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ये है गंगाधर के जज्बे का पुल, लगा दी जिंदगी भर की कमाई

सालांदा नदी पर आखिरकार बन ही गया पुल 15 साल से अधूरा पड़ा था काम बरसात में टापू बन जाते थे आठ गांव। पैदल या नाव से नदी पार कर आगे पहुंचते थे लोग।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 07 Jan 2020 12:28 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jan 2020 12:28 PM (IST)
ये है गंगाधर के जज्बे का पुल, लगा दी जिंदगी भर की कमाई
ये है गंगाधर के जज्बे का पुल, लगा दी जिंदगी भर की कमाई

क्योंझर, गिरधारी लाल। ओडिशा के क्योंझर जिले में सेवानिवृत्त वेटरनरी तकनीशियन गंगाधर राउत ने सालांदा नदी पर 15 साल से अधूरे पड़े पुल को अपने रिटायरमेंट के पैसों से पूरा करा दिया। अब आठ गांवों के दो हजार परिवारों की राह आसान हो गई है। जिले के हाटोडीह प्रखंड के कानपुर गांव के निवासी गंगाधर राउत को अपने गांव में स्थित सालांदी नदी को पार कर शहर जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता था। 

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पैदल या नाव से किसी तरह नदी पार कर आगे पहुंचते थे। दूसरे रास्ते से जाने पर 10 किलोमीटर अधिक लंबा सफर तय करना पड़ता था। बरसात के दिनों में नदी का पानी बढ़ता तो समस्या और भी विकराल हो जाती। यह समस्या अकेले उनकी नहीं थी, बल्कि आसपास के आठ गांवों के 2 हजार परिवारों की भी यही पीड़ा थी। 

कई लोगों की जा चुकी है जान

बारिश के दिनों में उफनाती नदी को पार करते वक्त कई लोगों की जान भी जा चुकी थी। बरसात के दिनों में ये सभी गांव लगभग टापू बन जाते थे। 15-16 साल पहले सरकार ने इस ओर ध्यान देकर नदी पर पुल का निर्माण शुरू तो कराया, लेकिन किसी कारण से निर्माण बीच में ही रुक गया। पिछले 15 सालों से पुल का निर्माण अधूरा रहने से लोगों की समस्या जस की तस बनी हुई थी। इस बीच पुल की अनुमानित लागत बढ़ती गई और सरकारी बजट अलॉट नहीं होने के कारण पुल का निर्माण अधर में ही रहा। 

 

गंगाधर को यह दर्द हमेशा सालता था और वह इस समस्या का ठोस समाधान चाहते थे। वेटरनरी टेक्नीशियन के रूप में कार्यरत रहे गंगाधर ने पुल का निर्माण पूरा करवाने के लिए काफी दौड़ लगाई, आसपास के लोगों से भी बात की, लेकिन फंड की समस्या का समाधान नहीं हुआ।

नजर आया समस्या का हल

इस बीच, अक्टूबर 2016 में सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद उन्हें भविष्यनिधि और अन्य राशि एकमुश्त मिली तो उन्हें इस समस्या का हल मिलता नजर आया। रिटायरमेंट के पैसों को जहां लोग अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए संजो कर रखते हैं, वहीं गंगाधर अपने जीवन की इस सबसे बड़ी पूंजी को गांव के लोगों की आवागमन की समस्या को दूर करने में लगा देना चाहते थे। घर वालों से परामर्श किया तो इस नेक काम में सबने उनके निर्णय में हामी भरते हुए साथ दिया। इसके बाद गंगाधर ने रिटायरमेंट के बाद मिले 12 लाख रुपये से गांव में 15 साल से अधूरे पड़े 270 फीट लंबे पुल का निर्माण पूरा करा दिया। ग्रामवासियों और ट्रक मालिक संघ ने भी सहायता की।

मार्च 2018 में निर्माण का अधूरा पड़ा काम शुरू कर अगस्त 2019 में पूरा करा लिया गया। पुल बनने से कानपुर समेत आठ गांवों के दो हजार परिवारों का सपना साकार हुआ है। ब्रिज बनने के बाद वर्तमान में ग्रामवासियों को एम्बुलेंस सहित विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्राप्त हो रही हैं।

 विकास से कदमताल

अब इन गांवों के लोगो तेजी से विकास से कदमताल कर सकेंगे। 1957 में जन्मे ‘कानपुर के गोपबंधु’ के नाम से लोकप्रिय गंगाधर राउत अब 63 वर्ष के हो चुके हैं। परिवार में पत्नी सुशीला राउत, दो बेटे और दो बेटियां हैं। दोनों बेटियों का विवाह हो चुका है। बेटे में एक बैंक प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं और दूसरे भुवनेश्वर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं। सबने इस काम में उनका साथ दिया है। 

मिला राष्ट्रीय स्वयंसिद्ध सम्मान

गंगाधर के इस काम को सम्मान देते हुए पिछले दिनों उन्हें जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) फाउंडेशन ने राष्ट्रीय स्वयंसिद्ध सम्मान-2019 से नवाजा। नई दिल्ली में आयोजित सम्मान समारोह में उन्हें कृषि एवं ग्रामीण विकास में योगदान के अंतर्गत यह सम्मान प्रदान किया गया। पुल का निर्माण पूरा होने से काफी सुकून मिला है। ऐसा लगता है मानो जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा हो गया है...।

- गंगाधर राउत, क्योंझर (ओडिशा), राष्ट्रीय स्वयंसिद्ध सम्मान-2019 विजेता


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