Swatantrata Diwas 2022: स्वतंत्र भारत में संगमनगरी की पहली सुबह, उम्मीद का किरण आई थी
Swatantrata Diwas 2022 प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में आजादी के उत्सव का केंद्र था। अल्फ्रेड पार्क यानी मौजूदा अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क। पार्क में हजारों लोगों की भीड़ जुटी। हर कोई उस स्थल पर पहुंचा जहां महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने देश के लिए खुद को बलिदान कर दिया था।
शरद द्विवेदी, प्रयागराज। हर व्यक्ति के लिए उम्मीद की नई किरण लेकर आई थी 15 अगस्त 1947 की सुबह। चप्पे-चप्पे में स्वतंत्रता की उमंग थी। क्या बच्चे व युवा और क्या बुजुर्ग हर कोई उत्साहित थे। गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति की यह अनुभूति अनूठी थी। घर-घर से 'भारत माता की जय..., वंदेमातरम्...' का उद्घोष-जय घोष हो रहा था। अधिकतर घरों में शान से तिरंगा लहराया जा रहा था। स्कूलों में मिठाइयां बंट रही थी। बच्चे नए कपड़े पहनकर घूमने निकले थे।
आजाद पार्क में हजारों लोगों की भीड़ जुटी थी : प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में आजादी के उत्सव का केंद्र था। अल्फ्रेड पार्क यानी मौजूदा अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क। कुल 133 एकड़ में फैले इस विशाल पार्क में हजारों लोगों की भीड़ जुटी। हर कोई उस स्थल पर पहुंचा, जहां महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने देश के लिए खुद को बलिदान कर दिया था। मिट्टी माथे पर लगाई, कुछ लोग मिट्टी घर ले गए। रोमांच और उत्साह ऐसा था कि पार्क के अंदर स्थित विक्टोरिया मेमोरियल के समक्ष भी तिरंगा झंडा लहराकर खुशी मनाई।
ऐतिहासिक नीम के पेड़ के पास भी मत्था टेक रहे थे लोग : पुराने शहर के चौक स्थित नीम के पेड़ पर भी भीड़ जुटी थी। यहां मत्था टेकने वालों की भीड़ थी। अधिकतर लोग उस पेड़ को स्पर्श कर भावुक हो गए थे, क्योंकि उसमें आजादी के दीवानों (क्रांतिकारियों) को समय -समय पर फांसी पर लटकाया गया था।
शिक्षाविद् कुंवर अवधेश सिंह ने आजादी की स्मृति बताई : शिक्षाविद् कुंवर अवधेश सिंह उस समय 11 वर्ष के थे। बताते हैं कि हर किसी को यह जानकारी थी कि आजादी मिल रही है ब्रिटिश हुक्मरानों से। इसलिए 14 अगस्त 1947 की रात अधिकतर लोग सोए ही नहीं थे। घरों में उत्सव का माहौल था। 'टूट गई गुलामी की बेड़ी, अब हम हैं आजाद..., देखो फिरंगी भाग गए....' जैसे गीत गाकर लोग खुशियां मना रहे थे। सुबह होने पर घरों में तिरंगा झंडा लहरा कर खुशी व्यक्त की जाने लगी। हर किसी के लिए तिरंगा स्वाभिमान व गौरव का प्रतीक था। मैं भी 'भारत माता की जय' का उद्घोष करते हुए इधर-उधर दौड़ लगा रहा था। जो बड़े थे वो एक-दूसरे के गले मिलकर, मिठाई बांटकर खुशी मना रहे थे।
स्वतंत्रता मिली तो प्रसन्नता का ठिकाना न रहा : ब्रिटिश हुकूमत में अल्फ्रेड पार्क में आम भारतीयों का प्रवेश वर्जित था। उसके आस-पास फटकने पर भी सजा मिलती थी। इसी कारण देश को स्वतंत्रता मिली तो अधिकतर लोग पार्क में पहुंच गए। पार्क जाने के पीछे मंशा सिर्फ यही थी कि हर व्यक्ति आजाद होने की अनुभूति कर रहा था। उसे प्रसन्नता थी कि अंग्रेजों की गुलामी खत्म हुई। अब हमारा नियम-कानून चलेगा। इसी भावना से ओतप्रोत होकर लोग पार्क पहुंचे थे। सबसे अधिक भीड़ पार्क के उस हिस्से में थी, जहां चंद्रशेखर आजाद बलिदान हुए थे। दिनभर गाना-बजाना चला। आजादी का उत्सव मनाने का दौर कई दिनों तक चला। हर कोई उसका हिस्सा बनकर प्रसन्न था।