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World Wildlife Day 2021: जैव विविधता पर मंडरा रहा खतरा, लुप्त होने के कगार पर कई प्रजातियां

पर्यावरण विज्ञानियों के मुताबिक प्रदूषण तथा स्मॉग भरे वातावरण में कीड़े-मकौड़े सुस्त पड़ जाते हैं। प्रदूषण का जहर अब मधुमक्खियों तथा सिल्क वर्म जैसे जीवों के शरीर में भी पहुंच रहा है। रंग-बिरंगी तितलियों को भी इससे काफी नुकसान हो रहा है।

By Manish PandeyEdited By: Published: Wed, 03 Mar 2021 09:30 AM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 09:30 AM (IST)
World Wildlife Day 2021: जैव विविधता पर मंडरा रहा खतरा, लुप्त होने के कगार पर कई प्रजातियां
विकास के इस दौर में पर्यावरण तथा अन्य जीव-जंतुओं के लिए खतरा उत्पन्न न होने दें।

नई दिल्ली, योगेश कुमार गोयल। जैव विविधता की समृद्धि ही धरती को रहने तथा जीवनयापन के योग्य बनाती है, किंतु विडंबना है कि निरंतर बढ़ता प्रदूषण रूपी राक्षस वातावरण पर इतना खतरनाक प्रभाव डाल रहा है कि जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर, 2013 को अपने 68वें सत्र में तीन मार्च के दिन को विश्व वन्यजीव दिवस के रूप में अपनाए जाने की घोषणा की।

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अगर देश में प्रमुख रूप से लुप्त होती कुछेक जीव-जंतुओं की प्रजातियों की बात करें तो कश्मीर में पाए जाने वाले हांगलू की संख्या सिर्फ दो सौ के आसपास रह गई है, जिनमें से करीब 110 दाचीगाम नेशनल पार्क में हैं। इसी प्रकार आमतौर पर दलदली क्षेत्रों में पाई जाने वाली बारहसिंगा हिरण की प्रजाति अब मध्य भारत के कुछ वनों तक ही सीमित रह गई है। वर्ष 1987 के बाद से मालाबार गंधबिलाव नहीं देखा गया है। हालांकि माना जाता है कि इनकी संख्या पश्चिमी घाट में फिलहाल दो सौ के करीब बची है। दक्षिण अंडमान के माउंट हैरियट में पाया जाने वाला दुनिया का सबसे छोटा स्तनपायी सफेद दांत वाला छछूंदर लुप्त होने के कगार पर है। एशियाई शेर भी गुजरात के गिर वनों तक ही सीमित हैं। देश में हर साल बड़ी संख्या में बाघ मर रहे हैं, हाथी कई बार ट्रेनों से टकराकर मौत के मुंह में समा रहे हैं। इनमें से कइयों को वन्य तस्कर मार डालते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) के मुताबिक भारत में पौधों की करीब 45 हजार प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भी 1336 प्रजातियों पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसी प्रकार फूलों की पाई जाने वाली 15 हजार प्रजातियों में से डेढ़ हजार प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं।

पर्यावरण विज्ञानियों के मुताबिक प्रदूषण तथा स्मॉग भरे वातावरण में कीड़े-मकौड़े सुस्त पड़ जाते हैं। प्रदूषण का जहर अब मधुमक्खियों तथा सिल्क वर्म जैसे जीवों के शरीर में भी पहुंच रहा है। रंग-बिरंगी तितलियों को भी इससे काफी नुकसान हो रहा है। यही नहीं, अत्यधिक प्रदूषित स्थानों पर तो पेड़-पौधों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हवा में सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन तथा ओजोन की अधिक मात्र के चलते पेड़-पौधों की पत्तियां भी जल्दी टूट जाती हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि अगर इस ओर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में स्थितियां इतनी खतरनाक हो जाएंगी कि धरती से पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी। माना कि धरती पर मानव की बढ़ती जरूरतों और सुविधाओं की पूíत के लिए विकास आवश्यक है, पर यह हमें ही तय करना होगा कि विकास के इस दौर में पर्यावरण तथा जीव-जंतुओं के लिए खतरा उत्पन्न न हो।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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