने से सफलता खुद ब खुद मिलती है। डॉ. ¨सह ने कहा कि इस कार्यक्रम से संतुष्ट होकर ओडिशा सरकार ने ओपीटीसीएल विभाग के जरिए 50 गरीब मेधावी बच्चों के डॉक्टर बनने के सपने को साकार करने का दायित्व हमें दिया है। मुझे विश्वास है कि यदि आत्मविश्वास तथा अपनी आंतरिक शक्ति का सही ढंग से विकास किया जाए तो फिर प्रगति को कोई रोक नहीं सकता है और इसके लिए किसी भाषा की आवश्यकता नहीं होती है।

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