Pulwama Terror Attack: मौत से कई बार पंजा लड़ा चुके थे रामवकील
सीआरपीएफ अफसर भी थे उनकी बहादुरी के कायल। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किए थे देश के दुश्मनों के दांत खट्टे।
आगरा, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर के पुलमावा में आतंकियों ने सीआरपीएफ जवानों पर कायराना हमला किया। जवान निहत्थे थे। यदि उनके पास हथियार होते तो अकेला मैनपुरी का लाल रामवकील ही उनको धूल चटा देता। शनिवार को शहीद के अंतिम यात्रा में हर गांववासी की जुबां पर उनकी बहादुरी के ही चर्चे थे। साथी जवानों का भी कहना था कि खुद अफसर भी रामवकील के रणकौशल के कायल थे।
बरनाहल के गांव विनायकपुर में वर्ष 1978 में जन्मे रामवकील के चचेरे भाई पुलिस में थे। उनकी सलाह पर रामवकील ने सिपाही पद के लिए आवेदन किया। चयनित भी हो गए, लेकिन नौकरी करने से ये कहते हुए इन्कार कर दिया कि पुलिस की नौकरी में नेताओं का प्रभाव होता है, वह देश की सेवा करना चाहते हैं। उनके इस निर्णय से परिजनों को दुख हुआ था। इसके बाद वह वर्ष 2000 में सीआरपीएफ में भर्ती हो गए। ट्रेनिंग के दौरान ही उन्होंने अपने साहस व बुद्धिमत्ता का लोहा मनवा लिया था। अधिकारी उनके रणकौशल व सूझबूझ के कायल थे। उनकी बहादुरी को देखते हुए उन्हें नक्सल प्रभावित क्षेत्र तो कभी असोम के अशांत इलाकों व कश्मीर में तैनात किया गया। इस दौरान कई बार नक्सलियों आदि से उनका आमना-सामना हुआ। दर्जनों सफल ऑपरेशन में शामिल रहे थे।
पिछले एक वर्ष से अधिक समय से वह कश्मीर में तैनात थे। परिजनों ने बताया कि करीब एक साल पहले जम्मू-कश्मीर में ही आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान आतंकवादियों की गोली उनके हाथ को चीर गई थी। इस घटना में उनका काफी खून बह गया था, लेकिन गोली लगने के बाद वे अपने परिवार से तीन दिन तक छिपाए रहे थे। पूरी तरह खतरे से बाहर आने के बाद ही उन्होंने गोली लगने की जानकारी परिवार को दी थी।
उनकी पत्नी गीता ने बताया कि वे परिवार को कभी चिंता में नहीं डालना चाहते थे। आतंकवादियों के खिलाफ किसी ऑपरेशन पर जाने से पहले परिवार से बात करते थे, लेकिन ऑपरेशन पर जाने की जानकारी नहीं देते थे। ऑपरेशन को सफलता पूर्वक अंजाम देने के बाद परिवार को फोन पर जानकारी देते थे।
12 फरवरी को ही पहुंचे थे कश्मीर
रामवकील 23 दिसंबर 2018 को एक महीने की छुट्टी लेकर घर आए थे। छुट्टी पूरी होने के बाद वे ड्यूटी पर जम्मू के लिए रवाना हुए, लेकिन बर्फबारी के चलते जिस स्थान पर बटालियन ठहरी थी वहां पहुंचना संभव नहीं था। उन्होंने अधिकारियों से फोन पर संपर्क किया तो उनकी छुट्टी को 12 फरवरी तक बढ़ाते हुए वापस घर जाने की सलाह दी। इस पर वे फिर अपने घर आ गए। छुट्टियां मौजमस्ती के साथ व्यतीत करने के बाद वे 12 फरवरी को अपनी बटालियन पहुंच गए। इस दौरान लगातार फोन से संपर्क पर रहे। घटना से सवा घंटे पहले दिन में दो बजे रामवकील ने अपनी भांजी आरती निवासी मौसमपुर आगरा से बातचीत की, फिर पत्नी व मां को भी कॉन्फ्रेंस पर लिया। इस दौरान सभी रिश्तेदारों के बीच काफी देर तक बात हुई।
इटावा में रह रहा परिवार
रामवकील अपने तीन पुत्र अंकित (11), अर्पित (9) व अंश (3) को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते थे। गांव में पढ़ाई का उचित इंतजाम न होने के चलते उन्होंने पत्नी गीता को बच्चों के साथ इटावा के अशोक नगर भेजा दिया था। उनकी पत्नी का मायका भी वहीं है। अंकित कक्षा 6 व अर्पित कक्षा पांच का छात्र है।