World Kidney Day 2019 : किडनी की बीमारी से चाहते है बचाव तो इन बातों पर करें अमल
शरीर में दो किडनी होती हैं। जब किडनी खराब हो जाती है तो इसके इलाज के दो ही विकल्प होते है। पहला ताउम्र डायलिसिस पर रहना या फिर किडनी ट्रांसप्लांट कराना।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। किडनी के सही रूप से कार्य न करने की स्थिति को किडनी फेल्यर कहा जाता है। किडनी फेल्यर का एक प्रमुख कारण मधुमेह (डायबिटीज) है। डायबिटीज में ब्लड शुगर के काफी समय तक अनियंत्रित रहने से किडनी की कार्यप्रणाली के खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा हाई ब्लड प्रेशर, गुर्दे की छलनियों में संक्रमण, पथरी का बनना और दर्द निवारक दवाओं का अत्यधिक सेवन करने से भी कालांतर में किडनी फेल्यर की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
इलाज के दो विकल्प
शरीर में दो किडनी होती हैं। जब किडनी खराब हो जाती है, तो इसके इलाज के दो ही विकल्प होते है। पहला, ताउम्र डायलिसिस पर रहना या फिर किडनी ट्रांसप्लांट कराना।
बेहतर है बचाव
कुछ बातों पर अमल कर किडनी की बीमारी से बचाव कर सकते हैं। जैसे...
- जो लोग डायबिटीज से ग्रस्त हैं और जिनका ब्लड शुगर ज्यादा है, तो उन्हें अपनी ब्लड शुगर को नियंत्रित करना चाहिए। ब्लड शुगर नियंत्रण की स्थिति को जानने के लिए डॉक्टर के परामर्श से एचबीए1सी नामक टेस्ट कराएं। यह टेस्ट पिछले तीन महीनों के ब्लड शुगर कंट्रोल की स्थिति को बताता है।
- ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखें। यानी 125- 130/75-80 के आस-पास रहे।
- किडनी को नुकसान पहुंचाने वाली दवाओं से बचें। जैसे दर्द निवारक दवाएं (पेनकिलर्स)।
- स्व-चिकित्सा (सेल्फ मेडिकेशन) न करें।
- डॉक्टर की सलाह से ही दवाएं लें।
- अगर किडनी से संबंधित कोई तकलीफ हो जाती है, तो शीघ्र ही नेफ्रोलॉजिस्ट से परामर्श लें।
जांचें
अनेक मामलों में किडनी की बीमारी से ग्रस्त लोगों में उपर्युक्त लक्षण नहीं पाए जाते हैं। ऐसी अवस्था में कुछ जांचों से बीमारी का पता चल सकता है। जैसे...
- खून में यूरिया और क्रिएटिनिन के स्तर का बढ़ना।
- डायबिटीज के रोगियों की पेशाब की जांच भी करायी जाती है।
- किडनी की कार्य करने की क्षमता में कमी आने से संबंधित जांच कराना।
- किडनी का अल्ट्रासाउंड । इस जांच से पता चलता है कि किडनी का साइज छोटा तो नहीं है और पेशाब में रुकावट का कारण क्या है।
इन विकल्पों का करें चयन
जब किडनी पूरी तरह खराब हो जाती है, तो इन विकल्पों में से एक का चयन नेफ्रोलॉजिस्ट के परामर्श से करें...
डायलिसिस: जिसमें हफ्ते में आवश्यकता के अनुसार दो बार मशीन से खून साफ किया जाता है।
किडनी ट्रांसप्लांट: इसमें एक नई किडनी (जो किसी दानदाता या डोनर के द्वारा दी जाती है) को मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसके बाद डायलिसिस की जरूरत नहीं पड़ती।
वर्तमान दौर में किडनी ट्रांसप्लांट एक अच्छा इलाज है, जिसके बाद मरीज आम आदमी की तरह जीवन व्यतीत कर सकता है।
प्रारंभिक लक्षण
- शरीर में सूजन का होना।
- पेशाब की मात्रा में कमी होना।
- प्रोटीन या खून का पेशाब में आना।
- बार-बार पेशाब आना।
- पेशाब में जलन होना।
- भूख की कमी होना और जी मिचलाना।
- शरीर में रक्त की कमी होना।
- ब्लड प्रेशर का बढ़ा होना।
किडनी या गुर्दा शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। इनमें खराबी आने से जिंदगी जीना मुश्किल हो जाता है, लेकिन मेडिकल साइंस में हुई प्रगति के कारण अब किडनी फेल्यर के मरीज भी सामान्य जिंदगी जी सकते हैं...
[डॉ.डी.के.अग्रवाल, सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट
अपोलो हॉस्पिटल, नई दिल्ली]