IAS Pooja Singhal: ईडी ने पूछताछ में उनसे कहा- अपना मुंह खोलिए, नहीं तो हमारे पास दूसरे भी तरीके हैं...
Jharkhand News भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार आइएएस पूजा सिंघल से जुड़े मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने राज्य के कई जिला खनन पदाधिकारियों को समन दिया है। इनमें कई डीएमओ पूछताछ से भाग रहे हैं। कोर्ट में कहा कि उनसे पूछताछ के लिए ईडी के पास दूसरे तरीके भी हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand News झारखंड की निलंबित आइएएस अधिकारी पूजा सिंघल की रिमांड अवधि बढ़ाने के लिए ईडी ने कोर्ट में जो तर्क दिया, उसमें यह भी बताया कि कुछ जिला खनन पदाधिकारी पूछताछ में शामिल नहीं हो पाए हैं। एक ने तो बेटी की शादी के चलते नहीं आने की बात कही थी। इसपर कोर्ट ने ईडी से कहा कि अगर वे नहीं आएंगे तो ईडी के पास पूछताछ के लिए और कोई तरीका नहीं है? इसपर ईडी ने कहा कि अगर वे नहीं आएंगे तो ईडी के पास दूसरे तरीके भी हैं। इशारे-इशारे में ईडी ने भी यह संकेत दे दिया है कि जो जिला खनन पदाधिकारी समन के बाद ईडी कार्यालय नहीं पहुंचेंगे, उनसे ईडी सख्ती से भी पेश आ सकता है।
झारखंड में खनिजों का दोहन
झारखंड की धरती रत्नगर्भा है। प्रकृति ने राज्य को अमूल्य खनिज संपदा दी है। कोयला, लोहा, बाक्साइट समेत तमाम खनिज संपदा का पर्याप्त भंडार यहां मौजूद है, लेकिन इस अमूल्य खनिज संपदा के अत्यधिक दोहन और इसके पीछे पनप रहे भ्रष्टाचार के लगातार सामने आते मामलों से अब यह लगने लगा है कि यह खनिज प्रदेश के लिए वरदान तो कतई नहीं हैं। खनिजों के अत्यधिक दोहन से जहां पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के आसार दिखाई देने लगे हैं वहीं, लगातार भ्रष्टाचार के आते मामलों से राज्य की छवि को भी धक्का लगा है। खनिजों का दोहन पर्यावरण के मानकों के अनुरूप और पारदर्शी तरीके से हो तो विकास की गति को तेज करता है लेकिन यदि नियमों की अनदेखी की जाए तो इसके प्रतिकूल परिणाम सामने आते हैं। यह दिख भी रहा है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के लगातार निर्देश के बावजूद नदियों से बालू का अंधाधुंध उठाव किया जा रहा है। इससे जुड़े भ्रष्टाचार के तमाम मामले भी सामने आते रहते हैं। इससे जहां नदियों का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित हो रहा है, वहीं राज्य को राजस्व की क्षति भी हो रही है। सिर्फ बालू ही नहीं, कोयला, पत्थर, लाइम स्टोन, आयरन ओर, बाक्साइट समेत तमाम खनिजों का दोहन मानकों को ताक पर रखकर किया जा रहा है। प्रवर्तन निदेशालय की हालिया जांच में भी यह बातें सामने आ रही है।
स्पष्ट हो रहा है कि खनिज के दोहन से जुड़ी भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं जो प्रदेश को चौतरफा नुकसान पहुंचा सकती है। दुर्भाग्य यह है कि इस कार्य में उन अफसरों की भूमिका सामने आ रही है, जिन पर इनके संरक्षण की जवाबदेही है। स्पष्ट है कि अफसर व नेताओं का गठजोड़ इसके लिए जिम्मेदार है। इसमें जांच की प्रक्रिया चल रही है तो आगे और भी खुलासे होंगे। इससे जहां राज्य को राजस्व की भारी क्षति पहुंच रही है वहीं, प्रकृति को भी नुकसान पहुंच रहा है।
कोशिश इस स्तर पर हो कि गलती से सबक लेते हुए कलंक को धोना चाहिए। सिस्टम में बैठे लोगों को अपनी जवाबदेही का एहसास होना ही चाहिए। खनिजों के असीमित दोहन और इसके पीछे पनप रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना ही होगा। पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह आवश्यक है। अधिक पाने की लालच में प्राकृतिक असंतुलन का खतरा उत्पन्न हो सकता है जो आने वाली पीढ़ी के लिए अत्यधिक नुकसानदायक होगा।