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अब्दुल कलाम द्वीप से हो रहा है भारत रत्न तथा मिसाइल मैन डॉक्टर कलाम का सपना साकार

ओडिशा का चांदीपुर समुद्र तट तथा भारतीय मिसाइल के जनक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप मिसाइलों के परीक्षण में मानो एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। निर्भय से लेकर ब्रह्मोस तक तथा पृथ्वी से लेकर अग्नि तक का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा रहा है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Wed, 08 Dec 2021 02:46 PM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 02:52 PM (IST)
अब्दुल कलाम द्वीप से हो रहा है भारत रत्न तथा मिसाइल मैन डॉक्टर कलाम का सपना साकार
भारत के मानचित्र पर मिसाइलों का परीक्षण स्थल चांदीपुर का महत्व

बालेश्वर, लावा पांडे। इसे समय की मांग कहिए या फिर वक्त की आवाज ज्यों-ज्यों समय बदलता जा रहा है त्यों त्यों चाहे टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हो या फिर मिसाइल के क्षेत्र में समय के साथ-साथ इसमें बड़ा परिवर्तन देखने को मिल रहा है। आज पूरा विश्व यह समझ चुका है कि आने वाला युद्ध मिसाइलों से ही जीता जा सकता है ना की गोली बंदूक से बदलते समय के साथ युद्ध के तौर तरीके भी बदलते जा रहे हैं। दुनिया भर के तमाम विकसित देश आज अपने वैज्ञानिकों के दम पर नए नए हथियार की खोज में जुट चुके हैं। ऐसे में भला अपना देश भारत कैसे पीछे रहता भारतीय मिसाइल के जनक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम सन 1980 के दशक में मिसाइल के क्षेत्र में भारत को ताकतवर बनाने का जो सपना देखा था भारतीय वैज्ञानिक आज उसे साकार करने में लगे हैं। इसके साथ ही अपने काबिलियत तथा दूरदृष्टि कड़ी मेहनत और पक्का इरादा के तहत दुनिया के चुनिंदा देशों मैं देश को महारथ हासिल हो चुका है।

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जल थल वायु हर क्षेत्र में भारतीय सेना किसी भी दुश्मन देश को पटकनी देने मैं अब योग्य हो गया है। कोई भी देश भारत को अब लाल आंख नहीं दिखा सकता क्योंकि भारत आज इतना शक्तिशाली हो चुका है कि विश्व के गिने-चुने देशों में अपने आप को शामिल कर चुका है। सतह से सतह ,सतह से हवा, हवा से जमीन तथा समुद्र से आकाश हर क्षेत्र में मार करने वाले स्वदेशी ज्ञान कौशल से निर्मित अत्याधुनिक मिसाइलों का बेड़ा तैयार करने में आज भारत सक्षम हो चुका है। आज मेक इन इंडिया के तहत भारतीय वैज्ञानिक मानो मिसाइल के क्षेत्र में पूरे विश्व में आकाश छूने का सपना पूरा करने में लग गए है।

आज ओडिशा का चांदीपुर समुद्र तट तथा अब्दुल कलाम द्वीप मिसाइलों के परीक्षण में मानो एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। अग्नि-5 का परीक्षण कर भारत आज विश्व की चुनिंदा देशों में शामिल हो चुका है। जिसकी मारक क्षमता करीब 5 हजार किलोमीटर है तथा भारत आज अंतर महाद्वीप बैलिस्टिक मिसाइल महाशक्ति क्लब में शामिल हो चुका है। इसी तरह हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी हासिल करने वाला भारत देश चुनिंदा देशों में भी शामिल हो चुका है। अपना देश आज हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक के क्षेत्र में मानो बड़ी छलांग लगाया है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा चौथा देश बन गया है जिसने खुद ही हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी विकसित कर इसका सफलतापूर्वक परीक्षण कर रहा है।

डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन डीआरडीओ यानी की रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ने अब्दुल कलाम द्वीप से तथा चांदीपुर स्थित आईटीआर और पी एक्स ई यानी कि डीआरडीओ का क्षेत्र कहे जाने वाला एल सी 1 एल सी 2 और एल सी 3 से सफलतापूर्वक परीक्षण कर रहा है तथा अब्दुल कलाम द्वीप में मौजूद एल सी 4 से भी बैलेस्टिक सीरीज की मुख्यतः अग्नि मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण करने में लगा है। भारत के पास आज ऐसे कई मिसाइलें मौजूद हैं जो कि आवाज की गति से 6 गुना ज्यादा तेज रफ्तार से दूरी को तय कर सकती हैं यानी कि दुश्मन देश के एयर डिफेंस सिस्टम को भी इसकी भनक तक नहीं लगेगी। यदि यह कहा जाए कि भारत के पास अब बिना विदेशी मदद के हाइपरसोनिक मिसाइल डेवलपमेंट करने की ताकत या क्षमता आ गई है तो शायद असंभव नहीं होगा अगले कुछ सालों में भारत क्रेनजेट इंजन के साथ हाइपरसोनिक मिसाइल को तैयार करने में लगा है। आज डीआरडीओ और रूसी वैज्ञानिक के मिलित प्रयास से कई अत्याधुनिक मिसाइलों का विकास और परीक्षण किया जा चुका है।

चांदीपुर और अब्दुल कलाम द्वीप परीक्षण स्थल

यदि हम चांदीपुर और अब्दुल कलाम द्वीप के परीक्षण स्थलों पर नजर डाले तो अब्दुल कलाम द्वीप भारत की पूर्वी तट से लगभग 10 किलोमीटर दूरी बंगाल की खाड़ी में स्थित है और ओडिशा के भद्रक जिले में तथा चांदीपुर परीक्षण स्थल से करीब 70 किलोमीटर दूर मौजूद है। इसकी लंबाई 2 किलोमीटर तथा क्षेत्र में 390 एकड़ है। इसी तरह चांदीपुर परीक्षण स्थल में मौजूद है आईटीआर यानी कि अंतरिम परीक्षण परिषद और पी एक्स ई यानी कि प्रमाण तथा प्रायोगिक स्थापना का कार्यालय यहां पर मौजूद है। लांचिंग कंपलेक्स एक लांचिंग कंपलेक्स दो और लॉन्चिंग कंपलेक्स तीन जबकि अब्दुल कलाम द्वीप में मौजूद है लांचिंग कंपलेक्स चार।

1980 के दशक की शुरुआत में अग्नि श्रृंखला की मिसाइलों का विकास शुरू किया गया

यदि हम इन मिसाइलों के परीक्षण स्थल के इतिहास पर नजर डालें तो हमें यह अनुभव होता है और आभास होता है कि भारत सरकार ने एक समर्पित सैन्य मिसाइल परीक्षण रेंज के निर्माण के लिए एक उपयुक्त स्थान की तलाश शुरू की थी और सन 1980 के दशक की शुरुआत में अग्नि श्रृंखला की मिसाइलों का विकास शुरू किया गया था। डीआरडीओ चांदीपुर में प्रमाण तथा प्रायोगिक स्थापना यानी कि पी एक्स ई से सटे एक अंतरिम सुविधा का निर्माण किया गया 1986 में केंद्र सरकार ने बालेश्वर जिले में एक राष्ट्रीय परीक्षण रेंज की स्थापना किए जाने की घोषणा किए जो कि अब चांदीपुर में मौजूद है। इसी तरह ओडिशा के तट पर स्थित बंगाल की खाड़ी के करीब स्थापित किया गया अब्दुल कलाम द्वीप जो की पहले व्हीलर द्वीप के नाम से जाना जाता था।

ओडिशा सरकार ने 1993 डीआरडीओ को सौंपा

ओडिशा सरकार ने 1993 में इसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी कि डीआरडीओ को सौंप दिया था जिसके बाद डॉ एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा मिसाइल परीक्षण सुविधा तथा मिसाइलों के परीक्षण के लिए इस द्वीप पर विकास का काम शुरू किया गया था। अब्दुल कलाम के शब्दों पर यदि नजर डालें तो डॉक्टर कलाम ने इसको थियेटर आफ एक्शन तक कहा था। आज अब्दुल कलाम द्वीप से भारतीय वैज्ञानिक मुख्यतः बैलेस्टिक रेंज की अग्नि 1 से लेकर अग्नि 5 तक मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण कर रहे हैं।

