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खिसक सकती हैं हिमालय की चट्टानें, टिहरी-धरासू-उत्तरकाशी राजमार्ग के कई हिस्सों में लैंड स्लाइड का खतरा

By Deepak Kumar PandeyEdited By: Published: Tue, 05 Jul 2022 11:16 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jul 2022 11:16 AM (IST)
खिसक सकती हैं हिमालय की चट्टानें, टिहरी-धरासू-उत्तरकाशी राजमार्ग के कई हिस्सों में लैंड स्लाइड का खतरा
उत्तराखंड के धरासू से उत्तरकाशी जाने वाले मार्ग पर खतरा ज्यादा है।

जागरण संवाददाता, धनबाद: हिमालय क्षेत्र में चट्टनों के खिसकने की संभावना बलवती हो गई है। यहां के टिहरी-उत्तरकाशी मार्ग के कई हिस्सों में लैंड स्लाइडिंग का खतरा है। चौंकिए नहीं, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाॅजी (आइएसएम) के जियोलाजी विभाग विभागाध्यक्ष डाॅ. मृ़णालकांत मुखर्जी और शोध छात्र अनिल कुमार गुप्ता ने इस इलाके की चट्टानों के अध्ययन के बाद ये निष्कर्ष निकाले हैं।

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शोध में पता चला है कि उत्तराखंड के धरासू से उत्तरकाशी जाने वाले मार्ग पर खतरा ज्यादा है। इस मार्ग पर 12 जगहों की भी विज्ञानियों ने पहचान की है। जो कभी भी भूस्खलन की चपेट में आ सकती हैं। इन जगहों को सुरक्षित करने के उपाय भी राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को विज्ञानियों ने सुझाए हैं। डाॅ. मृणालकांत ने तस्वीरों के माध्यम से पूरी स्थिति बयां की है। उनके शोध का प्रकाशन प्रतिष्ठित जर्नल राक मैकेनिक्स में प्रकाशित हुआ है।

डाॅ. मुखर्जी के मुताबिक कई वर्ष से चट्टानों के अध्ययन के बाद ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे पता चल सके कि कहां भूस्खलन का खतरा है। इसमें चट्टानों की स्थिति, आणविक संरचना, यांत्रिकी मजबूती, ढलानों की स्थिरता समेत कई बिंदुओं पर अध्ययन कर परिणाम तक पहुंचा जाता है।

देश में पहली बार किसी भी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित भूस्खलन संभावित जगहों की पहचान के लिए यह अध्ययन हुआ है। राजमार्ग के किनारे भूस्खलन और सड़क धंसने की समस्या से जूझ रहे हैं। छोटी ब्लाक वाली ढलान, शिखर का धंसान, बड़ी और उथली चट्टानों का फिसलना भी अचानक होता है। इससे राजमार्ग का निर्माण और रखरखाव चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इस समस्या से निपटने के लिए चेतावनी प्रणाली विकसित करने की तकनीक पर काम कर रहे हैं।

बड़ी संख्या में यहां से गुजरते तीर्थ यात्री

बकौल प्रो. मुखर्जी, धरासू-उत्तरकाशी मार्ग के ढलान वाले क्षेत्र को हमने भूवैज्ञानिक जांच के लिए चुना। यहां पहले भी सड़क धंस चुकी है। यहां के कई ढलान काफी अस्थिर हैं। कारण, ढलानों पर ठोस चट्टान नहीं हैं। वह मिट्टी और पत्थरों का मिश्रण हैं। यह महत्वपूर्ण मार्ग आगे यमुनोत्री को जाता है। मार्च से अगस्त तक यहां बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों का आवागमन होता है। भूस्खलन से जानमाल का खतरा होता है।


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