Dainik Jagran Samvadi 2019 Lucknow UP: काम से यारी का पैगाम दे गया मुंबई से आया दोस्त
Dainik Jagran Samvadi 2019 Lucknow : संवादी... यानि साहित्य, रंगमंच, लोककला, नृत्य, गायन और वादन के दिग्गजों से साहित्य, राजनीति, संगीत, खान-पान, सिनेमा, धर्म और देशभक्ति समेत कई मुद्दों पर खुलकर एक मंच पर चर्चा। तीन दिन, बीस सत्र और संवाद की अथाह संभावनाओं के साथ संवादी आपके साथ है। भारतेंदु नाट्य अकादमी के मंच पर शुक्रवार को जब छठे संस्करण का पर्दा उठा, तो मंच से दर्शकदीर्घा तक सिर्फ एक ही गूंज थी अभिव्यक्ति की। शनिवार को दूसरे दिन सात सत्रों में वक्ताओं के साथ साहित्य, धर्म जैसे कई विषयों पर चर्चा होगी। हर बार की तरह यह संस्करण भी इस वादे के साथ पेश है कि साहित्यिक क्षुधापूर्ति के साथ इसकी यादें आपके जेहन में अमिट रहेंगी।
Dainik Jagran Samvadi 2019 Lucknow : संवादी... यानि साहित्य, रंगमंच, लोककला, नृत्य, गायन और वादन के दिग्गजों से साहित्य, राजनीति, संगीत, खान-पान, सिनेमा, धर्म और देशभक्ति समेत कई मुद्दों पर खुलकर एक मंच पर चर्चा। तीन दिन, बीस सत्र और संवाद की अथाह संभावनाओं के साथ संवादी आपके साथ है। भारतेंदु नाट्य अकादमी के मंच पर शुक्रवार को जब छठे संस्करण का पर्दा उठा, तो मंच से दर्शकदीर्घा तक सिर्फ एक ही गूंज थी अभिव्यक्ति की। शनिवार को दूसरे दिन सात सत्रों में वक्ताओं के साथ साहित्य, धर्म जैसे कई विषयों पर चर्चा होगी। हर बार की तरह यह संस्करण भी इस वादे के साथ पेश है कि साहित्यिक क्षुधापूर्ति के साथ इसकी यादें आपके जेहन में अमिट रहेंगी।
काम से यारी का पैगाम दे गया मुंबई से आया दोस्त
सातवें सत्र मुंबई से आया मेरा दोस्त में अभिनेता और लेखक पवन मल्होत्रा ने अपने शुरुआती कैरियर से जुड़े संस्मरणों को साझा किया। उन्होंने कहा, सफलता को कोई फिक्स सांचा नहीं होता है। जो भी मेरे झोली में काम आया, करता गया। मेरे लिए सभी फिल्में आर्ट फिल्में होती हैं..अब सिनेमा में बदलाव आ गया है। पुरानी फिल्मों का कोई जवाब नहीं है। आज भी आप अपने बच्चों को मदर इंडिया दिखा सकते हैं। पवन ने बताया कि मैंने कभी कुछ प्लान नहीं किया। सब कुछ होता चला गया। आज भी जब लोग सलीम लंगड़े पे मत रो या बाघ बहादुर फिल्म का जिक्र करते हैं तो अच्छा लगता है। दो तरह के एक्टर होते हैं। एक वे जो प्यार पाते हैं, एक वे जो इज्जत। यह अभिनेता पर निर्भर है कि वह किस तरह का अभिनेता बनना चाहता है। टिकटॉक वगैरह पर अगर कोई समय बिता रहा है या वीडियो बना रहा है तो बनाने दीजिए। पता नहीं कहां से कब कौन सी राह निकल आए। मेरा शौक ही मेरी रोजीरोटी बन गया। इससे अच्छी बात और क्या होगी। हर तरह की कहानियों पर फिल्म बननी चाहिए। आज बन भी रही हैं।
पवन मल्होत्रा हिंदी फिल्मों एवं टीवी के प्रसिद्ध अभिनेता हैं। दूरदर्शन के धारावाहिक नुक्कड़ से प्रसिद्ध हुए। भाग मिल्खा भाग, ब्लैक फ्राइडे, डॉन, बाघ बहादुर जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। यतीन्द्र संगीत और साहित्य के अध्येता हैं। लता सुरगाथा कृति के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिल चुका है। साहित्य जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए रजा पुरस्कार, भारत भूषण अग्रवाल स्मृति आदि पुरस्कार भी प्राप्त हैं।
किसी को हंसाना बहुत मुश्किल काम
