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रूस ने किया साफ UNSC में नहीं होगी जम्‍मू- कश्‍मीर पर चर्चा

संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के मौजूदा अध्‍यक्ष रूस के विताली चर्किन ने साफ कर दिया है कि इस मंच पर भारत-पाकिस्‍तान को लेकर कोई चर्चा नहीं हो रही है। यह उनके एजेंडे में नहीं है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 05 Oct 2016 08:40 AM (IST)Updated: Wed, 05 Oct 2016 02:53 PM (IST)
रूस ने किया साफ UNSC में नहीं होगी जम्‍मू- कश्‍मीर पर चर्चा

न्यूयार्क (जेएनएन)। जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को पहले संयुक्त राष्ट्र और फिर अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है। रूस ने साफ कर दिया कि यूएनएससी में इस पर चर्चा नहीं होगी। यह उसके एजेंडे में नहीं है। रूस की ओर से अक्टूबर के लिए 15 सदस्य देशों वाली परिषद की अध्यक्षता संभाले जाने के बाद विताली चर्किन ने मीडिया को संबोधित करते हुए यह तमाम बातें कहीं। रूस ने इससे पहले सर्जिकल स्ट्राइक पर भारत का साथ देते हुए कहा था कि भारत ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए ही ऐसा किया है।

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रूस का पाक को जवाब

संयुक्त राष्ट्र में रूस के दूत और मौजूदा समय में सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष चर्किन ने कश्मीर मसला और पीओके में हुई सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा उठाने वाले पाकिस्तान को इस बाबत करारा जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद भारत-पाकिस्तान में बढ़ते तनाव पर चर्चा नहीं कर रही है। संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत विताली चर्किन ने एक संवाददाता सम्मेलन में भारत-पाकिस्तान के बीच के तनाव से जुड़े सवाल को बीच में ही रोकते हुए कहा कि वह इसमें नहीं पड़ना चाहतेे हैं। पत्रकार के दोबारा इस बाबत सवाल करने पर उन्होंने पत्रकार को रोकते हुए कहा कृपया नहीं…नहीं…। मैं इसमें नहीं पड़ना चाहता।’ जब उनसे पूछा गया कि वह इस मुद्दे पर टिप्प्णी क्यों नहीं करेंगे, तो उन्होंने कहा, ‘क्योंकि मैं सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष हूं। सुरक्षा परिषद इस पर चर्चा नहीं कर रही है।

मीडिया को पाक के सवाल पर तीखा जवाब

चर्किन ने कहा कि क्षमा करें सॉरी जैंटलमेन, मैं इसमें नहीं पड़ना चाहता, न ही इस पर कोई टिप्पणी ही देना चाहता हूं। प्लीज मुझे माफ करें।’ जब उनसे दोबारा पूछा गया कि वह और भारत-पाकिस्तान की स्थिति पर चर्चा करने से इतना ‘बच’ क्यों रहे हैं, तो चर्किन ने कहा, ‘मुझे यकीन है कि आप जानते हैं। बहुत सी अन्य चीजें भी हैं।’ चर्किन की इन टिप्पणियों को पाकिस्तान के लिए एक सीधी फटकार माना जा रहा है क्योंकि उसने पिछले ही सप्ताह भारत की ओर नियंत्रण रेखा के पार आतंकी ठिकानों पर किए गए लक्षित हमलों और कश्मीर के मुद्दे को लेकर सुरक्षा परिषद का द्वार खटखटाया था।

संयुक्त राष्ट्र में भी नहीं गली दाल

इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून के उपप्रवक्ता फरहान हक से पूछा गया था कि संयुक्त राष्ट्र महासभा में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की उस टिप्पणी पर संयुक्त राष्ट्र का क्या रुख है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान को कश्मीर से जुड़ा अपना सपना छोड़ देना चाहिए क्योंकि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा। इस सवाल पर हक ने कहा, ‘हमने भारत और पाकिस्तान के बीच की स्थिति पर एक बयान जारी किया है। वह चाहेंगे कि सवाल के जवाब के बाबत उसे देख लिया जाए।

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भारत पर टिप्पणी करने से इंकार

उनसे एक बार फिर पूछा गया कि संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान को कश्मीर का ख्वाब देखना बंद करने वाले सुषमा के बयान पर टिप्पणी क्यों नहीं की है, तब हक ने जवाब में कहा, ‘हम महासभा में दिए गए हर भाषण पर टिप्पणी नहीं करते लेकिन हम कश्मीर की स्थिति पर टिप्पणी करते रहे हैं। जैसा कि मैंने कहा, हम पहले ही इसपर बयान जारी कर चुके हैं।

भारत का जवाब

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरूद्दीन ने पिछले सप्ताह कहा था कि पाक अधिकृत कश्मीर में लक्षित हमलों के मुद्दे पर पाकिस्तान की ओर से संयुक्त राष्ट्र प्रमुख और सुरक्षा परिषद से संपर्क किए जाने को वैश्विक संस्था में कोई बल नहीं मिला। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने पिछले माह संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें सत्र से इतर जिन-जिन वैश्विक नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं की थी, उन्होंने लगभग उन सभी के समक्ष कश्मीर का मुद्दा उठाकर इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की कोशिश की थी।

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मलीहा लोधी की कोशिशें बेकार

संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की दूत मलीहा लोधी ने सितंबर के लिए परिषद के अध्यक्ष और संयुक्त राष्ट्र में न्यूजीलैंड के दूत गेरार्ड वान बोहेमन से मुलाकात कर परिषद की ‘अनौपचारिक चर्चाओं’ में लक्षित हमलों का मुद्दा उठाया था। उन्होंने इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून से भी मुलाकात की थी। लेकिन बान ने भारत-पाकिस्तान की सरकारों से अपील की कि वे कश्मीर समेत अपने सभी लंबित मुद्दों को ‘कूटनीति और वार्ता’ के जरिए शांतिपूर्ण ढंग से निपटाएं।

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