Independence day 2022 : तीन बार जेल जाने के बाद भी नहीं बदला देश को आजादी दिलाने का इरादा
Independence day 2022 आजादी के मतवालों का जिक्र हो और हाथरस का नाम न आए ऐसा संभव ही नहीं है। हाथरस से कई ऐसे क्रांतिकारी निकले जिन्होंने देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। ऐसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे पं आनंदीलाल।
हाथरस, जागरण संवाददाता । Independence day 2022 : हाथरस के सहपऊ कस्बा के सबसे पुराने एवं प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. आनंदीलाल को अंग्रेजों ने तीन बार जेल भेजा और अर्थदंड लगाने के बाद भी उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला। वह देश को आजाद कराने में लगे रहे। Anandi Lal की सभी freedom fighter उनकी बात मानते थे और उनका ही अनुसरण करते हैं।
बदलते रहते थे बैठक का स्थान : आंदोलन में भाग लेने एवं अंग्रेजों के प्रति विरोध करने के लिए बनाई जाने वाली उनकी रूपरेखा एवं उसके लिए बैठक करने के स्थान का चयन पंडित जी ही करते थे। वह बैठक करने का स्थान बदलते रहते थे, जिससे उस समय के प्रशासन एवं पुलिस को उनके द्वारा किये जाने वाले कार्यक्रमों की उनको भनक नहीं लगती थी। वह पुराने समय के कथा वाचक एवं क्षेत्र के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य थे। उनके द्वारा की गई अधिकाश भविष्यवाणियां सही निकलती थीं।
पौत्र ने सुनाई कहानी : यह जानकारी देते हुए उनके grandson Satyam Gaur ने बताया कि पंडित जी ने शादी नहीं की थी। उनके पिता के दो संतानें थीं। उनके घर पूर्व से ही पंडिताई का कार्य होता था और आज तक चल रहा है। उनका परिवार कस्बे के कुलगुरु के रूप में मान्य है। दादाजी की ज्योतिषीय कार्य एवं उनके द्वारा कही हुई बातें सही निकलने पर वह कस्बा के साथ-साथ क्षेत्र में भी प्रसिद्ध हो गए थे। गांधी जी से प्रभावित होकर वह देश के लिए हो रहे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े और गांव-गांव जाकर लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ प्रेरित करते थे। उन्होंने लोगों को कहा था कि देश अवश्य ही स्वतंत्र होकर रहेगा।
उनकी बातों पर विश्वास कर लोग आंदोलन से जुड़े : उनकी बातों पर विश्वास करने के कारण ही कस्बे के 22 एवं क्षेत्र के 20 लोग देश के स्वतंत्र कराने वाले आंदोलन से जुड़ गए, जिनका लेखा-जोखा सरकारी अभिलेखों में मिलता है। कुछ ऐसे भी परिवार हैं कि उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने में अपना योगदान दिया, लेकिन अभिलेखों में उनका नाम नहीं होने के कारण उनको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा प्राप्त नहीं हो सका।
1930 से शुरू हुआ जेल जाने का सिलसिला : पंडितजी को सर्वप्रथम सन् 1930 में Salt Satyagraha एवं विदेशी वस्तु के बहिष्कार आंदोलन में भाग लेने पर तीन माह की जेल एवं दस रुपये का जुर्माना हुआ था। इसके बाद सन् 1931 में छह मास का कारावास का दण्ड एवं पचास रुपये जुर्माने की सजा मिली। इसके बाद व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने पर सन 1941 में एक वर्ष की जेल तथा तीस रुपये जुर्माना की सजा हुई। तीन बार जेल जाने के बाद भी पंडितजी ने लोगों को अंगेजों के विरुद्ध असंतोष पैदा करने उनकी आज्ञा को नहीं मानने के लिए एवं उनके खिलाफ एकजुट करने वाले कार्य को बंद नहीं किया। अंत में देश आजाद हो गया।
सन् 1972 में पूर्व प्रधानमंत्री ने उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया तथा ताम्रपत्र भेंट किया। पंडित जी के परिवार को सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिली। उनके पौत्र का कहना है कि उनके पिता स्व. पप्पू पंडित जी को उन्होंने गोद लिया था एवं उनका गोदनामा अभी तक उनके पास है, क्योंकि पंडितजी ने विवाह ही नहीं किया था, जिससे उनके कोई संतान नहीं थी। देश के आजाद होने के बाद भी वह समाज के कल्याण के लिए कार्य करते रहे।