Cyclone : तटीय क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बनाया जा रहा है डीपीआर, तुफान और समुद्री लहरों से होगा बचाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उड़ीसा दौरे के समय भी राज्य सरकार में हर साल आने वाले समुद्री तूफान रोकने के लिए डिजास्टर रेजिस्टेंस मैनेजमेंट सिस्टम के निर्माण पर जोड़ दिया था। इसके लिए अब राज्य सरकार के जलसंपदा विभाग ने कार्यवाही करनी आरंभ कर दी है।
भुवनेश्वर, जागरण संवाददाता। राज्य के 480 किलोमीटर लंबी तटीय क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जल्द ही मैनग्रुब के पेड़ लगाए जाने के साथ , मजबूत तटबंधो का निर्माण किया जाएगा । एक अनुमान के मुताबिक इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर 6-7 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसके लिए राज्य सरकार ने डीपीआर बनाने का काम आरंभ कर दिया यहां यह बताना उचित होगा कि 2 दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उड़ीसा दौरे के समय भी राज्य सरकार में हर साल आने वाले समुद्री तूफान रोकने के लिए डिजास्टर रेजिस्टेंस मैनेजमेंट सिस्टम के निर्माण पर जोड़ दिया था । इसके लिए अब राज्य सरकार के जलसंपदा विभाग ने कार्यवाही करनी आरंभ कर दी है ।
प्रथम पर्याय में बालेश्वर भद्रक केंद्रपाड़ा जगतसिंहपुर और पूरी जिले के तटीय इलाकों में 380 किलोमीटर तटबंधो का निर्माण किया जाएगा। साथ ही समुद्र तट में ज्वार का प्रकोप रोकने के लिए मैन ग्रुप्स के जंगल बनाए जाएंगे। इसके लिए प्रारंभिक तौर पर 1944 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की योजना बनाई गई है। हालांकि जानकार बताते हैं कि केवल तटबंधो को मजबूत बनाने भर से काम नहीं चलेगा तटीय इलाकों में तुफान रोधी घरों के निर्माण कार्य को अग्राधिकार देना होगा। साथ ही साथ तटीय इलाकों में अंडरग्राउंड केबल बिछाने और निरंतर बिजली सप्लाई बहाल करने को भी तैयारी करनी होगी।
शिमलिपाल राष्ट्रीय उद्यान पर दोहरी मार पहले आग, फिर तुफान से हुआ प्रभावित
पहले भीषण आग और अभी हाल है में यास तूफान के कारण बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए शिमलिपाल राष्ट्रीय उद्यान को बचाने के लिए परिवेश प्रेमी संगठनों ने सरकार से आवश्यक कदम उठाने की मांग की है। परिवेश विशेषज्ञों का कहना है कि शिमलिपाल राष्ट्रीय उद्यान जैव विविधता पूर्ण ऐसा इलाका है जहां तरह-तरह के जंगली जानवर , जड़ी बूटियों और दुर्लभ प्रजाति के पेड़ पौधों कि भरमार है। मगर बद इंतजाम और उचित रखरखाव के अभाव में यह इलाका इन दिनों संकट के दौर से गुजर रहा है।
परिवेश विशेषज्ञों का मानना है कि शिमलिपाल राष्ट्रीय उद्यान को ओडिशा की धमनियों के साथ तुलना की जाती है। आज़ के वक्त संकट में पड़ गये इस विविधता पूर्ण जंगल को बचाया जाना चाहिए जब जंगल बचेंगे सभी हम भी बचेंगे। गौरतलब है कि फरवरी और मार्च महीने में शिमलिपाल राष्ट्रीय उद्यान को भीषण आग के कारण काफी नुकसान हुआ था।
वन्य प्राणी और परिवेश विशेषज्ञ सृष्टिधर राउत ने कहां की जिस तरह से शिमलिपाल राष्ट्रीय संरक्षित जंगल के आसपास इलाके लगातार जंगल काटे जा रहे है उससे इस राष्ट्रीय संपदा के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। शिमलिपाल राष्ट्रीय जंगल को बचाए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए राउत ने कहा कि जैविक विविधता को बचाने में सरकार के साथ सभी नागरिकों का सहयोग आवश्यक है।