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Pulwama Terror Attack: राजस्‍थान के शहीद नारायण के गांव के लोगोंं में गर्व, गम के साथ गुस्सा भी

Pulwama Terror Attack: राजस्‍थान के राजसमंद के 38 साल के शहीद नारायण लाल की बहादुरी के किस्से हर जुबां पर सुनाई दे रहे हैं। पूरा गांव इस देशभक्त बेटे को आखिरी बार देखने को बेताब है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 03:16 PM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 03:16 PM (IST)
Pulwama Terror Attack: राजस्‍थान के शहीद नारायण के गांव के लोगोंं में गर्व, गम के साथ गुस्सा भी
Pulwama Terror Attack: राजस्‍थान के शहीद नारायण के गांव के लोगोंं में गर्व, गम के साथ गुस्सा भी

उदयपुर, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर के पुलवांमा में गुरुवार को हुए आतंकी हमले में शहीद हुए मेवाड़ के लाल के बलिदान पर गांव वालों की छाती गर्व से तो फूल गई है लेकिन लोगों में गम के साथ जबरदस्त गुस्सा भी है। राजसमंद जिले के बिनोल गांव में 38 साल के शहीद नारायण लाल की बहादुरी के किस्से हर बच्चे से लेकर बुजुर्गों तक की जुबां पर सुनाई दे रहे हैं। पूरा गांव अपने इस देशभक्त बेटे को आखिरी बार देखने को बेताब है। 

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शहीद के परिजनों के अनुसार नारायण सप्ताहभर की छुट्टियां पूरी कर मंगलवार को ही गांव से ड्यूटी के लिए रवाना हुए थे। शहीद नारायण लाल के परिवार में पत्नी मोहनी देवी (36), पुत्री हेमलता (17) और पुत्र मुकेश (11) हैं। उनके माता-पिता का देहांत पहले हो चुका था। जबकि एक भाई गोवर्धन लाल, काका रामलाल गुर्जर के अलावा अन्य रिश्तेदार हैं।

पुलवामा आतंकी हमले की गुरुवार शाम सूचना गांव तक पहुंची तो घर-परिवार के लोगों और ग्रामीणों में दहशत सी फैल गई। लापता जवानों की सूची में नारायणलाल का नाम आते ही उनके दिलों की धडकऩें और बढ़ गईं। देर रात तक आधिकारिक तौर पर परिवार को कोई सूचना नहीं मिलने से रात भर घर के लोग और ग्रामीण सो नहीं सके।

सुबह केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) से फोन आया तो सभी के पांवों से मानो जमीन खिसक गई हो। इस बुरी खबर पर किसी को यकीन नहीं हुआ कि उनके गांव का लाडला अब नहीं है। नारायण के घर के बाहर लोगों का मजमा लग गया। इनमें खासकर युवा बड़ी तादाद में थे, जो उन्हें अपना आदर्श मानते थे। 

देशसेवा में जाने की उनकी प्रेरणा को याद करके आंखें भर आईं। नारायण पढा़ई में बचपन से ही होशियार थे। उनमें शुरुआत से ही सेना में जाने का जज्बा था। परिजनों ने बताया कि नारायण लाल छुट्टियां मनाने गांव आए थे। गत 11 तारीख को वह रवाना हुए और 12 फरवरी को ड्यूटी ज्वॉइन की। आखिरी बार एक मित्र विनोद पालीवाल की शादी के भोज में दोस्तों के साथ शरीक हुए। गांव के बच्चों और युवाओं के नारायणलाल काफी चहेते थे। वह जब भी आते थे, मित्रों को फोन करके बुलाते थे और घंटों तक देशसेवा के लिए चर्चा करते। वहां यहां के बिनोल गांव में परिवार के साथ रहते थे।

जैसे ही उनके शहादत की खबर आई पूरे गांव में शोक की लहर छा गई। रोती बिलखती शहीद की पत्नी मोहनी देवी ने कहा कि मेरा बेटा मुकेश को भी में सेना में भेजूंंगी। ताकि इसके पिता का बदला आतंकियों से ले सके। यह बात कहकर वह बेसुध हो गई।  

 

शहीद जवान तीन दिन पहले ही गांव में 15 दिन की छुट्‌टी बिताकर लौटे थे। नारायण लाल के माता-पिता की मौत बचपन में हो गई थी। शहीद के दो बच्चे हैं। लड़के का नाम मुकेश और लड़की हेमलता है। बेटा कहता है कि मोदी जी पाकिस्तान के आतंकवादियों ने भारत के सपूतों पर आत्मघाती हमला किया है। उनको आप ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए। कब तक भारत देश के जवान शहीद होंगे। 

सैनिक नारायण गुर्जर अपने गांव में काका के नाम से जाने जाते थे। छोटे से लेकर बड़े बुजुर्ग उन्हें काका कहकर ही पुकारते थे। वह 16 साल से सीआरपीएफ में थे। ग्रामीण बताते हैं कि नारायण गुर्जर जब भी 15 अगस्त या 26 जनवरी के मौके पर गांव में होते थे तो वह स्कूलों में जाकर छात्रो को पुरस्कार देते थे और उनसे देश की सेवा करने की बात कहते थे।  


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