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अब्‍बासी चुने गए पाकिस्‍तान के अंतरिम पीएम, उन्‍हें चुनौती दे रहे थे पांच कैंडिडेट

पाकिस्‍तान में मंगलवार को केयरटेकर पीएम के रूप में अब्‍बासी को चुन लिया गया है। इसके लिए छह उम्‍मीदवार मैदान में थे। अब्‍बासी को करीब 221 सदस्‍यों का समर्थन मिला।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 01 Aug 2017 10:56 AM (IST)Updated: Tue, 01 Aug 2017 05:59 PM (IST)
अब्‍बासी चुने गए पाकिस्‍तान के अंतरिम पीएम, उन्‍हें चुनौती दे रहे थे पांच कैंडिडेट
अब्‍बासी चुने गए पाकिस्‍तान के अंतरिम पीएम, उन्‍हें चुनौती दे रहे थे पांच कैंडिडेट

इस्‍लामाबाद (स्‍पेशल डेस्‍क)। नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री पद से इस्‍तीफा देने के बाद मंगलवार को पाकिस्‍तान को केयरटेकर पीएम के रूप में शाहिद खकान अब्‍बासी के रूप में एक चेहरा मिल गया। पीएमएल-एन की तरफ से उन्‍हें नामित किया गया था। विपक्ष के एकजुट न होने की वजह से उनकी जीत पहले से ही तय मानी जा रही थी। इसमें जीत के लिए पीएमएल-एन को 172 सदस्‍य चाहिए थे लेकिन उन्‍हें करीब 221 सदस्‍यों का समर्थन मिला। उन्‍हें चुनौती देने के लिए पीपीपी के सैयद खुर्शीद शाह और सैयद नाविद कमर के अलावा आवामी मुस्लिम लीग के शेख राशिद अहमद, जमात ए इस्‍लामी के साहिबजादा तरिकुल्‍ला और एमक्‍यूएम के किश्‍वार जेहरा मैदान में थे।

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पीएमएल-एन की हालत पतली

लेकिन इसके बावजूद नवाज की पार्टी और पाकिस्‍तान की हालत लगातार पतली होती जा रही है। आलम यह है कि वहां पर नवाज की पार्टी पीएमएल (एन) ने केयरटेकर पीएम को लेकर जिनका नाम तय किया है वह भी भ्रष्‍टाचार के मामले में लिप्‍त हैं और नेशनल अकांउटेबिलिटी ब्‍यूरो मामले (NAB) की जांच कर रही है। अब्‍बासी लिक्विड नेचुरल गैस (LNG) इंपोर्ट का कांट्रेक्‍ट देने के मामले में 220 बिलियन के भ्रष्‍टाचार के आरोपों से घिरे हैं। यह मामला 2015 का है जब अब्‍बासी पेट्रोलियम मंत्री हुआ करते थे।

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एनएबी के दस्‍तावेज

एनएबी के दस्‍तावेजाें में कहा गया है कि वर्ष 2013 में एलएनजी इंपोर्ट और डिस्‍ट्रीब्‍यूशन का ठेका देने में सभी नियमों और कानूनों को ताक पर रखा गया था। दस्‍तावेजों के मुताबिक इसका ठेका देने में सार्वजनिक खरीद विनियामक प्राधिकरण (PPRA) के नियमों और कानूनों का उल्‍लंघन किया गया। इस मामले में एनएबी ने 29 जुलाई 2015 को मामला दर्ज किया था। अब्‍बासी पर अपने पद का दुरुपयोग करने और देश को वित्‍तीय नुकसान पहुंचाने का आरोप है। इस पूरे मामले को अब्‍बासी ने झूठ का पुलिंदा करार देते हुए कहा है कि जो लोग उनपर आरोप लगा रहे हैं उन्‍हें जरा अपने गिरेबां में भी झांक कर देखना चाहिए कि वह क्‍या हैं।

