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पाकिस्तान में हो रही शरीफ सरकार की किरकिरी

कश्मीर के मुद्दे पर भारत के साथ एनएसए स्तर की बातचीत रद्द करने के लिए नवाज शरीफ सरकार को पाकिस्तान के भीतर भी तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। अधिकांश अखबारों ने अपने संपादकीय और संपादकीय पेज पर छपे विशेषज्ञों की राय में नवाज शरीफ सरकार को आड़े

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Tue, 25 Aug 2015 07:28 AM (IST)Updated: Tue, 25 Aug 2015 07:31 AM (IST)
पाकिस्तान में हो रही शरीफ सरकार की किरकिरी

नई दिल्ली, [नीलू रंजन]। कश्मीर के मुद्दे पर भारत के साथ एनएसए स्तर की बातचीत रद्द करने के लिए नवाज शरीफ सरकार को पाकिस्तान के भीतर भी तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। अधिकांश अखबारों ने अपने संपादकीय और संपादकीय पेज पर छपे विशेषज्ञों की राय में नवाज शरीफ सरकार को आड़े हाथ लिया है। शरीफ सरकार की सबसे अधिक आलोचना उफा समझौते में कश्मीर का उल्लेख नहीं करने और बाद में आइएसआइ व सेना के दबाव में इस मुद्दे पर अडऩे को लेकर हो रही है।

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पाकिस्तान के प्रतिष्ठित अखबार 'द डॉन' के संपादकीय पेज पर छपे लेख के शीर्षक में ही बातचीत रद्द करने के लिए सीधे तौर पर नवाज शरीफ को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसी अखबार में काम करने वाले सिरिल अलमेडा ने लिखा है कि इस वक्त पर कश्मीर मुद्दे को उठाने का कोई तुक नहीं था। उनके अनुसार उफा में भारत की शर्त के आगे झुकते हुए शरीफ कश्मीर को छोड़कर आतंकवाद पर बात करने के लिए राजी हो गए थे। लेकिन वापस लौटने के बाद सेना और आइएसआइ का दबाव झेल नहीं पाए। सिरिल में सीधे सेना और आइएसआइ का नाम नहीं लिखा है, उसकी जगह 'लड़कों' शब्द का प्रयोग किया है, लेकिन इशारा साफ है।

'द न्यूज' अखबार ने अपने संपादकीय ने उफा में अहम मुद्दोंं पर पारदर्शी बातचीत नहीं करने और उसे आम जनता को सही तरीके से नहीं समझाने के लिए नवाज शरीफ सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। अखबार के अनुसार इससे स्थिति और भी अधिक उलझ गई। जबकि 'पाकिस्तान आबजर्वर' में छपे अपने लेख में एम जियाउद्दीन ने हुर्रियत नेताओं से मुलाकात के लिए पाकिस्तानी एनएसए सरताज अजीज के अडऩे की आलोचना की है। जियाउद्दीन ने लिखा है कि हुर्रियत नेताओं के साथ मुलाकात के कारण ही ठीक एक साल पहले भारत सचिव स्तर की बातचीत रद्द कर चुका है। ऐसे में नवाज शरीफ सरकार ने कैसे सोच लिया कि इस बार ऐसा करने पर वह बातचीत के लिए तैयार हो जाएगा। उनके अनुसार पिछले अनुभव को देखते हुए नवाज शरीफ को उफा में ही हुर्रियत नेताओंं से मुलाकात की शर्त पर बातचीत का जोर देना चाहिए था। बाद में ऐसा करना कहीं से भी उचित नहीं है। वहीं 'डेली टाइम्स' ने अपने संपादकीय में उफा समझौते में कश्मीर को शामिल नहीं करने को नवाज शरीफ सरकार की बड़ी गलती बताया है।

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