द्वीप की जैव विविधत

इस द्वीप के जैव विविधता पर नजर डालें तो अब्दुल कलाम द्वीप गहिरमाथा समुद्री अभ्यारण के करीब स्थित है जो दुनिया के लुप्त प्राय ऑलिव लीडले समुद्री कछुआ का सबसे बड़ा किला है। अब्दुल कलाम द्वीप के रेतीले समुद्र तट कछुआ के लिए पसंदीदा स्थान माने जाते हैं। इसी तरह चांदीपुर का समुद्र तट मुख्यतः दो भागों में बटा है। पहला भाग जो कि दाहिने ओर है वह रक्षा विभाग से जुड़ा है जहां पर साधारण व्यक्तियों का या आम जनता का जाना मना है। उस पर प्रतिबंध है। इसके ठीक बाए और मौजूद है चांदीपुर का रेतीला समुद्र तट जहां पर लाल रंग के केकड़े देखे जाते हैं और पाए जाते हैं। यहां पर आम जनता के लिए कोई प्रतिबंध नहीं होता। यहां पर देश-विदेश से लेकर देश के कोने-कोने से पर्यटक घूमने और देखने आते हैं।

भारतीय बेड़े में शामिल मिसाइलें

आज भारतीय मिसाइली बेड़े में अग्नि सीरीज के अग्नि एक मिसाइल है जिसकी मारक क्षमता 1000 किलोमीटर है। इसी तरह अग्नि दो जिसकी मारक क्षमता 2000 किलोमीटर है। अग्नि-3 जिसकी मारक क्षमता 3000 किलोमीटर है तथा अग्नि-4 जिसकी मारक क्षमता 4000 किलोमीटर है, अग्नि-5 जिसकी मारक क्षमता 5000 किलोमीटर है। इसके साथ साथ आकाश मिसाइल, पिनाका रॉकेट, धनुष मिसाइल, ब्रह्मोस मिसाइल, पृथ्वी मिसाइल, अस्त्र मिसाइल, इंटरसेप्टर मिसाइल, प्रहार मिसाइल, शौर्य मिसाइल, पिनाका मिसाइल, निर्भय मिसाइल, बराक मिसाइल, क्यू आर एस ए एम, समेत हवाई पट्टी को ध्वस्त करने के साथ-साथ जल स्थल और वायु से छोड़े जाने वाले कई ताकतवर मिसाइल भारतीय बेड़े में शामिल हो चुके हैं।

इन सभी मिसाइलों का निर्माण और परीक्षण भारतीय वैज्ञानिकों ने स्वदेशी ज्ञान कौशल से किया है। इनमें से कई मिसाइलों का आधुनिकरण भी किया जा रहा है जिसमें इनकी दूूरी या फिर लक्ष्य को साधने की दूरी वारहेड यानी कि विस्फोटक ढोने की ताकत तथा इसमें और कई प्रकार की नई नवेली तकनीक प्रयोग कर इनको समय की मांग के साथ अत्याधुनिक किया जा रहा है। इन मिसाइलों का समय-समय पर नाम भी परिवर्तन किया जा रहा है लेकिन इनके टेक्नोलॉजी और इनके विभिन्न योग्यता का भी आधुनिकरण किया जा रहा है। आज यदि यह कहा जाए भारतीय वैज्ञानिक पूरे विश्व में भारत को मुख्यतः मिसाइल के क्षेत्र में लोहा बना दिए हैं तो शायद यह असंभव नहीं होगा। आज सारा विश्व एक और जहां अपनी मिसाइली ताकत को बढ़ाने में लगा है। ऐसे में भारत आखिरकार पीछे कैसे रहता।

आज सारा विश्व जानता है कि आने वाले दिनों में जो युद्ध लड़ा जाएगा वह तलवार भाला गोली बंदूक से नहीं बल्कि मिसाइलों से लड़ा जाएगा। इसलिए आज यदि यह कहा जाए कि मिसाइलें ही करेगी युद्ध का फैसला तो शायद असंभव नहीं होगा। आज विश्व के मानचित्र पर भारत का तटवर्ती इलाका चांदीपुर परीक्षण रेंज के बारे में यदि यह कहा जाए की मिसाइलों के परीक्षण के क्षेत्र में चांदीपुर का बढ़ता रुतबा तो शायद कम नहीं होगा।


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