भ्रष्‍टाचार में कई और भी लिप्‍त

इस पूरे मामले में पेट्रोलियम सचिव इंटर स्‍टेट गैस सिस्‍टम के एमडी, एंग्रो कंपनी के एक्‍जीक्‍यूटिव ऑफिसर, सुई सदर्न गैस कंपनी के एक्‍स एमडी भी लपेटे में हैं। गौरतलब है कि पाकिस्‍तान में मौजूदा सदन का कार्यकाल खत्‍म होने में अभी दस माह का वक्‍त बाकी है। ऐसे में नवाज के भाई शाहबाज शरीफ को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए उन्हें पहले नेशनल असेंबली का सदस्‍य बनना होगा। उसके बाद वह इस पद पर पहुंच सकेंगे। लेकिन उससे पहले देश को केयरटेकर पीएम चाहिए, जिसके लिए अब्‍बासी का नाम आगे किया गया था। अब्‍बासी का इस पद के लिए चयन काफी हद तक पक्‍का है, क्‍याेंकि नेशनल असेंबली में पार्टी बहुमत में है। हालांकि इसका चयन मंगलवार को होना है।

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दस माह का बचा है समय

नवाज शरीफ के ऊपर लगे आरोपों के मामले में जिस तेजी से सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और फिर जेआईटी गठित कर उसकी रिपोर्ट पर त्‍वरित फैसला सुनाया है, उसके बाद ऐसा लगने लगा है कहीं अब्‍बासी का हाल भी नवाज जैसा ही न हो जाए। यूं भी वहां पर संसद का कार्यकाल खत्‍म होने में अब केवल दस माह ही शेष रह गए हैं। ऐसे में यह दस माह काफी मुश्किल भरे साबित हो सकते हैं। इन दस माह के दौरान नवाज की हार और अपनी जीत का जश्‍न मना रहे इमरान खान और मजबूत हो सकते हैं। वहीं इस दौरान सेना का क्‍या रुख रहेगा इस पर कुछ कहना फिलहाल मुश्किल होगा। इतिहास पर नजर डालें तो जब-जब वहां की लोकतांत्रिक हुकूमत कमजोर हुई है तब-तब सेना ने सत्ता अपने हाथों में ली है। ऐसा ही कुछ इस बार भी हो रहा है। नवाज शरीफ सत्ता से बेदखल हो चुके हैं। परिवार को सत्ता सौंपे जाने में अभी कुछ समय शेष है। वहीं केयरटेकर पीएम इन वेटिंग शाहिद खकान अब्‍बासी और नवाज के भाई शाहबाज के ऊपर कई तरह के आरोप हैं।

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अंतरराष्‍ट्रीय बिरादरी को मंजूर नहीं होगी फौजी हुकूमत

हालांकि रक्षा विशेषज्ञ के तौर पर पूर्व मेजर जनरल ऐसा नहीं मानते हैं। मेजर जनरल पीके सहगल का मानना है कि मौजूदा समय में पाकिस्‍तान की आवाम सैन्‍य हुकूमत को किसी भी सूरत से अपने यहां नहीं बनने देगी। उनका कहना है कि सेना की हुकूमत न सिर्फ भारत के लिए खतरे का संकेत होगी, बल्कि इसको अंतरराष्‍ट्रीय बिरादरी भी कबूल नहीं करेगी। चीन जो कि पाकिस्‍तान का सबसे बड़ा सहयोगी है वह खुद नहीं चाहेगा कि पाकिस्‍तान में कोई भी फौजी हुकूमत आए। वैसे भी नवाज के समय में वहां की फौज की पकड़ मजबूत थी। मौजूदा समय में शाहबाज और केयरटेकर पीएम के तौर पर अब्‍बासी को क्‍योंकि देश चलाने का कोई अनुभव नहीं है, लिहाजा इन पर सेना ज्‍यादा हावी होगी। लेकिन सेना भी जानती है कि यह समय देश की सत्ता पर काबिज होने का नहीं है, इससे अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय में गलत छवि बनेगी और यह कदम सही नहीं होगा। लिहाजा वह वहां पर इन दस माह के दौरान और बाद में भी कठपु‍तली वाले पीएम से अपने काम करवाएगी। सहगल बताते हैं कि जब-जब पाकिस्‍तान में फौजी हुकूमत आई है, तब-तब पाकिस्‍तान काफी पीछे चला गया है।

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