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Uniform Civil Code लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बनने की राह पर

कांग्रेस इस विषय पर बहुत संभल कर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि प्रदेश की जमीनी हकीकत को देखते हुए पार्टी के हित में मुखर नहीं हो रही है। कांग्रेसी नेताओं का यह भी मानना है कि इसके विरोध में उतरना खतरनाक हो सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 06 Jul 2022 12:01 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jul 2022 12:01 PM (IST)
Uniform Civil Code लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बनने की राह पर
समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी

देहरादून, कुशल कोठियाल। गत 30 जून को प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपने सौ दिन पूरे होने पर अपनी उपलब्धियों का ब्योरा जनता के सामने रखा। लोक कल्याण व विकास के क्षेत्र में तमाम उपलब्धियां सामने रखी गईं, लेकिन इनमें से जिसे ऐतिहासिक श्रेणी में रखा जा सकता है वह है प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए की गई धरातलीय तैयारियां। गोवा में उसके जन्म से ही समान नागरिक संहिता लागू है, लेकिन संवैधानिक व्यवस्था के तहत इसे लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बनने की ओर अग्रसर है। गत सोमवार को इसके लिए गठित विशेषज्ञ समिति की पहली एवं परिचयात्मक बैठक राष्ट्रीय राजधानी स्थित उत्तराखंड सदन में हो चुकी है। बैठक में समान नागरिक संहिता के लिए महिला अधिकारों को केंद्र में रखने पर सहमति बनी है।

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राष्ट्रीय स्तर पर भी स्वतंत्रता प्राप्ति से ही समान नागरिक संहिता की मांग उठती रही है, लेकिन क्रियान्वयन के स्तर उत्तराखंड पहला राज्य बनने जा रहा है। देवभूमि के स्वरूप व सीमांत राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से प्रदेश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता बहुत पहले से ही महसूस की जा रही थी, लेकिन कभी किसी सरकार ने इस ओर सोचने का साहस नहीं किया। इस बीच प्रदेश के कई मैदानी व पहाड़ी जिलों में जनसांख्यिकीय बदलाव सामने दिखाई देने लगा। चीन व नेपाल से लगे क्षेत्रों में भी यह प्रवृत्ति दिखाई देने लगी। जनसांख्यिकीय बदलाव कुछ हद तक स्वाभाविक था, जबकि कई क्षेत्रों में यह नियोजित ढंग से भी हुआ। सीमांत क्षेत्रों व पौराणिक धार्मिक स्थलों के आसपास हो रहा यह बदलाव सुरक्षा व सद्भाव के लिए चुनौती बनता जा रहा है। बुद्धिजीवियों से शुरू हुई यह चिंता जब आम जन तक पहुंची तो भाजपा ने गत विधानसभा चुनाव में सत्ता में दोबारा लौटने पर प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा कर दी।

समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (दाएं) ने न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित की है एक समिति। फाइल

सत्ता में लौटने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस घोषणा पर अमल करने की वचनबद्धता दोहराई। सरकार ने गत 28 मई को इस दिशा में आगे बढ़ते हुए पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया। उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित समिति में न्यायमूर्ति प्रमोद कोहली, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौड़, शिक्षाविद् सुरेखा डंगवाल को बतौर सदस्य नामित किया गया। पूर्व में समिति में सदस्य के रूप में शामिल किए गए प्रदेश में मुख्य सचिव रहे शत्रुघ्न सिंह को गत जून माह में सदस्य सचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस तरह यह समिति विशेषज्ञता के हिसाब से बहुआयामी बन गई है। समिति में न्यायिक, सामाजिक, शैक्षणिक एवं प्रशासनिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व है।

समिति के प्रमुख कार्य एवं उत्तरदायित्व भी निर्धारित किए गए हैं। समिति को राज्य में निवास करने वालों के व्यक्तिगत नागरिक विषयों को नियंत्रित करने वाले प्रासंगिक कानूनों का मसौदा तैयार करना है। साथ ही वर्तमान में प्रचलित कानूनों में संशोधन व सुझाव उपलब्ध कराना है। समिति को विवाह व तलाक के प्रचलित कानूनों में एकरूपता लाने के लिए प्रस्ताव तैयार करना है। इसके अतिरिक्त संपत्ति, उत्तराधिकार, विरासत, गोद लेने, रखरखाव के कानूनों में एकरूपता के लिए प्रस्ताव बनाना भी समिति की जिम्मेदारी में शामिल किया गया है। कुल मिलाकर विशेषज्ञ समिति को इन सभी बिंदुओं को शामिल करते हुए समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करना है। सरकार की ओर से यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि समिति के सदस्य सभी प्रमुख धर्मो, समुदायों, जनजातियों के प्रतिनिधियों से संवाद कर सुझाव लेंगे। बुद्धिजीवियों व आम जन से भी सुझाव आमंत्रित किए जाएंगे। प्रदेश सरकार के बजट में समिति को अपने दायित्वों के संचालन में होने वाले खर्च के लिए वित्तीय व्यवस्था की गई है। समान नागरिक संहिता के प्रति सरकार की गंभीरता इससे स्पष्ट होती है कि समिति से छह माह के भीतर रिपोर्ट सौंपने की अपेक्षा की गई है। चुनावी घोषणापत्र में किए गए वायदे के प्रति सरकार की वचनबद्धता व अब तक की प्रगति प्रदेशवासियों में आशा बंधाती है।

कांग्रेस इस विषय पर बहुत संभल कर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि प्रदेश की जमीनी हकीकत को देखते हुए पार्टी के हित में मुखर नहीं हो रही है। कई कांग्रेसी नेताओं का यह भी मानना है कि इसके विरोध में उतरना पहले ही हाशिये पर चल रही पार्टी के भविष्य के लिए खतरनाक हो सकता है।

[राज्य संपादक, उत्तराखंड]


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