संवादी के छठे सत्र हज़लगोई की खत्म होती रवायत में असमत मलीहाबादी ने कहा, जीवन में हंंसाना बहुत मुश्किल काम है। जो हज़लगोई कर ये काम कर देता है वो बिल्कुल नेक काम कर रहा है।
हज़लगोई की खत्म होती रवायत
सेल्फ डिफेंस कार्यक्रम में लाखों छात्राओं को किया ट्रेंड
सुनील आंबेकर ने कहा, महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून के साथ-साथ समाज की पहल जरूरी है। सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। संघ ने सेल्फ डिफेंस कार्यक्रम में आठ लाख छात्राओं को ट्रेनिंग दी गई और यह सतत जारी है । अन्य कई योजना भी बनाई जा रही है।
भारतीय संस्कृति सबसे अलग
सुनील आंबेकर ने कहा, भारतीय संस्कृति अन्य से बिल्कुल अलग है। हम सभी परम्परों का स्वागत करते हैं। हम किसी को हिन्दू मुस्लिम में नहीं बांटते हैं । बस हमें अपने पूर्वजों को जानना चाहिए । श्री राम हमारे पूर्वज हैं।
संघ देश को सुरक्षित बनाना चाहता है
गांधी की तरफ संघ के झुकाव पर सुनील ने कहा कि महत्मा गांधी कई बार संघ जाते थे। संघ देश को सुरक्षित बनाना चाहता है। 2047 में भारत की स्थिति पर सुनील बोले, हमारे देश में परिवार महत्वपूर्ण रहा है। आने वाले समय में सब ठीक तभी हो सकता है, जब हम प्यार का रिश्ता बनाए रखे। हमनें जीवन के मूल्यों को बढ़ावा दिया है। संघ में महिलाओं की भूमिका पर सुनील ने कहा कि 1936 में संघ बना। संघ की शाखा मुहल्ले में लगती है, जब लोग मांग करेगे तब ऐसा हो सकता है। एबीवीपी में महिलाएं है, जो प्रचार-प्रसार में लगी हैं।
संघ में कुछ भी कॉम्प्लिकेटेड नहीं
बुक स्टाल पर साहित्य प्रेमियों का जमावड़ा
बेहद आत्मबोधित होती है आत्मकथा
हृषीकेश सुलभ कहते हैं कि हिंदी में लेखक संपादक नहीं रखते थे, हिंदी में पेशेवर नाम की कोई चीज़ नहीं थी। अब नया दौर आया है, प्रकाशक सोचने लगे हैं। उपन्यास में काम न कर संस्करण बनाने पर भगवानदास मोरवाल ने कहा कि जब लेखक लिखने बैठता है तो कई चीज छूट जाती हैं। आत्मकथा, बेहद आत्म बोधित होती है। इस दौरान भगवानदास ने बताया कि उनका पसंद का उपन्यास आधा गांव, मैला आंचल है। 20 साल बाद उपन्यास की स्थिति बताते हुए भगवानदास ने कहा कि आने वाले 20 वर्षो मे उपन्यास का अच्छा समय आयेगा।
खानपान का भी मिल रहा मजा
संवादी सिर्फ साहित्य, संस्कृति और कला का मंच ही नहीं है, यहां भरपूर मनोरंजन भी होता है। यह ऐसा प्लेटफार्म है, जहां लोग एक तरफ पूरे परिवार के साथ आकर ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाते हैं तो दूसरी ओर खानपान का मजा भी लेते हैं। शनिवार को भारतेंदु नाट्य अकादमी में चल रहे संवादी के दूसरे दिन कुछ ऐसा ही नजारा दिखा। कोई परिवार के साथ छोले भटूरे का लुत्फ ले रहा था, तो कुछ लोग कुल्हड़ से उठती सोंधी महक वाली चाय की चुस्कियां लेते हुए गपशप करते नजर आए।
बड़े उपन्यासकार और नए उपन्यासकार
बड़े उपन्यासकार और नए उपन्यासकार के अंतर को स्पष्ट करते हुए सत्यानंद निरुपम ने कहा कि कभी-कभी पुराने लेखक भी लचीले होते हैं, कभी-कभी नए लेखक भी कठोर होते हैं।
अब मझले उपन्यास का समय
