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सामाजिक समरसता और सहकारिता का आदर्श है कल से 75 दिन तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा

कोरोना काल में बस्तर दशहरा के ऑनलाइन दर्शन का प्रबंध किया गया है। ऑकडाउन के चलते सैलानियों से अनुरोध किया गया है कि वे बस्तर दशहरा महोत्सव में शामिल न होकर वैश्विक महामारी कोरोना को समाप्त करने में मदद करें।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 15 Oct 2020 10:13 PM (IST)Updated: Thu, 15 Oct 2020 10:13 PM (IST)
सामाजिक समरसता और सहकारिता का आदर्श है कल से 75 दिन तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का मुख्य उत्सव शुक्रवार को शुरू हो जाएगा।

जगदलपुर, राज्य ब्यूरो। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का मुख्य उत्सव शुक्रवार को शुरू हो जाएगा। मिरगान जाति की कुंवारी कन्या पितृमोक्ष अमावस्या पर काछनगादी पूजा विधान के तहत बेल के कांटों से तैयार झूले पर बैठकर रथ परिचालन व पर्व की अनुमति देंगी। इसके बाद शनिवार से आमाबाल गांव के हलबा समुदाय से एक युवक नौ दिनों तक भूमिगत निराहार योग साधना में बैठकर दशहरा पर्व की निर्विघ्न सफलता व लोक कल्याण की कामना करेंगे। इसे जोगी बिठाई के नाम से जाना जाता है।

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बस्तर दशहरा में रावण नहीं मारा जाता, देवी-देवताओं की 13 दिनों तक पूजा-अर्चना होती है

चर्चा योग्य है कि बस्तर दशहरा का राम-रावण युद्घ से कोई सरोकार नहीं है। इसमें रावण नहीं मारा जाता अपितु बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी सहित अनेक देवी-देवताओं की 13 दिनों तक पूजा-अर्चना होती है।

75 दिन तक चलने वाले दशहरा की शुरुआत पाटजात्रा के साथ होती है

75 दिन तक चलने वाले दशहरा की शुरुआत पाटजात्रा के साथ होती है। इसके लिए परंपरानुसार बिलोरी जंगल से साल लकड़ी का गोला मंगवाया जाता है। काष्ठ पूजा के बाद इसमें सात मांगुर मछलियों की बलि देकर लाई-चना अर्पित किया जाता है।

बस्तर दशहरा दुनिया में सबसे लंबे अवधि तक मनाया जाने वाला पर्व है

बस्तर दशहरा दुनिया में सबसे लंबे अवधि तक मनाया जाने वाला पर्व है। इसे सामाजिक समरसता और सहकारिता का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है। बस्तर दशहरा हरेली अमावस्या से शुरू होकर कुआर (आश्विन) माह तक चलता है। इस दौरान पाटजात्रा, काछन गादी, जोगी बिठाई, मावली परघाव, भीतर रैनी, बाहर रैनी तथा मुरिया दरबार मुख्य रस्में निभाई जाती हैं।

बस्तर दशहरा पर्व 610 से अधिक वर्षों से परंपरानुसार मनाया जा रहा है

माना जाता है कि यह पर्व 610 से अधिक वर्षों से परंपरानुसार मनाया जा रहा है। चालुक्य नरेश पुरुुषोत्तम देव के शासनकाल में वर्ष 1408 में शुरू हुई रथ निर्माण परंपरा में प्रत्येक बस्तरिया का मांईजी के प्रति अगाध प्रेम और आस्था पर्व में झलकता है। रथ निर्माण के बाद पितृमोक्ष अमावस्या के दिन काछनगादी पूजा होती है। पर्यटकों से शामिल न होने की अपील बस्तर में रियासतकालीन 22 मंदिरों में दशहरा में विशेष पूजा होती है। इसे देखने हर वर्ष देश विदेश के लोग आते हैं।

कोरोना काल में बस्तर दशहरा के ऑनलाइन दर्शन के प्रबंध किए गए हैं

इसबार ऑनलाइन दर्शन का प्रबंध किया गया है। ऑकडाउन के चलते सैलानियों से अनुरोध किया गया है कि वे बस्तर दशहरा महोत्सव में शामिल न होकर वैश्विक महामारी कोरोना को समाप्त करने में मदद करें।


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