Move to Jagran APP

बाघा बोर्डर के साथ पूर्णिया के झंडा चौक पर आधी रात को होता है ध्वजारोहण

देश में बाघा बोर्डर के साथ पूर्णिया शहर के झंडा चौक पर 14 अगस्त की मध्य रात्रि को ध्वजारोहण की अनूठी परंपरा पल रही है। 14 अगस्त की मध्य रात्रि पूरा शहर देशभक्ति के नारों से गूंज उठता है और लोग राष्ट्रीय महापर्व के रंग में डूब जाते हैं। इसकी सारी तैयारी इस बार भी पूरी हो चुकी है और शाम से ही इस चौक की रौनक चरम पर पहुंच गया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 08:34 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 08:34 PM (IST)
बाघा बोर्डर के साथ पूर्णिया के झंडा चौक पर आधी रात को होता है ध्वजारोहण
बाघा बोर्डर के साथ पूर्णिया के झंडा चौक पर आधी रात को होता है ध्वजारोहण

जागरण संवाददाता, पूर्णिया। देश में बाघा बोर्डर के साथ पूर्णिया शहर के झंडा चौक पर 14 अगस्त की मध्य रात्रि को ध्वजारोहण की अनूठी परंपरा पल रही है। 14 अगस्त की मध्य रात्रि पूरा शहर देशभक्ति के नारों से गूंज उठता है और लोग राष्ट्रीय महापर्व के रंग में डूब जाते हैं। इसकी सारी तैयारी इस बार भी पूरी हो चुकी है और शाम से ही इस चौक की रौनक चरम पर पहुंच गया। रोचक है इस परंपरा की शुरुआत की कहानी आधी रात को झंडोत्तोलन की परंपरा की शुरुआत की कहानी काफी रोचक है। वर्तमान में इस कार्यक्रम के मुख्य कर्ता धर्ता विपुल कुमार सिंह के अनुसार 14 अगस्त 1947 को यह तय था कि कभी भी देश के आजाद होने की घोषणा हो सकती है। इस प्रतीक्षा में शाम ढलने के बाद भी लोगों के आंखों की नींद हराम थी। इसी क्रम में उनके दादा सह स्वतंत्रता सेनानी व अधिवक्ता स्व. रामेश्वर प्रसाद सिंह, स्व. महावीर प्रसाद सिंह, डा. नरसिंह, स्व. मोलचंद बाबू, स्व. कमल प्रसाद सिन्हा, स्व. स्नेही जी, स्व. शमसुल हक, स्व. गणेश चंद्र दास, साहित्यकार सह सेनानी स्व. सतीनाथ भादुरी जैसे सेनानी शहर के झंडा चौक पर रेडियो पर कान टिकाए हुए थे।

loksabha election banner

आधी रात को ज्यों ही आजादी की घोषणा हुई, सेनानियों ने भारत माता की जय के नारे लगाने लगे। तब तक यह खबर शहर में फैल चुकी थी। इसी दौरान महिलाओं का एक बड़ा जत्था शंखनाथ करती हुई घर से निकल पड़ी और इसी चौक पर पहुंच गई। इस दौरान ही सर्वसम्मति से स्व. रामेश्वर प्रसाद सिंह ने रात बारह बजकर कुछ मिनट पर यहां झंडोत्तोलन किया। उसी दिन से यह परंपरा बन गई। आज भी झंडोत्तोलन के समय यहां शंखनाद होता है

तीसरी पीढ़ी कर रही अगुवाई

प्रथम बार स्व. रामेश्वर प्रसाद सिंह द्वारा झंडोत्तोलन किए जाने के बाद जब तक वे जीवित रहे, हर बार सेनानियों के आग्रह पर उनके द्वारा ही झंडोत्तोलन किया जाता रहा। उनके निधन के बाद स्थानीय लोगों के निर्णयानुसार उनके पुत्र सुरेश प्रसाद सिंह झंडोत्तोलन करते रहे। अब सुरेश प्रसाद सिंह के पुत्र विपुल कुमार सिंह इसकी अगुवाई कर रहे हैं। बीच के दौर में अधिवक्ता दिलीप कुमार दीपक व कुछ अन्य लोगों को भी यह सौभाग्य मिला।

प्रथम रात्रि बंटी थी चार मन जिलेबी, शमसुल के दुकान से लिया गया था तिरंगा 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि जब पहली बार झंडा चौक पर तिरंगा लहराया गया था, उस समय गणेश चंद्र दास के सौजन्य से यहां चार मन जिलेबी का वितरण हुआ था। बतौर विपुल कुमार सिंह उनके दादा जी बताते थे कि भीड़ के आगे जिलेबी कम पड़ गई थी। लोग एक-दूसरे को जिलेबी खिलाने को आतुर थे। उन्होंने बताया कि आधी रात को स्वतंत्रता सेनानी स्व. मो. शमसुल की दुकान से ही सेनानियों द्वारा तिरंगा लिया गया था। शमसुल सेनानियों के लिए खादी के वस्त्र तैयार करते थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.