अभी तो जिंदगी शुरू हुई थी और देश पर कर दी कुर्बान, जानिये शहीद कुलविंदर के खास बातें
कुलविंदर सिंह के लिए संघर्षों के बाद जिंदगी की जैसे अभी शुरूआत ही हुई और खुशियों ने दस्तक दी ही थी कि कुर्बानी की घड़ी सामने आ गई। ट्रक चालक के बेटे कुलविंदर ने शहादत दे दी।
रोपड़, जेएनएन। अानंदपुर साहिब के नूरपुरबेदी क्षेत्र के गांव रौली के कुलबिंदर के लिए जिंदगी ने अभी अंगराई ली ही थी और गरीब से संघर्ष के बाद खुशियों के पल आए थे, तभी यह जांबाज मातृभूमि के लिए कुर्बान हाे गया। देश के लिए जान की बाजी लगाने वाले इस पंजाबी गबरू की अगले साल शादी होने वाली थी। एक ट्रक चालक के पुत्र कुलविंदर में बचपन से संघर्ष अौर गरीबी की चुनौती के बावजूद देश सेवा का जज्बा था। वह सीमा पर दुश्मनों से दो-दो हाथ करने को बातें करते थे।
पुलवामा में आतंकी हमले में शहीद होने वाले कुलविंदर मात्र 28 वर्ष के थे। उन्होंने प्लस टू करने के बाद वर्ष 2014 में सीआरपीएफ ज्वाइन की थी। उनकी पहली पोस्टिंग चंडीगए़ के पास पंजाब के जीरकपुर में हुई थी। शहदात से पहले वह जम्मू में तैनात थे। वह पुलवामा आतंकी हमले का शिकार होने से पहले काफिले के साथ अगली ड्यूटी के लिए राजौरी जा रहे थे।
ट्रक चालक पिता के सुपूत को देश करेगा हमेशा याद
कुलविंदर के पिता दर्शन सिंह ट्रक ड्राइवर हैं। लाइसेंस खत्म होने के बाद वह बूढ़े दादाजी के साथ घर पर ही रहते थे। परिवार की कुछ जमीन है जिस पर वह खेतीबाड़ी करके सभी गुजारा चल रहा है। पिता दर्शन सिंह ने कहा कि फौज में जानने का जज्बा कुलविंदर में शुरू से ही था। वह बस देश की सेवा फौज में जाकर करना चाहता था।
क्रिकेट खेलने का शौक था कुलविंदर को
शहीद कुलविंदर सिंह का जन्म 24 दिसंबर 1992 को हुआ था। छह फुट के कुलविंदर सिंह क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी थे। सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल नूरपुरबेदी से बारहवीं करने के बाद कुलविंदर सिंह ने नंगल में आइटीआइ की थी। 21 साल की उम्र में वह सीआरपीएफ की 92वीं बटालियन में भर्ती हो गए। वह पिछले दिनों घर छुट्टी पर आए थे।
अक्टूबर में थी शादी, एक बार ही मिल पाए मंगेतर से
कुलविंदर की जिंदगी में जल्द ही खुशियां आने वाली थी। उनकी अक्टूबर में शादी होनी थी और आनंदपुर साहिब के साथ लगते गांव लोदीपुर की सरबजीत कौर से पिछले दिनों मंगनी हुई थी। शादी को लेकर परिवार में खुशी का माहौल था और इसकी तैयारियां चल रही थीं। वह एक ही बार अपनी मंगेतर से मिल पाए थे। बलविंदर 11 फरवरी को ही 10 दिन की छुट्टी के बाद ड्यूटी पर लौटे थे। वह परिवार की इकलौती संतान थे। छुट्टी में वह शादी के लिए गाडिय़ों, रसोइयों को बुकिंग करके गए थे। घर में शादी के लिए रंग रोगन का काम भी चल रहा था।