समावेशी लैंगिक विकास के लिए आगे आए महिलाओं की नई पीढ़ी
महिलाओं की नई पीढ़ी को आगे आने का आह्वान किया गया।
समावेशी लैंगिक विकास के लिए आगे आए महिलाओं की नई पीढ़ी
-नारी आंदोलनों की चुप्पी पर सीएसएसईआइपी ने जताई चिंता
-अगले माह कश्मीर विश्वविद्यालय में होगी प्रबंध समिति की बैठक
जागरण संवाददाता, वाराणसी : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय स्थित सामाजिक बहिष्करण और समावेशी नीति के अध्ययन केंद्र (सीएसएसईआइपी) में मंगलवार को स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के क्रम में चल रहे व्याख्यान श्रृंखला की अंतिम कड़ी का आयोजन किया गया। इसमें महिला आंदोलनों की चुप्पी पर चिंता जताते हुए समावेशी लैंगिक विकास के लिए महिलाओं की नई पीढ़ी को आगे आने का आह्वान किया गया।
हैदराबाद विश्वविद्यालय के सीएसएसईआइपी से जुड़ी प्रो. अजैलिउ नियामई ने मणिपुरी महिलाओं के समावेशी विकास की चर्चा की। उन्होंने वहां मातृ सत्तात्मक व्यवस्था होने के बाद भी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में उनकी तुलना की। विशिष्ट अतिथि इंडियन सोशियोलाजी सोसायटी की पूर्व अध्यक्ष प्रो. आर इंद्रा ने चिंता जताते हुए कहा कि नारी आंदोलन धीरे-धीरे चुप से हो गए हैं। नई पीढ़ी इसमें कहीं नहीं दिखती है। सीएसएसईआइपी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हालांकि इस बीच महिलाएं अच्छे अनुपात में आगे आई हैं और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपना स्थान बनाई हैं फिर भी बिना नई पीढ़ी के सक्रिय हुए समावेशी विकास संभव नहीं है। इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। विश्वविद्यालय परिसरों से निकलकर केंद्रों को कालेजों तक पहुंचना होगा। इंडियन सोशियालाजी सोसायटी की अध्यक्ष, जम्मू विश्वविद्यालय से जुड़ी प्रो. आभा चौहान ने बीते 75 वर्षों में महिलाओं की प्रगति और वर्तमान में उनके समक्ष उपस्थित चुनौतियों का वर्णन किया। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संयोजक बीएचयू सीएसएसईआइपी की निदेशक प्रो. श्वेता प्रसाद ने बताया कि केंद्र के तत्वावधान में 6-7 सितंबर को कश्मीर विश्वविद्यालय में लैंगिक समावेशी विकास पर अंतरराष्ट्रीय विमर्श का आयोजन किया गया है। वहीं पर इंडियन सोशियालाजी सोसायटी की प्रबंध समिति की राष्ट्रीय बैठक भी होगी, इसमें आगे की योजना पर विचार किया जाएगा। संगोष्ठी में समिति के सचिव प्रो. मनीष वर्मा, प्रो. रजनीबाला, डा. अमरनाथ पासवान, डा. शरदधर शर्मा
केंद्र के अतिथि शिक्षक आशुतोष शुक्ल ने भी भाग लिया। सत्र में बंगाल, सिक्किम, ओडिशा, यूपी, कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब, जम्मू आदि के समाजशास्त्रियों शामिल हुए।