World Photography Day: आपको भी है फोटो खींचने का शौक तो मिलिए इन तस्वीरबाजों से
19 अगस्त को World Photography Day मनाया जाता है। फोटोग्राफी के शौकीन लोग कहीं भी तस्वीर लेना शुरू कर देते हैं। आइये मिलते हैं ऐसे ही कुछ तस्वीरबाजों से
नई दिल्ली, अंशु सिंह। समूह में चलते हुए तस्वीरें लेने का चलन है तो 100 वर्ष से भी ज्यादा पुराना। लेकिन जैसे-जैसे फोटोग्राफी लोगों की दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा बनती गई, उसने फोटो वॉक को जन-जन तक लोकप्रिय बना दिया। सवेरा हो या शाम, लोग निकल पड़ते हैं कैमरे के संग अपने शहर के अलग-अलग कोनों, गलियों, सड़कों, ऐतिहासिक इमारतों की खाक छानने। कुछ घंटों के इस सफर के बाद न सिर्फ बनती हैं नई यादें, नए साथी, बल्कि मिलता है नया शहर, नई नजर...
कोलकाता में जन्मे हैं वेब डेवलपर आकाश मंडल। बचपन से लेकर युवावस्था तक, उम्र के सभी पड़ाव यहीं गुजरे हैं। लेकिन छह साल पहले जब अपने कैमरे में शहर के लुके-छिपे कोनों को कैद करना शुरू किया, तो कोलकाता से प्यार कर बैठे। वे बताते हैं, ‘यहां हर गली-सड़क विशेष है। खाने-पीने से लेकर कारीगरों के वर्कशॉप, चर्च, बाजार, सदियों पुराने कब्रगाह, सभी में अजीब-सा सम्मोहन है। जब जान-पहचान वालों को पता चला, तो अक्सर वे शहर घुमाने का आग्रह करने लगे। कुछ विदेशी फोटोग्राफर्स ने भी इस बाबत मुझसे संपर्क किया। मैंने सोचा क्यों न फोटो वॉक किया जाए, जिसमें फोटोग्राफी का शौक रखने वाला हर शख्स भागीदारी ले सके?
इस तरह दो वर्ष पहले मैंने ‘फुटस्टेप्स’ के बैनर तले कस्टमाइज्ड फोटो वॉक आयोजित करना शुरू किया। हम औपनिवेशिक कोलकाता औऱ उसके आर्किटेक्चर, घाट, नदी किनारे की जिंदगी, फूल बाजार, पेट वॉक पर आधारित वॉक आयोजित करते हैं। कुल मिलाकर बहुत उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मिली है। आज हमारे साथ गंभीर, एमेच्योर फोटोग्राफर एवं आम टूरिस्ट्स जुड़े हैं।‘
नया डिस्कवर करने का बढ़ा ट्रेंड
फेडरेशन ऑफ इंडियन फोटोग्राफी के फेलो रहे आकाश का मानना है कि आज जिस तरह लोग दुनिया का भ्रमण कर, नए अनुभव बटोर रहे हैं। वे सिर्फ साइट सीइंग नहीं, बल्कि अमुक स्थान की गलियां, लोकल ट्रांसपोर्ट, व्यंजन का लुत्फ उठाकर, उसे अपनी यादों का हिस्सा बनाना चाहते हैं। कोलकाता आने वाले यहां के मंदिरों, ट्राम, हाथ रिक्शा, कॉलेज स्ट्रीट, कॉफी हाउस के नजारों को अपने कैमरे में कैद करना नहीं भूलते। इससे स्ट्रीट फोटोग्राफी व फोटो वॉक को मजबूत आधार मिला है।
जिनके पास भी कैमरा है और वे किसी खास पल को कैद करना चाहते हैं, वे इन फोटो वॉक का हिस्सा बन सकते हैं। फोटोग्राफी की शौकीन मेरी बताती हैं,‘मैं टोरंटो से कोलकाता घूमने आई हूं। इस फोटो टूर ने मुझे शहर को कहीं अधिक करीब से जानने का अवसर दिया है। स्थानीय संस्कृति एवं लोकाचार से परिचित हो सकी हूं। मेरे लिए तस्वीरें खींचना भी बेहद आसान रहा है। फोटोग्राफी आपको न सिर्फ खुद को अभिव्यक्त करने, बल्कि किसी स्थान को री-डिस्कवर करने का माध्यम देता है।‘
फोटो वॉक में सीखने का मौका
अवनीश दुरेहा ने समय से पूर्व नौसेना से रिटायरमेंट लेकर फोटोग्राफी के अपने पैशन को जीने का निर्णय लिया। साढ़े चार पहले दिल्ली फोटोग्राफी क्लब के सदस्य बने और नियमित रूप से फोटो वॉक में जाने का सिलसिला आरंभ हुआ। वे कहते हैं, ‘अकेले कैमरा लेकर बाहर निकलना थोड़ा कठिन होता है। फोटो वॉक वह वजह देता है। समूह में स्वीकार्यता भी अधिक होती है। सीखने व सिखाने का अवसर मिलता है। सब्जेक्ट की समझ बेहतर बनती है। हम एक-दूसरे से प्रेरणा लेकर, नए प्रयोग कर पाते हैं। अपने लेवल का भी अंदाजा हो जाता है।
पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक का वाकया बताना चाहूंगा। वहां हर बार नए सब्जेक्ट्स मिलते हैं, जो बेहद दिलचस्प होते हैं। इसी तरह लोदी गार्डन में नए पल, किरदारों को शूट करने का अनुभव ही अलग होता है। अपनी व्यस्त दिनचर्या में इस तरह के कुछ प्रोडक्टिव क्षणों का मिलना बेहद संतुष्टि देता है।‘
करीब आते हैं क्रिएटिव लोग
दिल्ली फोटोग्राफी क्लब के संस्थापक वीरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘फोटो वॉक से फोटोग्राफी के शौकीनों को पेशेवर फोटोग्राफर्स के सानिध्य में अपना हुनर तराशने का अवसर मिलता है। समान विचारधारा वाले क्रिएटिव लोगों से संपर्क बनता है। जो लोग वैकल्पिक एवं अर्थपूर्ण करियर तलाश रहे होते हैं, उनके लिए ट्रैवल ब्लॉगिंग, राइटिंग, फूड ब्लॉगिंग जैसे विकल्प खुलते हैं।‘ 14 वर्ष बैंकिंग इंडस्ट्री में गुजारने वाले वीरेंद्र ने नौकरी छोड़कर 2010 में दिल्ली फोटोग्राफी क्लब की नींव रखी थी।
कहते हैं, ‘मैंने स्वयं अनुभव किया था कि फोटोग्राफी का कोर्स करना कितना महंगा है? शौक रहते हुए इसे सीख नहीं पाते हैं। इसके बाद ही हमने फेसबुक पर फोटो वॉक की सूचना दी। चांदनी चौक के इस आयोजन के उम्मीद से विपरीत नतीजे मिले। अब तक 400 के करीब फोटो वॉक हो चुके हैं। बिना शुल्क होने वाले इस वॉक में 40 से 50 लोग होते हैं, जिनकी मदद गाइड, फोटोग्राफर, इंटर्न्स एवं वॉलंटियर्स करते हैं। मौसम एवं त्योहारों के अनुरूप होने वाले पेड फोटो ट्रिप्स, वर्कशॉप्स एवं लर्निंग कोर्सेज में भी युवाओं की अच्छी भागीदारी होती है।
यहां नहीं सीखने की उम्र
मैंने खुद से फोटोग्राफी सीखी है, क्योंकि इसमें शुरू से ही गहरी दिलचस्पी थी। आज छह साल हो गए हैं काम करते हुए। मेरा दृढ़ निश्चय एवं आत्मविश्वास दोनों बढ़े हैं। अब न सिर्फ दूसरों को सिखाता हूं, बल्कि फोटो वॉक एवं टूर भी ऑर्गेनाइज करता हूं। यह कहना है ‘फोटोहंट’ के संस्थापक सचिन गुप्ता का। सचिन बताते हैं, ‘दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों एवं स्मारकों की वास्तुकला हर किसी को आकर्षित करती है। विदेशी से लेकर देशी पर्यटक, सभी उन्हें अपने कैमरे में कैप्चर करना चाहते हैं। फोटो वॉक उन्हें किसी भी पल को अलग नजरिये से देखने की सहूलियत,नया सीखने एवं सोशलाइज करने का अवसर देता है।
मैं मानता हूं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। हमारे वॉक में डॉक्टर, इंजीनियर, गृहिणियों से लेकर स्टूडेंट्स तक शामिल होते हैं। मैं उन्हें कैमरे, लाइट्स से लेकर फोटोग्राफी की दूसरी बेसिक जानकारी देता हूं। दो साल पहले फेसबुक पेज के जरिये हमने इवेंट्स क्यूरेट करना शुरू किया। अब तक 40 से अधिक फोटो वॉक कर चुका हूं। दिल्ली के अलावा सिक्किम में वाइल्ड लाइफ फोटो एक्सपीडिशन करता हूं।
प्रैक्टिस से परफेक्शन तक
मैं प्रोफेशनल लाइफ से इतर कुछ क्रिएटिव करना चाहती थी। तस्वीरें खींचना पसंद था, इसलिए फोटोग्राफी के कोर्स में दाखिला लिया। वहीं से फोटो वॉक में जाना शुरू किया।' ये कहना है पेशे से बिजनेस एनालिस्ट विनीता अग्रवाल का। कहती हैं, 'फोटो वॉक के कई फायदे हुए। जो सैद्धांतिक चीजें सीखीं थीं, उसे प्रैक्टिस करने का सुवसर मिला। साथ ही मिले नए-नए लोग। वहां कोई छोटा-बड़ा नहीं, बल्कि सब बराबर होते हैं। फ्रेशर्स का मजाक नहीं उड़ाते, चाहे आप जितने भी प्रश्न क्यों न करें?
विनीता अग्रवाल ने बताया कि इस दौरान आपको सभी जवाब दिए जाते हैं। कोई जज नहीं करता है। सकारात्मक एवं ऊर्जा से भरपूर वातावरण होता है। मेरा सबसे यादगार फोटो ट्रिप जैसलमेर का रहा है। अपने डी 3300 कैमरे में वहां की तस्वीरें लेने का रोमांच ही कुछ अलग था।'