गोपालगंज के थावे मंदिर जाने वाले नहीं भूलते पिड़किया मिठाई, साधु बाबा वाली कहानी भी सुनाते हैं कारीगर
बिहार की शुद्ध देसी मिठाई पिड़किया का कोई जवाब नहीं गोपालगंज के थावे में देवी मंदिर आने वाले नहीं भूलते यह मिठाई खरीदना थावे से शुरू होकर पटना सहित कई जिलों में फैल चुका है इस मिठाई का कारोबार
थावे (गोपालगंज), संवाद सूत्र। उत्तर प्रदेश की सीमा से बिल्कुल सटा बिहार का एक जिला है गोपालगंज। गोपालगंज के थावे में देवी का सुप्रसिद्ध मंदिर है, जहां दोनों ही राज्यों के आसपास के जिलों के लोग शीश नवाने आते रहते हैं। इसी गोपालगंज और थावे की एक पहचान पिड़किया मिठाई भी है। गोपालगंज में जब बात मिठाई की हो तो पिड़किया का नाम सबसे पहले जुबां पर आता है। आए भी क्यों न पिड़किया काफी स्वादिष्ट जो होती है।तभी तो गोपालगंज और खासकर थावे वाली माता का दर्शन करने आने वाले लोग पिड़किया खाना व साथ लेकर जाना नहीं भूलते हैं। पिड़किया की सबसे ज्यादा खरीद थावे आने वाले श्रद्धालु ही करते हैं।
सिवान के रहने वाले गौरीशंकर ने शुरू किया पिड़किया का कारोबार
बताया जाता है कि गौरीशंकर साह ने यहां पिड़किया बनाकर बेचने की शुरुआत की थी। वे सिवान जिले के जीरादेई थाना के नरेन्द्रपुर गांव के लक्ष्मी साह के पुत्र गौरीशंकर साह बताए जाते हैं। पिता की मृत्यु हो जाने के बाद गौरी शंकर साह अपने चार भाइयों के साथ अपने मामा के घर थावे के विदेशी टोला गांव में आकर रहने लगे। अपने मामा बुनिलाल साह के यहां रहकर पिड़किया का कारोबार करने लगे। मेला और देहातों में जाकर घूम-घूमकर पिड़किया बेचते थे। इसके साथ ही थावे स्टेशन के पास मिठाई की दुकान भी चलाते थे।
परिवार के लोग साधु से जोड़ते हैं पिड़किया की कहानी
स्वजन बताते हैं कि एक दिन गौरी शंकर साह स्टेशन स्थित अपने दुकान पर बैठे थे। एक साधु आए, मिठाई खाने के लिए मांगे और बोले कि हमेशा मिठाई शुद्ध घी में बनाना। मिठाई देने के बाद दुकानदार को साधु आशीर्वाद देकर चले गए। जैसे ही दुकानदार पीछे घूमे तो पाया कि साधु बाबा अदृश्य हो चुके हैं। तब से शुद्ध घी से पिड़किया बनाई जाने लगी।
गोपालगंज से लेकर थावे तक इनकी दुकानें
गौरी शंकर साह चार भाई थे। सबसे बड़े भाई गौरीशंकर साह थे। इसके बाद क्रमश: जटा शंकर साह, शिवशंकर साह और विश्वनाथ साह थे। इन चारों भाई के परिवार से आज लगभग 100 परिवार हैं। स्वजन बताते हैं कि पिड़किया बनाने का काम लगभग 1947 से किया जा रहा है। इन लोगों की दुकान थावे में 12, गोपालगंज में 2, बड़हरिया में 2, सिवान में 1 और पटना में 1 है। चारों भाइयों के परिवार के लोगों की आजीविका पिड़किया के धंधे से चलती है। सभी दुकानों को चलाने में लगभग 100 मजदूर लगे रहते हैं। इनलोगों की रोजी-रोटी इन्हीं दुकाों से चलती है।
शुद्ध घी और खोवा डालकर बनती है यह मिठाई
दुकानदार दीनबंधु प्रसाद, धनजी प्रसाद और नंदजी प्रसाद ने बताया कि पिड़किया शुद्ध घी और खोवा डालकर बनाई जाती है। एक दुकान से प्रतिदिन लगभग 50 किलो पिड़किया की बिक्री हो जाती है। सोमवार और शुक्रवार को इसकी 75 किलो से अधिक होती है। चैत्र और शारदीय नवरात्र में इसकी बिक्री एक क्विंटल से अधिक हो जाती है।
प्रतिदिन बनी है पिड़किया
बताया गया कि गौरीशंकर की सभी दुकानों में प्रतिदिन पिड़किया बनाई जाती है। इससे लोगों को ताजा पिड़किया मिल जाती है। लोग सामने पिड़किया बनती देख इसे खरीदना पसंद करते हैं। दुकानों पर साफ-सफाई का ख्याल रखा जाता है। अपने निरीक्षण के दौरान थावे जंक्शन पहुंचे वाले वाराणसी रेलमंडल के से लेकर जोन तक के अधिकारी पिड़किया जरूर खरीदते हैं। साथ ही अपने घर भी ले जाते हैं। थावे जंक्शन पर वन स्टेशन-वन प्रोडक्ट के तहत पिड़किया गया चयन किया गया है। यानी, जल्द ही थावे जंक्शन पर यात्री पिड़किया खरीद सकेंगे।
थावे मंदिर के प्रधान पुजारी सुरेश पांडेय ने बताया कि थावे दुर्गा मंदिर परिसर में भी पिड़किया की दुकानें खोली गई हैं। मां का दर्शन करने वाले भक्त प्रसिद्ध पिड़किया खरीद कर ले जाते हैं। बहुत पहले से यहां की पिड़किया प्रसिद्ध है। जिले ही नहीं दूरदराज से आने वाले श्रद्धालु मां की पूजा-अर्चना करने के बाद पिड़किया अवश्य खरीदते हैं।
थावे के रहने वाले चंद्रदेव यादव उर्फ डोमा यादव बताते हैं कि पिड़किया यहां की प्रसिद्ध मिठाई है। किसी भी समारोह में पिड़किया लोगो को खिलाई जाती है। रामनवमी के अवसर पर आयोजित थावे महोत्सव में आए अतिथियों को भी पिड़किया खिलाई गई थी।