विजय के कंधे पर थी परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ, बेटी को पढ़ाना चाहते थे डाक्टरी
विजय कुमार मौर्य दस साल पहले सीआरपीएफ में भर्ती हुए। उसके बाद से ही उनके ऊपर परिवार की जिम्मेदारी बढ़ती गई।
By Edited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 05:54 PM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 05:55 PM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। दस साल पूर्व बेटा विजय कुमार मौर्य की सीआरपीएफ में नौकरी लगते ही वृद्ध पिता रामायण मौर्य के सपने साकार होते दिखे। उन्हें लगा कि अब उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाएगी। चार संतानों में बड़ा बेटा गुजरात में एक निजी कंपनी में कार्य करता है। वह किसी तरह अपने बच्चों का जीवन-यापन कर पाता है। दूसरा बेटा कृष्ण कुमार की चार साल पहले किडनी की खराबी के चलते मौत हो गई। उसकी विधवा दुर्गावती की दो बेटिया रीता 8 साल व अमृता 6 साल की है। दोनो की परवरिश भी विजय के जिम्मे थी। पिता रामायण मौर्य की उम्र 72 वर्ष हो गई है। अब वे अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं। विजय के शहीद होने के बाद उसकी भाभी दुर्गावती, दोनों भतीजी रीता व अमृता यही कह कर बिलख रही थी कि अब हम लोगों की देखभाल कौन करेगा। पिता रामायण भी सबके सामने यही कह कर रो रहे हैं कि अब घर में दो-दो विधवा व तीन अनाथ बेटियों की देखभाल कौन करेगा। बेटियों की दहाड़ से सभी की आखें नम हो जा रही हैं। घर में परिवार की, सीमा पर देश की जिम्मेदारी देवरिया जिले के छपिया जयदेव गांव निवासी विजय कुमार मौर्य पर घर में परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ था तो सीमा पर देश की सुरक्षा की भी जिम्मेदारी भी थी। शहीद की पत्नी विजयलक्ष्मी ने रुंधे हुए गले से बताया कि पूरे घर की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधे पर थी। सीआरपीएफ में भर्ती होने के बाद मकान का निर्माण शुरू कराए जो निर्माणाधीन है। उनकी मा दो वर्ष पूर्व चल बसी। विजय कभी भी फर्ज से पीछे नहीं हटे, ड्यूटी को देश सेवा मानकर करते थे। देश सेवा में उन्होंने कभी घर की जिम्मेदारियों को आड़े नहीं आने दिया। विपरीत परिस्थितियों में भी मुस्कुराना था शगल विजय कुमार मौर्य की प्राथमिक शिक्षा गाव में हुई। हाईस्कूल व इंटरमीडिएट सुबास इंटर कालेज भटनी से द्वितीय श्रेणी में और बीए, एमए मदन मोहन मालवीय पीजी कालेज भाटपाररानी से द्वितीय श्रेणी में पास किया, उसके बाद सीआरपीएफ में भर्ती हुए। विपरीत परिस्थितियों में मुस्कुराना शगल था उनका। यहां पर लगाते थे दौड़ देवरिया जिले के भटनी के तेनुआ स्थित ग्राउंट पर दौड़ लगाकर विजय कुमार सेना में भर्ती हुए थे। जब भी वह आते थे नए युवकों को भर्ती होने के लिए टिप्स भी देते थे। उनका सपना था कि क्षेत्र के अधिक से अधिक संख्या में युवक सेना में भर्ती हों और देश की रक्षा करें। बेटी को डाक्टर बनाने का था सपना शहीद विजय कुमार को इकलौती बेटी आराध्या है। उसे अच्छी शिक्षा देकर डाक्टर बनाने का उनका सपना था। लेकिन देश की सरहद की सुरक्षा करते हुए यह शहीद हो गए। उनकी पत्नी को अब बेटी पर ही भरोसा है। हालाकि कई जनप्रतिनिधि आराध्या को डाक्टर बनने तक का खर्च उठाने का आश्वासन दे रहे हैं। सरकार लें शहादत का बदला बसपा के प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा सुबह ही गाव पहुंच गए और परिवार के सदस्यों को सात्वना दी। इस दौरान उन्होंने कहा कि सरकार को इसको लेकर अब गंभीर होना चाहिए और सेना के जवानों की शहादत का बदला लेना चाहिए। सपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री राधेश्याम सिंह ने कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ सरकार को गंभीर होना चाहिए और बड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
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