मत्स्य पालन पर डब्ल्यूटीओ का नया मसौदा भारत को नामंजूर, मछुआरों के हितों से कोई समझौता नहीं करेगी सरकार
विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का मत्स्य पालन (फिशरीज) पर प्रस्तावित मसौदा भारत को स्वीकार्य नहीं है। केंद्र सरकार इसे पक्षपातपूर्ण और असंतुलित मान रही है। आगामी 30 नवंबर से दो दिसंबर तक डब्ल्यूटीओ की जेनेवा में होने वाली शीर्ष बैठक में इस पर चर्चा की जाएगी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। मत्स्य पालन (फिशरीज) पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का प्रस्तावित मसौदा भारत को स्वीकार्य नहीं है। देश इसे पक्षपातपूर्ण और असंतुलित मान रहा है। आगामी 30 नवंबर से दो दिसंबर तक डब्ल्यूटीओ की जेनेवा में होने वाली शीर्ष बैठक में फिशरीज सब्सिडी समझौते को लेकर सभी देशों के बीच चर्चा की जाएगी। भारत का मानना है कि प्रस्तावित मसौदा पूरी तरह से विकसित देशों के पक्ष में है और इसे मानने से उसे नुकसान होगा।
सूत्रों के मुताबिक फिशरीज समझौता मामले में 80 से अधिक देश भारत के साथ हैं। भारत किसी भी कीमत पर लगभग तीन करोड़ मछुआरों के हितों से समझौता नहीं कर सकता है। मसौदे के मुताबिक फिशरीज समझौते के तहत सभी देश इस सेक्टर को सब्सिडी बंद कर देंगे। कोई भी देश एक सीमा से अधिक मछली नहीं पकड़ेगा।
सूत्रों के मुताबिक भारत का कहना है कि चीन, दक्षिण कोरिया और जापान समेत अमेरिका और यूरोप के संपन्न देश वर्षो से अपने मछुआरों भारी सब्सिडी देते आ रहे हैं। ये पड़ोसी देशों की जल सीमा में प्रवेश कर अवैध रूप से मछली पकड़ने का काम भी वर्षो से कर रहे हैं। इनमें से कई देशों ने तो कई छोटे-छोटे देशों के समुद्री इलाकों में भी जाकर मछली पकड़ने के लिए बेहद मामूली रकम देकर उनसे समझौता कर रखा है।
भारत अपने मछुआरों को सालाना सिर्फ 1,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देता है, जिसमें से 700 करोड़ रुपये की सब्सिडी अकेले डीजल के मद की होती है।
दूसरी तरफचीन सालाना 7.2 अरब डालर यानी 50,000 करोड़ रुपये से अधिक, अमेरिका व जापान 3.4 अरब डालर प्रत्येक, दक्षिण कोरिया 3.1 अरब डालर तो यूरोपीय संघ 3.8 अरब डालर की सब्सिडी अपने मछुआरों को देता है। सूत्रों के अनुसार भारत का कहना है कि इन देशों को अगले 25 वर्षो के लिए अपनी सब्सिडी बंद करनी चाहिए। भारत व अन्य विकासशील देश अपना मछली उत्पादन बढ़ाना चाहते हैं। डब्ल्यूटीओ के ताजा मसौदे से ऐसा संभव नहीं हो पाएगा।