उपन्यास की परंपरा में आ रहे बदलाव और साहित्य में बायोपिक के शामिल होने के बारे में सत्यानंद निरुपम ने कहा कि लोगों के पास समय कम हो गया है। अब मझले उपन्यास का समय आ गया है। बात किताब की मोटाई में नहीं, उसमें लिखी बात की होती है। हिंदी पाठक बड़े उपन्यास भी पढ़ना चाहता है, हर तरह के लोग है। वहीं, हृषीकेश ने कहा कि कहानी लिखने की एक कला है, लिखने के लिये अनुशासन चाहिए। भगवानदास मोरवाल ने कहा कि उपन्यास लेखक के धर्य और अनुशासन की मांग करता है, लेखक के सामने चुनौती यही होती है कि पुराने अनुभव का अतिक्रमण करे।
हृषीकेश सुलभ हिंदी के समकालीन शीर्ष लेखकों मे हैं। कहानी, नाटक और रंगमंच आलोचना की विधाओं के लिए जाने जाते हैं। कहानी संग्रह वसंत के हत्यारे के लिए इंदु शर्मा अंतरराष्ट्रीय कथा सम्मान मिला। बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, अनिल कुमार मुखर्जी सम्मान, रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान भी मिला है।
भगवानदास मोरवाल : कहानी एवं उपन्यासकार हैं। काला पहाड़, बाबल तेरा देस में जैसे उपन्यास लिखने के लिए पहचाने जाते हैं। कहानी संग्रह, कविता संग्रह समेत कई पुस्तकें प्रकाशित कर चुके हैं। दिल्ली हिंंदी अकादमी सम्मान, यूके कथा सम्मान के अलावा कई पुरस्कार मिले हैं।
सत्यानंद निरुपम : दिल्ली विश्वविद्यालय से एमफिल का लघु शोध कार्य पूरा करने के बाद एनसीईआरटी में बतौर जूनियर प्रोजेक्ट फेलो काम किया। 1996 में राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस, हैदराबाद में गोरखपुर के बाल श्रमिकों की स्थिति पर तैयार किए अनुभव पत्र के लिए सम्मान मिल चुका है।
तीसरा सत्र : साहित्य का स्वर्ण युग
तीसरे सत्र साहित्य का स्वर्ण युग में वक्ता रत्नेशर ने कहा कि आज नई सदी में स्वर्ण युग का दरवाजा खुल गया है। आज लेखकों को पैसे भी मिलने लगे हैं। वहीं अमरीक सिंह दीप ने बताया कि पहले मैं फैक्टरी में वर्कर था। मैंने साहित्य पढ़ा इसके बाद लिखना सीखा। इसलिए मेरे लिए यही स्वर्ण युग है।
राजेंद्र राव ने कहा, आज के लेखकों के पास ढेर सारे प्लेटफार्म है। साथ ही नये लेखकों के पास उसे पाठकों तक पहुँचाने का भी माध्यम है। लेकिन आज के लेखक साहित्य के मानकों पर खरा नहीं उतरता। साहित्य के मानकों को बेस्ट सेलर तय नहीं करता है।
राजेंद्र राव वरिष्ठ कथाकार हैं। साहित्य जगत में बुलंदियों को स्पर्श किया और ङ्क्षहदीजनों के मनों में अमिट छाप छोड़ी। कथा विधा के जीवंत प्रतिमान हैं। अभियांत्रिकी जैसे नीरस विषयों पर भी एक से बढ़कर एक कथाएं लिखकर हिंंदी साहित्य को समृद्ध किया। बदलते समय में पारंपरिक समाज की पारिस्थितिकी को अत्यंत बारीकी से अपनी कथाओं में उल्लिखित किया है।
शैलेंद्र सागर : प्रख्यात हिंंदी साहित्यकार हैं। कई कहानी संग्रह और उपन्यास प्रकाशित कर चुके हैं। चतुरंग और चलो दोस्तों सब ठीक है उनका प्रमुख उपन्यास है। विजय वर्मा सम्मान, प्रेमचंद सम्मान, महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान प्राप्त हैं।
अमरीक सिंह दीप : वरिष्ठ कथाकार हैं। किस्सगोई के उस्ताद माने जाते हैं। सौ से अधिक कहानियां विभिन्न श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। कहा जाएगा सिद्धार्थ, कालाहांडी, चांदनी हूं मैं, बर्फ का दानव, शाने पंजाब व ऋतुनागर प्रमुख कृतियां हैं।
बीएचयू में मज़हब का रिलेशन था
रिजवान अहमद ने कहा कि धर्म की भाषा होती है, पानी का मजहब नहीं है, लेकिन गंगा जल का मजहब है। अरबी एक भाषा है, लेकिन जब अजान होतीं है तो उसका मजहब होता है। शास्त्रों के ज्ञान के लिए बीएचयू के संस्कृत प्रोफेसर फिरोज खान ने 1918 में स्थापना की थी। इसी तरह हम नदवा में किसी अरबी के विद्वान को नौकरी नहीं देंगे। बीएचयू में मज़हब का रिलेशन था।
