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World Toilet Day: सोच बदलिए, शौचालय चलिए; जानिए- दुनिया में क्या है भारत की स्थिति

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया भर में खुले में शौच करने वालों की संख्या करीब 89.2 करोड़ है। इसमें आधी हिस्सेदारी भारत से है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 09:44 AM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 10:01 AM (IST)
World Toilet Day: सोच बदलिए, शौचालय चलिए; जानिए- दुनिया में क्या है भारत की स्थिति
World Toilet Day: सोच बदलिए, शौचालय चलिए; जानिए- दुनिया में क्या है भारत की स्थिति

नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर दो अहम बातें कही थीं। पहली यह कि स्वतंत्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण स्वच्छता है और हर आदमी को अपना खुद का सफाईकर्मी होना चाहिए। लेकिन लगता है कि हम उनकी कही इन बातों को भुला बैठे हैं। तभी तो दुनिया को शौचालय दिवस मनाना पड़ रहा है ताकि लोग खुले में शौच न करें। शौचालय का इस्तेमाल करें। भारत सहित दुनिया के कई देशों में तेजी से शौचालय बनाए भी जा रहे हैं। विडंबना यह है कि ग्रामीण इलाकों में जिनके पास यह सुविधा उपलब्ध है, वे भी इसका इस्तेमाल करने से परहेज करते है।

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ऐसे हुई शुरुआत
विश्व शौचालय संगठन ने 2001 में इस दिवस की शुरुआत की। 12 साल बाद 2013 में दुनिया में साफ-सफाई और स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन को संयुक्त राष्ट्र के आधिकारिक दिवसों की सूची में शामिल किया। इस बार इस दिवस की थीम है, ‘ह्वेन नेचर काल्स’।

लक्ष्य से दूर
टिकाऊ विकास लक्ष्य 6 (एसडीजी-6) के तहत संयुक्त राष्ट्र ने लक्ष्य रखा था कि 2030 तक दुनिया के प्रत्येक वासी को साफ-सफाई और पानी की उपलब्धता और टिकाऊ प्रबंधन हासिल होगा। साथ ही 2030 तक खुले में शौच पूरी दुनिया से खत्म हो जाएगा। हालांकि इस दिशा में किए जा रहे प्रयास कुछ और ही तस्वीर दिखा रहे हैं। स्पष्ट है कि दुनिया के लिए यह लक्ष्य मुश्किल होता जा रहा है।

खतरनाक दुष्प्रभाव
दुनिया में एक बड़ी आबादी के खुले में शौच करने का मतलब है कि व्यापक पैमाने पर मानव मल का शोधन नहीं हो पा रहा है। हम अपने पर्यावरण को खुला सीवर बनाते जा रहे हैं। लिहाजा खुले में शौच से जनस्वास्थ्य, रहने और काम करने की दशाओं, पोषण, शिक्षा और आर्थिक उत्पादकता पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। लोग बीमारियों से ज्यादा ग्रस्त हो रहे हैं।

साफ-सफाई ईश्वर भक्ति के बराबर
सरकार की मंशा महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन की तर्ज पर स्वच्छाग्रह को देशभर में चलाने की है। दरअसल गंदगी मुक्त भारत-स्वच्छ भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक महत्वपूर्ण प्रोग्राम है और वह मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में स्वच्छता के विभिन्न पहलुओं से लोगों को अवगत कराते रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि साफ-सफाई ईश्वर भक्ति के बराबर है। उन्होंने स्वच्छ भारत का सपना देखा था और वे चाहते थे कि भारत के सभी नागरिक स्वच्छ भारत के निर्माण में अपना कीमती योगदान दें। स्वच्छता के इसी संदेश को देश दुनिया तक पहुंचाने के लिए ‘सत्याग्रह से स्वच्छाग्रह’ मुहिम की शुरुआत की गई।

गंदगी से होता है करोड़ों का नुकसान
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में पांच साल से कम आयु के 1,17,000 बच्चे डायरिया के कारण मर गए थे। डायरिया से उनके शरीर में पोषक तत्वों को संपूर्ण जिंदगी के लिए धारण करने की क्षमता को नुकसान पहुंचता है। यूनिसेफ इंडिया वॉश चीफ निकोलस असवर्ट ने यूनिसेफ के सर्वे के हवाले से बताया कि गंदगी होने व शौचालय न होने के कारण प्रति घर दवाओं पर सालाना 50,000 रुपये खर्च करता है। इसमें समय की कीमत, मेडिकल पर होने वाले खर्च आदि शामिल हैं। यह सर्वे दस हजार भारतीय परिवारों पर कराया गया था और अध्ययन यह भी बताता है कि सैनिटेशन में सुधार पर निवेश किए गए एक रुपये से 4.3 रुपये की बचत होती है।

कहां खड़े हैं हम
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया भर में खुले में शौच करने वालों की संख्या करीब 89.2 करोड़ है। इसमें आधी हिस्सेदारी भारत से है। हालांकि इस समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया है जिसके तहत ग्रामीण इलाकों में वह अब तक करीब 9 करोड़ शौचालय बना चुकी है। सरकार 2019 तक खुले में शौच को पूरी तरह खत्म करने के लक्ष्य से आगे बढ़ रही है। 


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