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बक्‍सर के कोरानसराय में आज भी है शेरशाह का बनाया कुआं, क्‍या आप जानते हैं 'सराय' का मतलब?

बक्‍सर के कोरानसराय में अंतिम सांसें ले रहा है शेरशाह का कुआं ऐतिहासिक कुआं के समीप होता था शासक शेरशाह के कारवां का सराय मुगलसराय की तरह ही रही है इस शहर की अहमियत क्‍या आप जानते हैं सराय का मतलब?

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Fri, 19 Aug 2022 02:31 PM (IST)Updated: Fri, 19 Aug 2022 02:31 PM (IST)
बक्‍सर के कोरानसराय में आज भी है शेरशाह का बनाया कुआं, क्‍या आप जानते हैं 'सराय' का मतलब?
बक्‍सर में है शेरशाह का बनवाया ऐतिहासिक कुआं । प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

संवाद सहयोगी, डुमरांव (बक्सर)। Bihar News: भारत में मुगल और अफगान शासन काल के दौरान कई जगह सरायों का निर्माण कराया गया। ये सरायें प्रशासनिक और सैनिक दस्‍ते के साथ ही व्‍यवसायियों और राहगीरों के भी ठहरने की जगह हुआ करती थीं। उत्‍तर प्रदेश के पुराने शहर मुगलसराय (नया नाम - पंडित दीन दयाल उपाध्‍याय नगर) का नाम तो प्राय: सभी ने सुना होगा। यह एक ऐसी ही सराय की वजह से बसा शहर है। लेकिन, क्‍या आप जानते हैं कि ऐसी सरायों वाले और भी ढेरों कस्‍बे और शहर आबाद हुए हैं। बिहार के बक्‍सर जिले में कोरानसराय एक ऐसा ही कस्‍बा है। 

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कोरानसराय एवं आस-पास के कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि अफगानी शासक शेरशाह का कारवां जब सासाराम से चलता था तो उसका यहां अक्‍सर पड़ाव होता था। आज उस दौर से जुड़ी केवल एक चीज यहां पहचान के तौर पर रह गई है। वह है एक कुआं। शेरशाह के सिपाही इसी कुएं के समीप रूककर खाना पकाते व खाते थे। हालांक‍ि अतिक्रमण के कारण अब यह कुुआं भी अपना वजूद खोते जा रहा है।

इसी कुएं के ठीक पश्चिम सैनिकों के ठहराव के लिए विश्रामशाला का निर्माण भी कराया गया था, जिसे बाद में अंग्रेज शासकों के द्वारा तोड़कर डाक बंगला एवं शराब डिपो का निर्माण कराया गया। शेरशाह के बनवाए गए इस कुआं के समीप शुद्ध पेयजल मिलने की उम्मीद से अंग्रेज सिपाही भी रहते थे। आजादी के बाद यहां क्रमश: सिंचाई विभाग का कार्यालय, कोरानसराय थाना कार्यालय एवं पंचायत भवन व पैक्स गोदाम का निर्माण कराया गया।  

पूरे इलाके में सबसे बड़ा था यह कुआं

राष्ट्रीय राजमार्ग 120 के डुमरांव-बिक्रमगंज मुख्य मार्ग पर कोरानसराय स्थित बिचला पड़ाव के समीप मेन रोड के किनारे शेरशाह द्वारा बनवाया गया यह कुआं इलाके में सबसे बड़ा कुआं था। कुछ साल पहले तक मेन रोड से तकरीबन पांच फीट ऊपर लाहौरी ईंट से निर्मित इस कुएं को देखने के लिए दूरदराज के इलाके से लोग आते रहते थे, लेकिन अब इस कुआं को ऊपर से ढंक कर इस पर दुकान संचालित की जाती है। बिहार में जल संसाधन मंत्रालय द्वारा एक ओर जहां जल स्रोतों के अस्तित्व को बचाने के लिए कई योजनाएं बनाकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर डुमरांव अनुमंडल मुख्यालय से 10 किमी की दूरी पर स्थित कोरानसराय बाजार के बीचोंबीच अफगानी शासक शेरशाह के द्वारा बनवाए गए ऐतिहासिक कुआं का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। अब इस कुएं के चारों ओर अतिक्रमण कर दुकानें बनाई जा रही हैं। 

प्रशासन की ओर से अब तक कोई कार्रवाई नहीं किए जाने से ऐतिहासिक धरोहर के साथ मजाक करने वाले लोगों के हौसले बुलंद हैं। फिलहाल यह कुआं उपयोग युक्त नहीं रह गया है, लेकिन इसके अतिक्रमण से इसका गौरवशाली अस्तित्व मिटने के कगार पर है। इस ऐतिहासिक कुएं के ऊपरी हिस्से को धीरे-धीरे अतिकम्रण कर यहां झोपडीनुमा मकान बना दिया गया है।

ऐतिहासिक विरासत को बचाने के लिए न तो किसी सरकारी हुक्मरानों को चिंता है और न ही किसी जन प्रतिनिधियों द्वारा कोई ठोस कदम उठाया जा रहा है। कोरानसराय गांव निवासी दयाशंकर तिवारी, रामनारायण शर्मा, शंभूनाथ शिवेंद्र, सुरेंद्र सिंह अधिवक्ता, भोला तिवारी, लक्ष्मण दुबे, मोहन जी तिवारी, संजय साह और विपिन बिहारी सहित अन्य कई ग्रामीणों ने बताया कि ऐसे ऐतिहासिक धरोहरों को बचाने के लिए समाज के हर लोगों को आगे आने की जरूरत है।  

डुमरांव के एसडीओ कुमार पंकज ने बताया कि कोरानसराय में शेरशाह के द्वारा निर्मित इस ऐतिहासिक कुआं को अतिक्रमण मुक्त कराकर इस धरोहर के रूप में संजोने का प्रयास होगा, ताकि आने वाली पीढ़ी ऐतिहासिक अतीत से अवगत हो सके। 


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