शेखपुरा में लोग खुलेआम कर रहे हैं प्लास्टिक बैग का उपयोग
जाटी शेखपुरा अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस के अवसर पर जिले में इसका कहीं भी असर
जाटी, शेखपुरा:
अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस के अवसर पर जिले में इसका कहीं भी असर दिखाई नहीं पड़ा। वहीं एकल उपयोग के प्लास्टिक पर प्रतिबंध का असर भी तीसरे दिन भी दिखाई नहीं दिया। आम लोगों में जागरूकता की कमी और प्रशासनिक शिथिलता से यह हो रहा है। सब्जी दुकानदार, फल दुकानदार, किराना दुकानदार से लेकर विभिन्न तरह के व्यवसायिक स्थलों पर खुलेआम पालीथिन का उपयोग दिखाई पड़ा। बेझिझक लोग प्लास्टिक के बैग का उपयोग करते देखे गए। कहीं कोई रोक-टोक नहीं दिखाई पड़ा। एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध का अभियान नहीं
जिला मुख्यालय के बाजारों में एकल उपयोग के प्लास्टिक पर प्रतिबंध को लेकर अभियान चलाने की तैयारी एक जुलाई से की गई थी। नगर परिषद शेखपुरा के कार्यपालक पदाधिकारी प्रभात रंजन के अचानक स्थानांतरण की वजह से यह कार्यक्रम रुक गया । उसके बाद इस पर कोई पहल नहीं हुई। जिले के अन्य प्रखंडों में भी किसी तरह की पहल नहीं की गई। जबकि बरबीघा नगर परिषद में कार्यपालक पदाधिकारी ज्योत प्रकाश के द्वारा शनिवार को एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध को लेकर अभियान चलाने की बात कही गई थी, परंतु कहीं भी अभियान नहीं चलाया गया।
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प्रतिबंध हुआ बेअसर तो बेरोजगार हुए उद्यमी शेखपुरा नगर परिषद के जमालपुर मोहल्ले में उद्यमी आनंद मोहन के द्वारा पिछले साल पालीथिन पर प्रतिबंध के बाद उपयोग में आने वाले थैली के निर्माण का काम शुरू किया गया। इसमें एक दर्जन स्थानीय युवाओं को भी रोजगार दिया गया। प्रतिबंध से उत्साहित होकर युवाओं ने 25 लाख रुपये लगाए, परंतु जब पालीथिन पर प्रतिबंध बेअसर हो गया तो उधमी के साथ-साथ एक दर्जन लोगों का रोजगार भी छिन गया। इनको काफी नुकसान भी हुआ। उद्यमी बताते हैं कि प्रतिबंध के बेअसर होने से उनको काफी व्यापार में नुकसान हुआ है। - कागज का ठोंगा बनाने वालों में उत्साह पालीथिन पर प्रतिबंध लगने से कागज का ठोंगा बनाने वालों में उत्साह देखा जा रहा है। जिले के शेखपुरा नगर परिषद और बरबीघा नगर परिषद के कई मोहल्लों में महिलाओं का यह कुटीर उद्योग है। शेखपुरा के जमालपुर निवासी सुनीता देवी कहती है कि अब ठोंगा की मांग बढ़ गई है। वे लोग खूब मेहनत कर रहे हैं।
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लौटेगें मिट्टी की प्याली के पुराने दिन प्लास्टिक के ग्लास का विकल्प अभी नहीं होने से लोगों में परेशानी है। पेप्सी और काफी में उपयोग होने वाले ग्लास पर प्रतिबंध है। ऐसे में अब मिट्टी की प्याली की मांग बढ़ेगी। अभी इसका उत्पादन नहीं हो रहा है। चाय का कुल्हड़ बाजार में उपयोग में है। बाजार में मशीन से ग्लास बनाने की पहल भी लोग करने लगे है। उधर, थर्माकोल की थाली बगैरह बेचने वालों के गोदाम में अभी प्रचुर मात्रा में सामान रखा हुआ है चोरी व चुपके से इसकी बिक्री हो रही है। हालांकि विकल्प के रूप में कागज की थाली बाजार में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। उसकी कीमत थर्माकोल से 30 रुपये प्रति सैकड़ा महंगा है। वहीं एक दुकानदार ने बताया कि उपयोग में आने वाला बैग एक रुपये प्रति पीस पड़ता है इसलिए दुकानदार अब ग्राहक को यह उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं।