एक गांव जिसने शहीद भगत सिंह को बेहद करीब से देखा और जाना वो है शादीपुर
शादीपुर गांव के लोग नहीं जानते थे कि उनके बच्चों को जो इंसान पिछले कुछ माह से पढ़ा रहा है वह भगत सिंह है।
अलीगढ़ [श्याम सुंदर]। मेरी मां बीमार हैं, मुझे जाना ही होगा..यही वो आखिरी वाक्य था, जिसे सुनकर अलीगढ़, उप्र के गांव शादीपुर के लोग रो पड़े थे। इस गम में कि बच्चों को पढ़ाने वाले इस समर्पित युवा शिक्षक के ऊपर यह कैसी आपदा आ पड़ी? मां की सलामती की दुआओं के बीच जब चुनिंदा लोग उन्हें रेलवे स्टेशन तक छोड़ने गए और मां के बारे में खबर देने को कहा तो उन्होंने वाक्य संशोधित किया- मेरी भारत मां बीमार है..। तब लोगों को मालूम चला कि उनके बीच कोई और नहीं, शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह रह रहे थे।
शिक्षक की भूमिका
भगत सिंह यहां आठ महीने तक शिक्षक की भूमिका में रहे थे। उन्होंने यहां ‘नेशनल स्कूल’ खोला और बच्चों को न सिर्फ नेक इंसान बनने के लिए प्रेरित किया, बल्कि देश की खातिर मर-मिटने का अमर संदेश भी दिया। भगत सिंह की शहादत की खबर पर गांव में कई रोज तक चूल्हे भी नहीं जले थे। ग्रामीणों ने खुद यहां भगत सिंह के नाम का पार्क व स्मारक बनवाया है। हर साल शहीद दिवस (23 मार्च) पर उन्हें शिद्दत से याद करते हैं।
शादी से दूर शादीपुर में
यह भी इत्तेफाक है कि शादी के बंधन से बचने के लिए भगत सिंह ने जिस गांव में खुद को छुपाए रखा, खुद उसका नाम शादीपुर था। अलीगढ़ जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर पिसावा क्षेत्र के गांव शादीपुर में आज भी उस स्कूल के अवशेष हैं, जिसे भगत सिंह ने खोला था। भगत सिंह के भतीजे सरदार किरणजीत सिंधू बताते हैं कि घरवालों ने जब शादी का दबाव बढ़ाया तो भगत सिंह दिसंबर 1923 के उत्तरार्ध में घर से भाग निकले। हुआ यह कि गांव शादीपुर के रहने वाले ठाकुर टोडर सिंह भी आजादी की मुहिम में जुटे हुए थे। कानपुर की बैठक में गणोश शंकर विद्यार्थी ने उन्हें भगत को अपने साथ अलीगढ़ ले जाने को कहा।
मंदिर में भेष बदलकर रहे
भगत सिंह कुछ रोज शहर से सटे खेरेश्वर मंदिर में भेष बदलकर रहे। कुछ दूसरे लोगों ने भी उन्हें शरण दी। शहर में रहने के खतरे ज्यादा थे। सो, वे टोडर सिंह के गांव शादीपुर चले आए। गांव वालों को उनका नाम बताया गया- बलवंत सिंह। भगत बच्चों को पढ़ाने लगे तो ठाकुर टोडर सिंह ने गांव से कुछ दूर नेशनल स्कूल के नाम से विद्यालय बनवा दिया। यहां भगत सिंह आठ महीने तक पढ़ाते रहे। अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजा देने के लिए वह यहां भी लोगों को देश-प्रेम के पर्चे बांटा करते थे।
साइक्लोस्टाइल का बंदोबस्त
ठा. टोडर सिंह ने उनके लिए एक साइक्लोस्टाइल का बंदोबस्त कर दिया था। वह हाथ से पर्चे लिखते और साइक्लोस्टाइल से छापकर उसे बच्चों के जरिये बंटवा दिया करते। ठा. टोडर सिंह के 90 वर्षीय पौत्र लक्ष्मी प्रताप सिंह बताते हैं कि एक दिन भगत सिंह ने गांव वालों से कहा था कि वह अब अपने घर जाएंगे। लोगों ने कारण पूछा? तब भगत सिंह ने बाबा से कहा, मेरी मां बीमार हैं, मुझे जाना ही होगा। बाबा ने गांव जलालपुर के रहने वाले ठाकुर नत्थन सिंह को भगत सिंह को खुर्जा जंक्शन तक छोड़ने के लिए भेजा। ट्रेन में बैठने के बाद भगत सिंह ने नत्थन सिंह से कहा, मेरी भारत मां बीमार है, वह मुझे बुला रही है।
नौजवान सभा को सक्रिय किया
यहां से जाकर भगत सिंह ने लाहौर में नौजवान सभा को सक्रिय किया। उनकी पहली गिरफ्तारी 1927 में लाहौर से तब हुई, जब दशहरे के मौके पर बम-कांड हुआ। 17 अगस्त 1928 को भगत ने सांडर्स की हत्या कर दी और फरार हो गए। आठ अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली (आज की संसद) में बम फेंका और गिरफ्तारी दी। फांसी से दो दिन पहले 21 मार्च 1931 को ठा. टोडर सिंह ने लाहौर जेल में भगत से मुलाकात भी की थी।