अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए भागे फिर रहे पूर्व विधायक बैंस...पढ़ें लुधियाना की और भी रोचक खबरें
पूर्व विधायक बैंस अपनी गिरफ्तार से बचने के लिए भागे फिर रहे हैं। वैसे तो दुष्कर्म के केस में जो धाराएं लगी हैं उसमें तत्काल गिरफ्तारी का प्रविधान है लेकिन राजनीतिक दबाव में पूर्व विधायक बचते रहे। अदालत ने भी चुनाव के समय उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा राहत दी।
लुधियाना [भूपेंदर सिंह भाटिया]। नेताजी, ये तो होना ही था..एक समय था, जब पूर्व विधायक सिमरजीत बैंस का दबदबा था। मात्र दो विधायकों वाली पार्टी होने के बावजूद वह विधानसभा में खूब शोर मचाते थे। कई बार तो मार्शलों ने भी उनको उठाकर सदन से बाहर किया। जब मन आया, किसी भी सरकारी दफ्तर में घुसकर अफसरों के खिलाफ स्टिंग आपरेशन कर देते थे। उन्हें लेकर अफसरों में हमेशा खौफ रहता था। हालांकि, ये सब वक्त का ही फेर है कि आज वही विधायक अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए भागे फिर रहे हैं। वैसे तो दुष्कर्म के केस में जो धाराएं लगी हैं, उसमें तत्काल गिरफ्तारी का प्रविधान है, लेकिन राजनीतिक दबाव में पूर्व विधायक बचते रहे। अदालत ने भी चुनाव के समय उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा राहत दी, लेकिन सरकार बदलते ही आखिरकार अदालत ने भी उन्हें राहत देने से इन्कार कर दिया। अब यही चर्चा हर जगह है कि ये तो होना ही था।
धीमी रफ्तार अब साबित हुई प्रभावी
पूर्व विधायक सिमरजीत सिंह बैंस पर लगे दुष्कर्म के आरोपों में कितनी सच्चाई है, इसका फैसला तो अदालत में ही होगा लेकिन इस सारे खेल में दो पूर्व विधायकों के बीच आपसी अहम भी है। पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए शिअद के पूर्व विधायक व एडवोकेट हरीश ढांडा शुरू से ही लगे हुए हैं। वह पीड़िता का केस भी मुफ्त में लड़ रहे हैं, जबकि सिमरजीत बैंस को उनके साथी व एक पूर्व मंत्री हमेशा बचाते रहे हैं। यही कारण था कि पिछली सरकार के कार्यकाल में उनके खिलाफ पुलिस कोई भी कार्रवाई करने से कतराती रही। यहां तक कि पीड़िता के बयान पर एफआइआर दर्ज करने में भी काफी समय लगा। इधर, पूर्व विधायक ढांडा भी हार मानने को तैयार नहीं थे। आखिरकार अदालत में जिरह के बाद सिमरजीत बैंस को भगोड़ा करार दे दिया गया। कानूनी रफ्तार धीमी जरूर थी, लेकिन अब प्रभावी बन गई।
मत्तेवाड़ा का दर्द ना जाने कोई
मत्तेवाड़ा में बनने वाले इंडस्टियल पार्क के प्रोजेक्ट को सरकार की ओर से हरी झंडी दिए जाने के बाद एक बार फिर राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। सत्ता में आने से पहले तक आम आदमी पार्टी इसका विरोध कर रही थी, जबकि अब उसने सहमति दे दी। दूसरी ओर इस इंडस्टियल पार्क का प्रस्ताव रखने वाली पिछली कांग्रेस की सरकार के नेता अब विरोध में खड़े हो गए हैं। कांग्रेस के नेता मत्तेवाड़ा पहुंच लोगों को विरोध करने के लिए लामबंद कर रहे हैं। उधर, भले ही इसके लिए जमीन एक्वायर कर ली गई है, लेकिन सेखेवाल की पंचायत ने इसके विरोध में झंडा बुलंद कर दिया है। उसका कहना है कि इंडस्ट्री लगने से न सिर्फ मत्तेवाड़ा जंगल खत्म होगा, बल्कि सतलुज में उसी तरह प्रदूषण बढ़ेगा, जैसे लुधियाना में बुड्ढा दरिया प्रदूषित हुआ है। अब पंचायत सरकार से अपील कर रही है कि मत्तेवाड़ा का दर्द समझें।
अब विधायकों से बढ़ गई अपेक्षा
गली-मोहल्लों की समस्याओं के लिए पहले लोग इलाका पार्षद या निगम अधिकारियों के समक्ष धरना-प्रदर्शन करते थे, लेकिन अब वह हर छोटी बात के लिए भी विधायक के पास पहुंचने लगे हैं। यदि विधायक नर्म हो तो उसके समक्ष धरना प्रदर्शन से गुरेज तक नहीं करते। कारण, चुनाव से पहले आप उम्मीदवारों से उनकी अपेक्षाएं बढ़ गई थीं। उम्मीदवारों ने खुद को आम आदमी का प्रतिनिधि बताकर उनकी हर समस्या हल करने का वादा किया था। यही कारण है कि हलका लुधियाना दक्षिण में लोग छोटी-छोटी समस्या को लेकर पार्षद के पास जाने के बजाय सीधा विधायक के सामने धरना देने पहुंच जाते हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि आप के पार्षद नहीं हैं और कांग्रेस व अकाली पार्षदों से उन्हें समस्या हल होने की उम्मीद नहीं है। अन्य दलों के लोग भी समस्याओं में घिरे लोगों को धरनों के लिए प्रोत्साहित करने से नहीं चूकते।