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भुवनेश्वर AIIMS उम्मीदें नहीं कर पाया पूरी, मरीजों का दिल्ली जाना मजबूरी

AIIMS Bhubaneswar भुवनेश्वर के अखिल भारतीयआयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में स्थापना के सात साल बाद भी बुनियादी सुविधाएं नदारद हैं। वर्ष 2017 से ट्रामा सेंटर भी बंद तीन साल में यहां एक भी नई सामग्री नहीं खरीदी गई। भुवनेश्वर एम्स में कुल 42 विभाग और 16 उपविभाग हैं।

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 11:24 AM (IST)Updated: Mon, 01 Mar 2021 11:24 AM (IST)
भुवनेश्वर AIIMS उम्मीदें नहीं कर पाया पूरी, मरीजों का दिल्ली जाना मजबूरी
राजधानी भुवनेश्वर में स्थित अखिल भारतीय आयुíवज्ञान संस्थान (AIIMS)

भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। मरीजों के लिए अखिल भारतीयआयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) उम्मीद की किरण है। मरीज यहां नई जिंदगी की आस लिए आते हैं। ऐसे में दिल्ली एम्स पर देशभर का दबाव बढ़ा तो राज्यों में इनका विस्तार हुआ। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में भी वर्ष 2014 में एम्स की सेवा शुरू हुई, लेकिन सात वर्ष बाद भी यह दिल्ली एम्स की तरह मरीजों को सेवा देने में विफल है। नतीजा, मरीज दिल्ली एम्स ही जाने को मजबूर हैं।

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 बड़ी उम्मीदों के साथ भुवनेश्वर में 2003 में एम्स की नींव रखी गई थी। 11 साल बाद करीब सौ एकड़ में फैले इस संस्थान में 2014 में मरीजों का इलाज तो शुरू हुआ, लेकिन यह स्थापना के अपने मूल उद्देश्य को पूरा नहीं कर सका। यहां पर बुनियादी संसाधनों, जरूरी उपकरणों, प्रशिक्षित कर्मचारियों का अब तक अभाव है। गामा नाइफ व साइबर नाइफ जैसी सुविधाएं नहीं हैं। 2017 में यहां का ट्रामा सेंटर धंसा तो उसे फिर दुरुस्त नहीं कराया जा सका है। कैंसर मरीजों के लिए दो लीनियर एक्सीलेटर होनी चाहिए, मगर यहां एक ही उपलब्ध है।

 इसी तरह न्यूक्लियर मेडिसिन के क्षेत्र में देखा जाए तो यहां पेट सीटी, सिंगल फोटान, कंप्यूटराइज टोमोग्राफी सीटी की भी सुविधा नहीं है। रोबोटिक मशीन नहीं है। कुल 305 फैकल्टी में 189 स्थायी तौर पर नियुक्त हैं। शेष 116 खाली हैं। नतीजा, मरीजों का समुचित इलाज नहीं हो पाता। उन्हें कोई दूसरा उपाय ढूंढना पड़ता है। गंभीर अवस्था में उन्हें दिल्ली एम्स का रुख करना पड़ता है। ऐसे में मरीजों को अनेक तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ात है। इससे उनका खर्चा भी बढ़ता है। भुवनेश्वर और दूसरे एम्स तेज गति से अपनी व्यवस्था नहीं सुधार पा रहे हैं, जिसकी एक बड़ी वजह है, निर्णय लेने में विलंब होना। 

 दिल्ली एम्स सीधे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रलय के अधीन आता है, जबकि राज्यों में बनाए गए एम्स को प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) नियंत्रित करता है। इसमें एक संयुक्त सचिव और पांच अधीक्षक हैं, जो दिल्ली एम्स को छोड़कर अन्य एम्स की व्यवस्थाएं देखते हैं। दिल्ली एम्स को यदि किसी वस्तु की जरूरत होती है तो सीधे स्वास्थ्य मंत्रलय से संपर्क करता है, लेकिन राज्यों के एम्स ऐसा नहीं कर पाते हैं। ऐसे में किसी कमी को दूर करने या उपकरण आदि की खरीदारी में लंबा वक्त लगता है। उधर, कोरोना के कारण डेढ़ साल से बैठक ही नहीं हो पाई है। पिछले तीन साल में भुवनेश्वर एम्स में एक भी नई सामग्री नहीं खरीदी गई है।

 यहां उपलब्ध हैं ये संसाधन

भुवनेश्वर एम्स में कुल 42 विभाग और 16 उपविभाग हैं। 305 फैकल्टी में 189 ही स्थायी तौर पर नियुक्त हैं। 116 पद रिक्त हैं। यहां करीब 350 रेजिडेंट डाक्टर हैं। प्रतिदिन ओपीडी में तीन से चार हजार मरीज पहुंचते हैं। यहां हार्ट, न्यूरो, कैंसर, आंख व हादसा पीड़ितों के इलाज के लिए सात केंद्र हैं। 25 आपरेशन और दो इमरजेंसी ओपरेशन थियेटर (ओटी) हैं। इसी तरह दो आर्थोपेडिक ओडी माड्यूलर ओटी हैं। ट्रामा सेंटर अभी बन रहा है। काíडयक सर्जरी में दो, न्यूरो सर्जरी में दो, कैंसर सेंटर में दो, आरपी सेंटर में दो, बर्न व प्लास्टिक सर्जरी में दो और गायनिक के लिए अलग से एक ओटी है। यहां दो काíडयो कैथ लैब व दो रेडियो थैरेपी मशीन हैं।

 रेडियोलाजी में सुविधाएं

हम दिल्ली एम्स से भुवनेश्वर एम्स की तुलना नहीं कर सकते। पहले की तुलना में भुवनेश्वर एम्स में कुछ सालों के दौरान मरीजों को रेफर करने के आकड़ों में 30 से 40 प्रतिशत की कमी आई है। वर्तमान में जो सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं, उनके लिए प्रक्रिया जारी है। मरीजों के साथ मेडिकल स्टूडेंट भी इसे पसंद करते हैं।

सचिदानंद महांति, अधीक्षक, भुवनेश्वर एम्स

  •   100 एकड़ क्षेत्रफल में स्थित है ओडिशा का भुवनेश्वर एम्स
  •   1000 बेड इस अस्पताल में मरीजों के लिए हैं उपलब्ध
  •    414 करोड़ रुपये की लागत से 2014 में बन कर हुआ था तैयार

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