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अलीगढ़़ में पौधरोपण कर नगर विकास मंत्री दे गए नसीहत, कागजों पर हरा भरा न रहे धरा

बीते दिनों नगर विकास मंत्री ने अलीगढ़़ में पौधरोपण किया। इसके बाद उन्‍होंने नसीहत भी दी कि पौधों की देखभाल बच्‍चों की तरह की जाय। अफसर इस नसीहत को कितना आत्‍मसात करते हैं ये तो पौधों के विकास पर निर्भर करता है।

By Anil KushwahaEdited By: Published: Thu, 07 Jul 2022 12:33 PM (IST)Updated: Thu, 07 Jul 2022 12:46 PM (IST)
अलीगढ़़ में पौधरोपण कर नगर विकास मंत्री दे गए नसीहत, कागजों पर हरा भरा न रहे धरा
नगर निगम ने शहर में जगह-जगह जंगल विकसित करने का संकल्प लिया है।

अलीगढ़, जागरण संवाददाता। धरा काे हरा-भरा करने का लक्ष्य हर साल मिलता है। कागजों में ये पूरा भी होता है। इस बार 46 लाख पौधे रोपने का लक्ष्य है। 33 लाख तो लगा भी दिए। पत्रावलियों में तो यही दर्शाया है। हो भी सकता है। तमाम सरकारी महकमे पिछले कुछ दिनों से इसी मुहिम में जुटे थे। नगर निगम ने तो शहर में जगह-जगह जंगल विकसित करने का संकल्प लिया है। एक की नींव तो खुद नगर विकास मंत्री ने रखी थी। नसीहत भी देकर गए कि इन पौधों की देखभाल बच्चों की तरह करना। सही भी है पौधे बच्चों की तरह ही पाले जाने चाहिए। अफसर इस नसीहत को कितना आत्मसात करते हैं, ये तो पौधों के विकास पर निर्भर करेगा। लेकिन, पिछले कुछ सालों में रोपे गए उन पौधों का क्या, जो लापता हो गए। क्या उनका पोषण ठीक से नहीं हुआ? पौधारोपण की मुहिम लक्ष्य पूरा करने तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।

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'सरकार' की खातिर बने सेवक

शहर की सरकार फिर बनने जा रही है। निकाय चुनाव में चार माह ही शेष हैं। पुरानी सरकार के सिपहसालार फिर चेहरे चमकाने में लगे हैं। सेवक क्या होता है, इसकी परिभाषा वे जनता को समझा रहे हैं। इंटरनेट मीडिया को प्रचार का माध्यम बना लिया है। सूर्य नारायण जहां सातों घोड़ों के रथ पर सवार होकर आग बरसा रहे हैं, वहीं ये सिपहसालार तपती धूप में अपने नेताओं की 'परिक्रमा' करने में लगे हैं। उद्देश्य वही है, टिकट। इस बीच कुछ नए चेहरे भी उभर कर सामने आए हैं। 'मुखिया' भी पीछे नहीं हैं। सार्वजनिक तौर पर वे चुनाव न लड़ने की बातें कर रहे हैं। लेकिन, अचानक बढ़ी उनकी सक्रियता से ऐसा अाभास नहीं हो रहा। पिछले चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल की थी। इस बार भी कुछ ऐसा ही करने का विचार है। उधर, सत्ताधारी खेमे में भी 'सरकार' के ताज पर दावेदारी शुरू हो गई है।

खुद के गड्ढे भर रहा निगम

गली-मोहल्लों में सड़कों पर हो रहे गड्ढाें को पाटने की बजाय नगर निगम खुद अपने गड्ढे भरने में लगा है। विभागीय कार्यों की खामियाें पर कार्रवाई के दावे तो होते हैं, जांच भी बैठती है। लेकिन, परिणाम कुछ नहीं आता। ऐसे कई प्रकरण हैं, जिनकी जांच या तो लंबित है, या फिर फाइल ही बंद हो गई। सीवर सफाई, नाव खरीद घोटाला, पोखर प्रकरण, फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र जैसे कई मामले हैं, जो दबा दिए गए। लेकिन, इस संबंध में पूछो तो कहा जाता है कि जांच लंबित है। निगम में विभागों की ये कार्यशैली नई नहीं है। पुराने मामलों का निपटारा भी ऐसे ही किया गया। पार्षद यदा-कदा पुरानी फाइलों को खोलकर विभागीय अधिकारियों को याद दिला देते हैं। लेकिन, होता कुछ नहीं है। अधिकारी अंजान बन जाते हैं, पार्षद भी पीछे नहीं पड़ते। शायद सोच लेते हैं कि नगर निगम की तो यही नियति है।

नाला बना रहे या मजाक

नगर निगम के निर्माण विभाग ने एक नाले काे मजाक बनाकर रख दिया। ये नाला भदेसी रोड पर बन रहा है। कागजों में 80 फीट तक चौड़ा यह रोड आधा कब्जा लिया है। कहीं मकान तो कहीं दुकानें बना दी गईं। पीडब्ल्यूडी ने छोड़ा गया आधा रोड आरसीसी का करा दिया। अब नगर निगम नाला बनवा रहा है। अतिक्रमण हटाए बिना नाले का निर्माण हो रहा है। विगत माह मुद्दा उठा तो निर्माण विभाग ने एक स्थान से अतिक्रमण हटवा दिया। बाकी किसी अतिक्रमण को हाथ नहीं लगाया। विभाग के इस लापरवाह रवैये का परिणाम यह रहा कि नाला आड़ा-तिरछा बन रहा है। जहां-जहां रोड कब्जाया गया, उस हिस्से को छाेड़कर निर्माण कार्य कराया जा रहा है। आलाधिकारियों को पूरी जानकारी है। लेकिन, कोई निर्णय नहीं ले पा रहे। जैसा चल रहा है, चलने दे रहे हैं। उनकी चुप्पी से अतिक्रमणकारियों के हौंसले और बुलंद हो रहे हैं।


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