लिंगराज मंदिर के पास खुदाई में मिले 11वीं सदी के विशालकाय स्लैब, संरक्षित रखने की उठी मांग
लिंगराज मंदिर के पास खुदाई के समय मिट्टी के नीचे से मिले पत्थर के 11वीं सदी के विशालकाय स्लैब राज्य में ऐतिहासिक सुरक्षा विधेयक लाने एवं स्लैब को संरक्षित रखने की मांग।
भुवनेश्वर, जागरण संवाददाता। राजधानी भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर के पास खुदाई के समय 11वीं सदी के दो विशालकाय स्लैब (पत्थर के चौकौर बड़े टुकड़े) मिले हैं। इन दोनों स्लैब की लम्बाई 40-40 फुट है जबकि मोटाई 3-3 फुट है। यह स्लैब लिंगराज मंदिर के निर्माण अवधि के समकालीन समय का होने की बात इनटाक प्रोजेक्ट के संयोजक अनिल धीर ने कही है। उन्होंने कहा है कि यह स्लैब सम्भवत: मंदिर के चबूतरा, स्तम्भ एवं बीम के लिए लाए गए थे। शायद इनके प्रयोग नहीं हो पाया थे और ये वहीं रह गए थे।
इनटाक के प्रोजेक्ट निदेशक अनिल धीर ने कहा है कि इसी तरह का एक पत्थर पुरी जगन्नाथ मंदिर के अश्व द्वार के पास है। उसका आकार भी इसी पत्थर की तरह है। इस पत्थर में एक तरफ मुद्री की घसाई करने पर शब्द दूसरी तरफ सुनाई देता है। ऐसे में उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण संस्थान (एएसआई) भुवनेश्वर कार्यालय के सात संपर्क कर पत्थर के इस स्लैब को सुरक्षित तरीके से बाहर निकालकर संरक्षित रखने के लिए चर्चा की है। लिंगराज मंदिर के चारों तरफ एएसआई संरक्षित कई स्मारिकी हैं जो कि उपेक्षित पड़ी हैं।
धीर ने कहा है कि पुरी एवं भुवनेश्वर शहर को विकसित करने से पहले यहां के ऐतिहासिक प्रभाव के बारे में विश्लेषण किया जाना चाहिए, मगर ऐसा नहीं किया जा रहा है। कई ऐतिहासिक स्थलों में तोड़फोड़ की जा रही है। असम सरकार ने ऐतिहासिक संरक्षण के लिए कानून लाने का निर्णय लिया है ऐसे में ओडिशा सरकार को भी ऐतिहासिक सुरक्षा विधेयक लाने की जरूरत है। इनटाक के राज्य आवाहक अमीय भूषण त्रिपाठी ने कहा है कि हाल ही में सरकार ने राज्य पुरातत्व एवं संग्रहालय के लिए नया निदेशालय बनाने का निर्णय लिया है जो स्वागत योग्य है। हालांकि ऐतिहासिक सुरक्षा के लिए विधेयक लाना भी उतना ही जरूरी है। यह पत्थर का स्लैब इतिहास से जुड़े रहने के कारण इसे संरक्षित रखकर इस पर अनुसंधान करने की जरूरत है।