मीडियाकर्मियों को कसाब के गांव जाने से रोका
अजमल कसाब को फांसी की खबर फैलते ही पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मियों ने लाहौर से 150 किमी दूर उसके गांव फरीदकोट की घेराबंदी कर दी। सादे कपड़ों में तैनात सुरक्षाकर्मियों और खुफिया एजेंसी के लोगों ने किसी भी रिपोर्टर या कैमरामैन को गांव में घुसने की इजाजत नहीं दी। कई मीडियाकर्मियों के साथ बदसुलूकी भी की गई।
लाहौर। अजमल कसाब को फांसी की खबर फैलते ही पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मियों ने लाहौर से 150 किमी दूर उसके गांव फरीदकोट की घेराबंदी कर दी। सादे कपड़ों में तैनात सुरक्षाकर्मियों और खुफिया एजेंसी के लोगों ने किसी भी रिपोर्टर या कैमरामैन को गांव में घुसने की इजाजत नहीं दी। कई मीडियाकर्मियों के साथ बदसलूकी भी की गई।
गौरतलब है कि कसाब की मौत की खबर भी पाकिस्तान में सुर्खी नहीं बन सकी। पाकिस्तान की समाचार वेबसाइटों और टीवी चैनलों से कसाब की मौत की खबर चंद घटों में ही गायब हो गई। एक अंग्रेजी दैनिक के संवाददाता के मुताबिक पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मियों का रवैया वैसा ही था, जैसा मुंबई हमले के दौरान कसाब के पकड़े जाने के बाद पेश आया था। कसाब के घर को जाने वाली सड़क पर ग्रामीणों के भेष में पुलिसकर्मी तैनात थे। पुलिसकर्मियों ने टीवी चैनल कर्मियों के कैमरे छीनने की कोशिश की। जब मीडियाकर्मियों ने कहा कि वे फरीदकोट में कसाब के पड़ोसियों का इंटरव्यू लेने आए हैं तो उनसे धक्कामुक्की भी की गई।
पुलिसकर्मियों ने मीडियाकर्मियों से कहा, क्यों तुम लोग देश को बदनाम करने पर तुले हुए हो? दुश्मन देश के हाथों में क्यों खेल रहे हो? उन्होंने मीडियाकर्मियों को वापस जाने और इंटरव्यू की बात भूल जाने की सलाह दी। 'एक्सप्रेस न्यूज' के पत्रकार ने जब जिलाधिकारी से इसकी शिकायत की तो उन्होंने भी कहा, बेहतर होगा कि आप लोग वापस लौट जाएं क्योंकि गांव वाले बहुत गुस्से में हैं। वे किसी से बात नहीं करना चाहते।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के फरीदकोट गांव में कसाब का जन्म 1987 में हुआ था। उसके पिता खाने-पीने के सामान की रेहड़ी लगाते थे। ग्रामीणों के मुताबिक कसाब को बचपन से ही बॉलीवुड की फिल्मों और कराटे का शौक था।
पाकिस्तानी चैनलों की सुर्खियां नहीं बनी फांसी
इस्लामाबाद। भारत में अजमल कसाब को फांसी पर लटकाए जाने के कुछ घंटे बाद ही यह खबर पाकिस्तानी समाचार चैनलों की सुर्खियों में नहीं रही। इसकी जगह गाजा की घटनाओं और घरेलू विकास से जुड़ी खबरों ने ले ली।
सरकार द्वारा संचालित रेडियो पाकिस्तान और निजी नेटवर्क जियो न्यूज ने अपनी सुबह की बुलेटिन की शुरुआत इस खबर से की लेकिन दोपहर बाद तक यह प्रमुख खबर नहीं रही। समाचार चैनलों ने 25 वर्षीय कसाब की तड़के हुई फांसी पर शीर्षक लगाने में सावधानी बरती।
कसाब वर्ष 2008 के मुंबई हमलों में जिंदा गिरफ्तार एकमात्र पाकिस्तानी आतंकी था। लोगों ने भी इस पर सार्वजनिक रूप से ठंडी प्रतिक्रिया व्यक्त की। अधिकतर खबरिया संस्थान जिनमें टीवी चैनल और डॉन व एक्सप्रेस ट्रिब्यून जैसे प्रमुख अखबारों की वेबसाइटों भी थीं, इन्होंने बगैर किसी टिप्पणी या विश्लेषण के इस खबर को जारी किया। मुंबई हमले के बाद से ही कसाब की पाकिस्तानी नागरिकता जैसे संवेदनशील मुद्दे और मुंबई हमले से जुड़े अधिकांश मामलों की रिपोर्टिग को लेकर पाकिस्तानी मीडिया लापरवाही बरतता रहा है। 'द फ्राइडे टाइम्स' के संपादक राजा रुमी ने कहा, 'एक आम धारणा थी कि अफजल गुरु की तरह कसाब को भी फांसी नहीं दी जाएगी लेकिन इस प्रगति ने स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान को थोड़ा सदमे में डाला है।' वह 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले में मौत की सजा का इंतजार कर रहे अफजल का हवाला दे रहे थे। उन्होंने कहा, 'पाकिस्तान के अधिकतर लोगों ने मुंबई हमले की निंदा की है और इस बात का सुबूत दिया है कि वे कसाब को फांसी देने के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करेंगे।' अन्य विश्लेषकों ने भी कहा कि कसाब की फांसी से भारत-पाकिस्तान के संबंधों पर कोई प्रभाव पड़ने की आशंका नहीं है। खासकर ऐसे समय में जब दोनों देशों के नेता आपसी व्यापार और दोनों देशों के लोगों के बीच व्यक्तिगत रिश्ते मजबूत करने पर जोर दे रहे हैं।
एक्सप्रेस ट्रिब्यून पर अपनी टिप्पणी में बड़ी संख्या में भारतीयों ने कसाब की फांसी का स्वागत किया है। कुछ पाकिस्तानियों ने भारतीय कैदी सरबजीत सिंह को फासी देने की मांग की है। उल्लेखनीय है कि सरबजीत का परिवार हमेशा से कहता आया है कि उसका मामला गलत पहचान का है। पाकिस्तान के पूर्व मानवाधिकार मंत्र अंसार बर्नी ने भी सरबजीत को दोषी करार देने पर सवाल उठाया था।
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