सेक्युलरिज्म को नॉनसेंस कहना संविधान के खिलाफ
मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि बीएचयू के नियम में था क्या कि पहले शिक्षक पहले अनुभव करें? अगर ऐसा नहीं तो सवाल क्यों। हर शिक्षक पढ़ाई को अनुभव करें तभी पढ़ा सकता है ऐसा नहीं है। मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि गैर मुस्लिम कई मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं। सेक्युलरिज्म को नॉनसेंस कहना संविधान के खिलाफ है।
भाषा को मजहब से नहीं जोड़ा जाना चाहिए
क्या धर्म की कोई भाषा हो सकती है, या धर्म की कोई भाषा होनी चाहिए? बनारस हिंदू विश्वविधालय में डॉ फीरोज खान को लेकर विवाद हुआ था, जिसके बाद ये सवाल उठा? इसपर मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, मजहब की भाषा प्यार होना चाहिए। सारे मज़हब की कैसे इज्जत करें। अगर फिरोज संस्कृत पढ़ाते तो एकता का पैगाम मिलता। भाषा को कभी मजहब से नहीं जोड़ना चाहिए। विनय पाठक, पंथ और धर्म अलग-अलग हैं, हिंदू शब्द किसी उप निषाद में नहीं है।
मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली : मुस्लिम धर्मगुरु एवं ईदगाह के ईमाम हैं। इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया एवं दारुल उलूम फरंगी महल के चेयरमैन के पद पर हैं। साथ ही पर्सनल लॉ बोर्ड में सदस्य हैं।
शोषक कभी शोषित के बारे में नहीं लिख सकता
विवेक कुमार कहते हैं कि चाल्स राइट मिल्स ने कहा है कि अगर हम किसी का इतिहास जानते हैं तो समाज को जानते हैं। एक हमें पैदा होते ही मिलती है, दूसरी हमें पैसे से मिलती है, तीसरी आप किस संस्थान से हैं। शिक्षा भी संस्कृति को बनाता है। कुछ लोग इस संस्कृति से वंचित हैं, जो हमारे नायक नायिकाओं के बारे मे पढ़ाने के बाद ही जान पाएंगे। शोषितों को अपना सहित्य लिखना पड़ता है। दलित साहित्य का प्रभाव है कि जो लोग बोल नहीं पाते थे, वे लिख रहे हैं। शोषक कभी शोषित के बारे में नहीं लिख सकता है।
पहला सत्र : 'दलित साहित्य का भविष्य'
जेएनयू के प्रो विवेक कुमार ने कहा कि दलितों में मुर्दैया का बहुत महत्व है। रविंद्र नाथ टैगोर पढ़या जाता है, लेकिन आंबेडकर के बारे मे खोजना पड़ता है। श्योराज सिंह बेचैन ने कहा कि दलित साहित्य मे काफी विविधता है। दलित व्यवस्थाओं का शिकार होते हैं, बहुजन समाज का हमने बहिष्कार कर रखा है। जब भारत आजाद हुआ तो, बटवारे के बाद जिन्ना का बयान आया कि इनके क्या काम हैं, आधे पाकिस्तान चले जायेंगे, आधे हिंदुस्तान में रहेंगे। जिस पर बाबा साहब ने कहा कि आप ऐसा कह सकते हैं, कि वो हमेशा गुलाम रहेंगे। कई दलित लेखक आ चुके हैं, इलेक्शन में दलित आते हैं, तो दलित का सहित्य क्यों नहीं स्वीकार करते हैं। साहित्य का सृजन भाई चारे और मानवीय गणों का समावेश है, हम भी साझेदारी कर सकते हैं।
श्योराज सिंह बेचैन प्रख्यात साहित्यकार हैं। छात्र जीवन से बाल सभा के अध्यक्ष रहे। ग्रेजुएशन के दौरान आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन के जिलाध्यक्ष का पद संभाला। साथ ही पत्र-पत्रिकाओं में कविता लेखन करते रहे। धीरे-धीरे कवर स्टोरी और आलोचना के फील्ड में उतरे। दलित विमर्श और दलित साहित्य पर काफी कुछ लिख चुके हैं।