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अतिरेक दिखाती गलत तस्वीर, स्वास्थ्य अमले के साथ प्रशासन की आलोचना का कोई औचित्य नहीं

कुछ लोग अनुमान जता रहे हैं कि कोरोना से मौतों की असल संख्या सरकारी आंकड़ों से 10 गुना से भी ज्यादा हो सकती है। असल में ऐसा नहीं है। ऐसे अनुमान गलत हैं। स्वास्थ्य अमले के साथ प्रशासन की आलोचना का बहुत औचित्य नहीं है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 25 May 2021 08:06 AM (IST)Updated: Tue, 25 May 2021 08:07 AM (IST)
भविष्य में ऐसे संकट से ज्यादा बेहतर तरीके से निपटा जा सके।

प्रो. मणींद्र अग्रवाल। सक्रामकता के कारण दूसरी लहर ने समाज के सामने कई चुनौतियां खड़ी की हैं। कई लोगों ने अपनों को खोया है। अस्पतालों में भीड़ है और इतने मरीजों को संभालने की क्षमता नहीं है। इन सब खबरों और घटनाक्रमों ने भारत में हालात को लेकर एक भयावह तस्वीर बनाई है। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि जान गंवाने वालों की असल संख्या सरकारी आंकड़ों से 10 गुना या इससे भी ज्यादा हो सकती है। मौजूदा हालात के लिए सरकार से लेकर प्रशासन और डाक्टर तक, सभी को दोषी ठहराया जा रहा है। हालांकि इस समय परिस्थिति को सही नजरिये से देखने की जरूरत है, जिससे सही निष्कर्ष निकाल सके।

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सबसे पहले बात करते हैं कोरोना से जान गंवाने वालों की संख्या के बारे में। यह सही है कि कुछ समय और कुछ जगहों पर मौत के आंकड़ों की अंडर रिपोर्टिंग हुई। लेकिन ऐसा बहुत सीमित रहा। इसलिए दूसरी लहर के दौरान मौत के आंकड़ों को संपूर्णता में देखें तो सरकारी आंकड़ों और वास्तविक आंकड़ों में ऐसा कोई नाटकीय अंतर नहीं है। असल आंकड़े दोगुने से कम ही होंगे। अब बात करते हैं अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर के ध्वस्त होने की। वैसे तो हमारा हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर बहुत अच्छा नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि इस तरह की महामारी सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था को भी ध्वस्त कर सकती है।

पिछले साल और इस साल की शुरुआत में दुनियाभर में यह देखने को मिला है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और इटली जैसे कुछ सबसे उन्नत देशों में अस्पतालों में क्षमता से ज्यादा मरीज आए और कई लोग पर्याप्त इलाज नहीं मिल पाने के कारण जान गंवा बैठे। अगर कोरोना संक्रमण से मृत्यु दर की बात करें तो भारत में यह दर 1.1 फीसद है, जबकि अमेरिका में 1.8 फीसद, ब्रिटेन में 2.8 फीसद, फ्रांस में 1.9 फीसद और इटली में तीन फीसद मृत्यु दर रही। अगर यह भी मान लें कि असल मौतों का आंकड़ा सरकारी आंकड़ों से दोगुना है, तब भी यह अमेरिका और फ्रांस के आसपास है और ब्रिटेन व इटली से काफी कम है।

अब आते हैं सरकार, प्रशासन और डाक्टरों की आलोचना के मुद्दे पर। ऐसा करते हुए हम भूल जाते हैं कि दूसरी लहर बहुत तेजी से फैली, क्योंकि हम लोगों ने यानी जनता ने लापरवाही की और कोरोना से सुरक्षा को लेकर तय प्रोटोकाल का पालन करना छोड़ दिया। इससे नए म्यूटेंट वायरस को तेजी से बढ़ने का मौका मिला। यह इतनी तेजी से फैला कि कंटेनमेंट की कोई भी रणनीति काम नहीं आ सकी। इसके साथ-साथ बहुत से लोगों में टीकाकरण को लेकर भी हिचकिचाहट है। इस वजह से कई ऐसे वरिष्ठ नागरिकों की जान गई, जिन्हें टीकाकरण की मदद से बचाया जा सकता था। इसमें ध्यान देने की बात है कि शुरुआत में टीके की उपलब्धता कोई समस्या नहीं थी। इससे हमें सबसे अहम पाठ सीखने को यब मिला कि स्थिति सामान्य दिखने पर भी सुरक्षा के उपाय करते रहें और जितनी जल्दी हो सके, टीका लगवाएं। टीके पर नजर रखने और जेनेटिक अध्ययन के जरिये म्युटेशन का पता लगाते रहने की भी जरूरत है, जिससे समय रहते चेत सकें। इन सबके साथ-साथ हमें स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर करने पर निवेश करना होगा, जिससे भविष्य में ऐसे संकट से ज्यादा बेहतर तरीके से निपटा जा सके।

आइआइटी, कानपुर (कोरोना की लहर का आकलन कर रहे दल सूत्र के सदस्य)


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