तालिबान सरगना के खिलाफ लड़ाई में UNSC की चुप्पी समझ से परे : भारत
तालिबान और दूसरे आतंकी संगठनों पर पुख्ता कार्रवाई में नाकाम रहने पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति की भारत ने कड़ी आलोचना की है।
वॉशिंगटन। तालिबान के नए मुखिया मावलावी हैबतुल्लाह अखुंजादा को आतंकी घोषित नहीं करने पर भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षापरिषद को आड़ेहाथों लिया है। यूएन सेक्युरिटी काउंसिल में भारत के स्थायी प्रतिनिधि(उप) तन्मय लाल ने कहा कि इसमें आश्चर्य और रहस्य दोनों है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के आतंकियों को पाकिस्तान को अपने यहां शरण नहीं देना चाहिए। भारत ने कहा कि सच ये है कि प्रतिबंधित आतंकी संगठन तालिबान के नए मुखिया को आतंकियों की सूची में नहीं डाला गया है। निश्चित तौर पर ये रहस्य की बात है ऐसा क्यों हो रहा है।ऐसा न करने के पीछे क्या तर्क है ये समझ के बाहर है।
यूएस ड्रोन हमले में मुल्ला मंसूर के सफाए के बाद तालिबान ने 50 साल के मौलाना अखुंजादा को कमान सौंपी है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत ने कहा कि कि आप एक आतंकी संगठन के मुखिया को व्यक्तिगत आतंकियों की सूची में डाले बगैर आतंकवाद पर लगाम कैसे लगा सकते हैं। आतंक के पर्याय बन चुके इस शख्स के खिलाफ बिना कार्रवाई कर कैसे दुनिया से आतंकवाद का खात्मा कर शांति लायी जा सकती है।
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भारत ने कहा कि अफगानिस्तान के मुद्दे पर 1988 में बनायी गयी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति की खामोशी समझ से परे है। तालिबान के नापाक इरादों का शिकार भारत शुरु से ही रहा है। लेकिन भारत को इस बारे में कोई खास जानकारी नहीं दी जाती है। हालात ये है कि कमेटी के अंदर तालिबान के मुद्दे पर जो कुछ भी चर्चा की जाती है, उससे भारत अंजान है। इससे साफ जाहिर होता है कि कमेटी में जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व का अभाव है।
अगर हम इस तरह से इतने गंभीर मुद्दे हल्के में लेंगे तो ये दुनिया की शांति के लिए खतरनाक ही होगा। अफगानिस्तान आतंकी संगठनों पर लगाम लगाने के लिए गंभीरता से कोशिश कर रहा है। लेकिन समिति का जो रुख है उससे साफ जाहिर होता है कि आतंकियों के खिलाफ लड़ाई को कुंद करने की कोशिश भी की जा रही है।