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Delhi News: एम्‍स की पहली शिल्‍पकार और महिला स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री, जिन्‍होंने दिल्‍ली से लखनऊ तक किया था संघर्ष

एम्स की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारतीय सिविल सेवक सर जोसेफ भोरे की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण किए जाने के बाद की गई सिफारिश पर कौर ने वर्ष 1956 में एम्स की स्थापना के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया था।

By Pradeep Kumar ChauhanEdited By: Published: Sat, 13 Aug 2022 02:54 PM (IST)Updated: Sat, 13 Aug 2022 02:54 PM (IST)
एम्स ने इस धारणा को तोड़ते हुए बी कुछते दशकों में तमाम अनुसंधान किए।

नई दिल्‍ली [विनीत त्रिपाठी]। बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था और नए अनुसंधान में देश के सबसे चर्चित संस्थानों में शुमार अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निर्माण का प्रस्ताव भले ही देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिया था, लेकिन एम्स की असली शिल्पकार देश की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ही थीं।

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हकीकत यह भी है कि नेहरू के विशाल आभामंडल के आगे अमृत कौर को आज तक इसका वह श्रेय नहीं मिला, जिसकी वह हकदार थीं। दो फरवरी 1887 में लखनऊ में जन्मी अमृत कौर के संघर्ष के कारण ही एम्स की स्थापना हुई और इसकी पहली अध्यक्षा भी बनी थीं।

एम्स के पूर्व निदेशक डा. एमसी मिश्र बताते हैं कि एम्स की बात राजकुमारी अमृतकौर के जिक्र के बगैर पूरी नहीं हो सकती। अमृतकौर ने ही एम्स की पूरी संरचना तैयार करने के साथ ही एक्ट आफ पार्लियामेंट बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।

उन्होंने शिमला में अपनी पैतृक संपत्ति और घर को एम्स व कर्मचारियों के लिए दान कर दिया था। यह संपत्ति आज एम्स का गेस्ट हाउस है। एम्स की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, भारतीय सिविल सेवक सर जोसेफ भोरे की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण किए जाने के बाद की गई सिफारिश पर कौर ने वर्ष 1956 में एम्स की स्थापना के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया था।

कौर ने एम्स की स्थापना के लिए धन जुटाने को न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका से सहायता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका उद्देश्य देश में स्नातकोत्तर अध्ययन और चिकित्सा शिक्षा के उच्च मानकों को बनाए रखना था, ताकि हमारे युवा पुरुष व महिला अपने ही देश में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम हो सकें। एम्स के मुख्य अस्पताल की ओपीडी का नाम आज भी राजकुमार अमृत कौर ही है और इसे ही एम्स परिसर में तैयार की गई नई ओपीडी में स्थानांतरित किया गया है। जुलाई 2020 में नई ओपीडी का शुभारंभ तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने किया था।

विदेश से आर्थिक मदद जुटाने का उठाया था जिम्मा

जानकारी के अनुसार, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आजादी के कुछ वर्षों में ही एम्स की स्थापना के लिए बजट जुटाना एक अहम मसला था। यहां तक कि सरकार ने बजट न होने की बात कहकर हाथ खड़े कर दिए थे। उस समय अमृत कौर ने ही आर्थिक मदद जुटाने का जिम्मा उठाया था। विदेश से मिली आर्थिक मदद के कारण ही एम्स का निर्माण संभव हो सका था।

एम्स की स्थापना से दिल्ली ही नहीं, देश को भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर पहचान मिली। एक दौर था जब अधिकांश अनुसंधान विदेश में होने के कारण भारत में बीमारियों का इलाज महंगा था। एम्स ने इस धारणा को तोड़ते हुए बीते कुछ दशकों में तमाम अनुसंधान किए।

नतीजतन देश में बीमारियों का इलाज संभव होने के साथ ही सस्ता भी हुआ। एम्स के प्रयास से ही विभिन्न राज्यों में सुपर स्पेशियलिटी की नींव रखी जा सकी। मौजूदा समय में दुनियां में स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा रिसर्च पेपर पब्लिश करने वाले संस्थानों में एम्स का नाम भी शीर्ष देशों में शामिल है। एम्स ने कई बेहतर चिकित्सक दिए, जो वर्तमान समय में भी विभिन्न राज्यों के छोटे स्थानों पर काम कर रहे हैं।

सबसे ज्यादा रिसर्च करने वाले संस्थानों में है एम्स

राजा ‘सर’ हरनाम सिंह अहलूवालिया की बेटी अमृत कौर की स्कूली पढ़ाई इंग्लैंड में हुई और 1908 में भारत लौटने के बाद वह महात्मा गांधी की अनुयायी हो गई थीं। छह फरवरी 1964 को नई दिल्ली में उनका निधन हुआ था। उन्होंने शादी नहीं की थी। वह क्रिश्चियन धर्म को मानती थीं, लेकिन उनका अंतिम संस्कार सिख धर्म के मुताबिक किया गया था। स्वास्थ्य मंत्रलय के अलावा उनके पास खेल मंत्रलय और शहरी विकास मंत्रलय थे। कौर को नेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोट्र्स, पटियाला की नींव डालने का भी श्रेय दिया जाता है। उन्हें टेनिस खेलने का शौक था। उन्होंने इसमें कई चैंपियनशिप भी जीती थीं।


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