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कारगिल का काला सच, पहले खुद मुशर्रफ ने की थी घुसपैठ

कारगिल युद्ध को लेकर एक के बाद एक सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं। इन खुलासों में जहां पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की हकीकत सामने आ रही है वहीं वह बातें भी सामने आ रही हैं जिन्हें आज तक पाक अंतरराष्ट्रीय जगत में झुठलाता रहा है। इस मामले में ताजा खुलासा एक पूर्व फौजी कर्नल (रिटायर्ड) अशफाक

By Edited By: Published: Fri, 01 Feb 2013 08:13 AM (IST)Updated: Fri, 01 Feb 2013 04:35 PM (IST)
कारगिल का काला सच, पहले खुद मुशर्रफ ने की थी घुसपैठ

इस्लामाबाद। कारगिल युद्ध को लेकर एक के बाद एक सनसनीखेज खुलासे हो रहे हैं। इन खुलासों में जहां पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की हकीकत सामने आ रही है वहीं वह बातें भी सामने आ रही हैं जिन्हें आज तक पाक अंतरराष्ट्रीय जगत में झुठलाता रहा है। इस मामले में ताजा खुलासा एक पूर्व फौजी कर्नल (रिटायर्ड) अशफाक हुसैन ने किया है। उन्होंने अपनी किताब में परवेज मुशर्रफ के युद्ध से पहले एलओसी सीमा में लगभग ग्यारह किमी तक अंदर आने की बात कही गई है।

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मुशर्रफ की यह सच्चाई उस वक्त सामने आई जब हुसैन की किताब 'विटनेस टू ब्लंडर' के कुछ अंश गुरुवार को पाकिस्तानी टीवी चैनल पर पढ़ कर सुनाए गए। इस किताब में दावा किया गया है कि पाकिस्तान के तत्कालीन सेना अध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ एलओसी पारकर भारतीय सीमा में 11 किमी न सिर्फ अंदर आए बल्कि उन्होंने वहां एक रात भी गुजारी।

हालांकि परवेज मुशर्रफ ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। इस किताब में हुसैन ने लिखा है कि 18 दिसंबर 1998 को पहली बार कैप्टन नदीम, कैप्टन अली और हवलदार ललक जान ने एलओसी पार कर रेकी की थी। उसके बाद 28 मार्च 1998 को जनरल परवेज मुशर्रफ हेलिकॉप्टर से एलओसी के पार भारतीय सीमा में 11 किमी तक गए और वहां रात भी गुजारी। इस वक्त उनके साथ कर्नल अमजद शब्बीर भी थे।

अपनी किताब में हुसैन ने उस जगह का नाम जकरिया मुस्तकर पोस्ट बताया है, जहां मुशर्रफ आए थे। यूं तो यह किताब 2008 में प्रकाशित हुई थी लेकिन इसकी सच्चाई आज निकल कर सभी के सामने आई है। कर्नल हुसैन करगिल युद्ध के समय इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस डायरेक्टोरेट में नियुक्त थे।

हुसैन ने अपनी किताब के जरिए कई और घटनाओं को उजागर किया है। उन्होंने लिखा है कि करगिल युद्ध के बारे में तत्कालीन पाकिस्तान प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को तब पता चला जब भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने फोन पर उनसे जानकारी मांगी। इस किताब में हुसैन ने जहां परवेज मुशर्रफ पर तीखी टिप्पणी की है वहीं उन्होंने इस युद्ध को पूरी तरह से गलत करार दिया है। उन्होंने लिखा है कि भले ही मुशर्रफ इस युद्ध को अपनी जीत मानते हों लेकिन यह उनकी एक करारी हार थी। जब यह सच्चाई सामने आई तो उन्होंने अपने ही जवानों के शवों को पहचानने से इन्कार कर दिया। हुसैन ने इसको मुशर्रफ का घटिया रवैया करार दिया है। उन्होंने लिखा है कि मुशर्रफ और पाक फौज वहां तक पहुंच सकी, क्योंकि उस वक्त भारी बर्फ होने की वजह से भारतीय फौज वहां नहीं थी। मुशर्रफ को उम्मीद थी कि जून तक भारतीय फौज को पाक फौज के वहां होने की जानकारी नहीं मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और नतीजतन पाकिस्तान को मुशर्रफ ने एक अनचाहे युद्ध में धकेल दिया।

इन सभी के उलट लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध को लेकर अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इन्कार किया है। उन्होंने कहा है कि हुसैन एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और उन्हें कारगिल युद्ध की सच्चाई का पता है, लेकिन वह इसको छिपा रहे हैं। मुशर्रफ ने आरोप लगाया कि भारत ने एलओसी का उल्लंघन किया था, जिसकी वजह से यह युद्ध हुआ। मुशर्रफ का कहना है कि मुजाहिद्दीन भारतीय सीमा में घुसे थे जिन्हें बाहर करते हुए ही भारतीय फौज एलओसी पार कर पाक सीमा में घुस आई थी। उनको जवाब देने के लिए पाक सेना को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी थी। इस कार्रवाई में भारतीय सेना के दो विमान भी गिरा दिए गए थे।

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