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15 अगस्त, 1947 को भर गए थे कोलकाता के सिनेमाघर, आजादी पर देशभक्ति फिल्‍म देखने उमड़े थे लोग

15 अगस्त 1947 के दिन देशभर में राष्ट्रवादी भावनाएं चरम पर थीं। कोलकाता के सबसे पुराने सिनेमाघरों में से एक टाकी शो हाउस में मोलिना देवी और छवि विश्वास अभिनीत सुधीर बंधु की फिल्म वंंदेमातरम् फिल्म दिखाई गई थी।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Tue, 16 Aug 2022 07:07 PM (IST)Updated: Tue, 16 Aug 2022 07:07 PM (IST)
15 अगस्त, 1947 को भर गए थे कोलकाता के सिनेमाघर, आजादी पर देशभक्ति फिल्‍म देखने उमड़े थे लोग
कुछ सिनेमाघरों में फिल्म से पहले दिखाया गया था नेताजी पर तैयार वृत्तचित्र। सांकेतिक तस्‍वीर।

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। 15 अगस्त, 1947 के दिन देशभर में राष्ट्रवादी भावनाएं चरम पर थीं। कोलकाता के सिनेमाघर आजादी का जश्न देशभक्ति की फिल्में देखकर मनाने के लिए दर्शकों से भर गए थे। कोलकाता के सबसे पुराने सिनेमाघरों में से एक टाकी शो हाउस में मोलिना देवी और छवि विश्वास अभिनीत सुधीर बंधु की फिल्म 'वंंदेमातरम्' फिल्म दिखाई गई थी। छवि विश्वास ने बाद में तपन सिन्हा की 'काबुलीवाला' और सत्यजीत रे की 'जलसाघर', 'देवी' और 'कंचनजंघा' में अपने अभिनय से शोहरत हासिल की थी। मोलिना देवी ने हिंदी और बांग्ला, दोनों भाषाओं की फिल्मों में अभिनय किया। उत्तर, मध्य और दक्षिण कोलकाता के कुछ सिनेमाघरों ने 'स्वप्नो ओ साधना' नामक फिल्म प्रदर्शित हुई थी, जिसे देखने भारी भीड़ उमड़ी थी। फिल्म में संध्यारानी और जहर गंगोपाध्याय मुख्य भूमिकाओं में थे। एक और देशभक्ति फिल्म 'मुक्ति बंधन' एक अगस्त, 1947 को बंगाल के सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी। यह फिल्म अखिल नियोगी द्वारा निर्मित थी और इसमें राजलक्ष्मी देवी और तारा भादुड़ी की प्रमुख भूमिकाएं थीं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर आधारित वृत्तचित्र 'जयतु नेताजी', जिसमें नेताजी के जन्मदिन समारोह की वीडियो रिकॉर्डिंग थी, को कोलकाता के छाया और पूर्णा सिनेमाघरों में फिल्म दिखाने से पहले प्रदर्शित किया गया था।

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       दक्षिण कोलकाता में बसुश्री सिनेमा हाल के मालिक देबजीबन बसु ने उन दिनों के सिनेप्रेमियों के उत्साह की बहुत सी कहानियां सुनी हैं, जिसे उन्होंने साझा करते हुए कहा-'दिसंबर 1947 में हमारे सिनेमाघर का उद्घाटन हुआ था। उस समय ज्यादा सिनेमाघर नहीं थे लेकिन कोलकाता के लोगों का हमेशा से ही संस्कृति के प्रति झुकाव रहा है। बांग्ला फिल्मों के जाने-माने निर्देशक संदीप राय ने कहा कि 1940 के दशक में बनीं फिल्में "आशा और आशावाद से भरी थीं। उस समय फिल्म निर्माता नए विचारों और नए दृष्टिकोणों की तलाश में थे क्योंकि यह उन सभी और पूरे देश के लिए एक नई शुरुआत थी। प्रख्यात फिल्म निर्देशक गौतम घोष ने कहा कि उस दौर में प्रदर्शित हुईं नई बांग्ला फिल्में और बाद की फिल्में और उन्हें मिली भारी प्रतिक्रिया इस बात का संकेत था कि लोग एक नई सुबह की उम्मीद कर रहे थे।


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