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Polio Free India: पढ़िए देश के पोलियाे मुक्त होने की कहानी, घर- घर चला था अभियान

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री रहते वर्ष 1994 में जब डा. हर्षवर्धन ने पोलियो के खिलाफ युद्ध लड़ने का बीड़ा उठाया तब वैश्विक स्तर पर इसके मरीजों की कुल संख्या में भारत की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत थी। 10 प्रतिशत मरीज तो सिर्फ दिल्ली में थे।

By Prateek KumarEdited By: Published: Mon, 15 Aug 2022 06:23 PM (IST)Updated: Mon, 15 Aug 2022 06:23 PM (IST)
Polio Free India: पढ़िए देश के पोलियाे मुक्त होने की कहानी, घर- घर चला था अभियान
देश को पोलियो से मुक्ति दिलाने में अगुआ रहे हैं डा. हर्षवर्धन,

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। स्वतंत्रता के बाद दिल्ली की 75 वर्षो की विकास यात्रा में योगदान देने वालों का जिक्र डा. हर्षवर्धन के बिना अधूरा है, क्योंकि एक वक्त असाध्य और अभिशाप लग रही पोलियो की बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए उन्होंने जो माडल दिल्ली में अपनाया, वह न सिर्फ सफल हुआ, बल्कि बाद में यह पूरे देश को पोलियोमुक्त करने का रामबाण हथियार बना। उनके इस माडल की प्रशंसा देश के भीतर के साथ वैश्विक स्तर पर हुई। इसलिए उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘पोलियो विजेता’ और ‘स्वास्थ्यवर्धन’ की उपाधि दी।

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2014 में पोलियो मुक्त हुआ था भारत

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) समेत कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने उनके योगदान को सम्मानित किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल तक उनके असाधारण प्रयासों के कायल थे। उनकी इस शुरुआत का परिणाम यह रहा कि आखिरकार देश वर्ष 2014 में पोलियो मुक्त घोषित हुआ। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री रहते वर्ष 1994 में जब डा. हर्षवर्धन ने पोलियो के खिलाफ युद्ध लड़ने का बीड़ा उठाया, तब वैश्विक स्तर पर इसके मरीजों की कुल संख्या में भारत की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत थी। 10 प्रतिशत मरीज तो सिर्फ दिल्ली में थे। उस वक्त लोगों में इसके प्रति गंभीरता पैदा करना इतना आसान नहीं था। संसाधन जुटाना भी दुरूह था। तब उन्होंने इसमें सबसे बड़ा योगदान स्कूली छात्रों का माना। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती यानी दो अक्टूबर से छात्रों को साथ लेकर देश का सबसे बड़ा जन जागरूकता अभियान दिल्ली में शुरू किया गया। इन छात्रों को ‘पोलियो सैनिक’ नाम दिया गया।

400 से अधिक सामाजिक संगठन जुड़े

इसके साथ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही 400 से अधिक सामाजिक संगठनों को जोड़ा। ये कारोबारी और कालोनी संगठनों के साथ धार्मिक नेताओं को साथ लाए। बड़े मीडिया संस्थान व सेलिब्रिटी भी निस्स्वार्थ भाव से प्रचार में जुड़ीं। सभी राजनीतिक दल मतभेद किनारे रखकर एक मंच पर आए। यह सब बिना डा. हर्षवर्धन के अभिनव प्रयासों के असंभव ही था। इस प्रकार ‘दो बूंद जिंदगी’ का नारा गली-गली गूंजने लगा। आंगनवाड़ी केंद्रों के साथ घर-घर पोलियो के ड्राप पिलाए जाने लगे। इस बीच वर्ष 1995 में केंद्र सरकार ने इस अभियान को पूरे देश में लागू किया। देखते-देखते पूरा देश पोलियो से मुक्त होने के अभियान में जी-जान से जुट गया।

व्यवस्था की हुई निगरानी

इस अभियान के साथ डा. हर्षवर्धन पूरी शिद्दत से जुड़े रहे और खुद पूरी व्यवस्था की निगरानी करते रहे। आवश्यकता पड़ी तो सड़क पर उतरने और किसी के दरवाजे पर जाने से परहेज नहीं किया। उनकी इस लगन ने आखिरकार सकारात्मक असर दिखाया।

तंबाकू के खिलाफ युद्ध में भी हर्षवर्धन आगे

बात केवल पोलियो की ही नहीं, बल्कि महामारी का रूप लेते कैंसर के खिलाफ जब युद्ध शुरू करने की बारी आई तो डा. हर्षवर्धन आगे आए। नाक, कान व गले का डाक्टर होने के नाते उन्हें तंबाकू के दुष्परिणाम पता थे। वह ऐसे लोगों को नजदीक से देख रहे थे जिन्हें धूमपान के कारण कैंसर या अन्य बीमारी हुई और उसके चलते उसका पूरा परिवार तबाह हो गया।

1997 में बना ध्रूमपान निषेध संबंधित कानून

उनके प्रयासों से वर्ष 1997 में दिल्ली धूमपान निषेध संबंधित कानून बना और सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीना प्रतिबंधित किया गया। इसके साथ देशभर में इसके खिलाफ अभियान प्रारंभ हुआ। यह तब हुआ, जब उनके इस अभियान के खिलाफ तंबाकू उत्पाद तैयार करने वाली बड़ी कंपनियां उनके खिलाफ खड़ी हो गई थी और हर तरह से इस अभियान और कानून को ध्वस्त करने के हथकंडे अपना रही थी। इसी तरह गर्भवती महिलाओं के लिए पोषण, बुजुर्गों के स्वास्थ्य देखभाल के लिए ऐसी योजनाएं शुरू की, जिन्होंने स्वास्थ्य सुविधा व लोगों के जीवन में बदलाव की बानगी बना।

ईमानदार छवि और जमीन से जुड़े नेता

मौजूदा समय में चांदनी चौक से सांसद डा. हर्षवर्धन जितने अपने लगन के पक्के और दूरदृष्टा है, उतने ही संगठन और जनता की नब्ज पर मजबूत पकड़ रखते हैं, इसलिए अपने राजनीतिक जीवन में कोई चुनाव नहीं हारी है। उनका जन्म 13 दिसंबर 1954 को पुरानी दिल्ली में हुआ था। उन्होंने दरियागंज में शिक्षा ग्रहण की। गणोश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कालेज कानपुर से आयुर्विज्ञान और शल्य-चिकित्सा स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। छात्र जीवन से ही संघ से जुड़ गए। संगठन का इनके जीवन पर खासा प्रभाव पड़ा। दिखावे पर विश्वास नहीं करने वाले

ईमानदार रही है हर्षवर्धन की छवि

हर्षवर्धन की ईमानदार छवि आगे काम आई। वह भाजपा के टिकट पर वर्ष 1993 में कृष्णा नगर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और दिल्ली की पहली विधानसभा के सदस्य बने। 2013 विधानसभा चुनाव में भाजपा के मुख्यमंत्री का चेहरा थे। कुछ समय के लिए दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2014 से वह चांदनी चौक से सांसद हैं। मौजूदा केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे थे। केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री रहते कोरोना के खिलाफ भी मुस्तैदी से खड़े रहे।


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