वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम ने भारत की आर्थिक प्रगति की राह में गिनाई पांच चुनौतियां, कहा- राज्यों के बीच तनाव विकास के लिए चुनौती
वर्ष 2022 में दुनिया के प्रमुख देशों में सबसे तेजी से आर्थिक विकास दर हासिल करने की तरफ अग्रसर भारत के लिए आने वाले वर्षों में कुछ अहम चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। यह चुनौतियां बाहरी भी होंगी लेकिन आंतरिक स्तर पर पैदा होने वाली चुनौतियां भी कम नहीं है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: वर्ष 2022 में दुनिया के प्रमुख देशों में सबसे तेजी से आर्थिक विकास दर हासिल करने की तरफ अग्रसर भारत के लिए आने वाले वर्षों में कुछ अहम चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। यह चुनौतियां बाहरी भी होंगी, लेकिन आंतरिक स्तर पर पैदा होने वाली चुनौतियां भी कम नहीं है। यह बात कोरोना काल के बाद दुनिया के सभी देशों के समक्ष किस तरह की चुनौतियां होंगी, इस पर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) की तरफ से जारी एक विस्तृत रिपोर्ट में कही गई है।
‘सामाजिक समस्याएं आर्थिक विकास में बाधा’
रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में पांच अहम चुनौतियों का जिक्र है। हालांकि, इस आकलन के आधार के बारे में कुछ नहीं बताया गया है। यह भी ध्यान रहे कि डब्लूईएफ की तरफ से कुछ हफ्ते पहले दिसंबर, 2021 की रिपोर्ट में भारत की आर्थिक प्रगति को लेकर काफी उम्मीद जारी की गई थी। डब्लूईएफ की इस रिपोर्ट में पहली बार भारत की सामाजिक समस्याओं को इसके आर्थिक विकास की राह में बड़ी बाधा के तौर पर चिह्नित किया गया है। हालांकि इसके पीछे की वजहों के बारे में नहीं बताया गया है कि किस आधार पर एजेंसी ने यह निष्कर्ष निकाला है।
रिपोर्ट में पांच अहम चुनौतियों का जिक्र
रिपोर्ट में पहले स्थान पर अंतरराज्यीय संबंधों के बीच तनाव को रखा गया है। दूसरे स्थान पर विकसित देशों में कर्ज चुकाने की दिक्कत को रखा गया है। जबकि युवाओं के बीच बढ़ती निराशा को तीसरे स्थान की चुनौती के तौर पर बताया गया है। कर्ज बोझ की बात पहले भी कुछ एजेंसियों ने भारत के संदर्भ में की है। कोरोना काल में भारत सरकार ने राजस्व संग्रह की स्थिति बिगड़ने के बाद बड़े पैमाने पर देशी-विदेशी एजेंसियों से कर्ज लिया है। हालांकि, अभी भी भारत के कुल जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुपात दूसरे देशों के मुकाबले कम है। इसी तरह से युवाओं के बीच बढ़ती निराशा के पीछे के तर्क को भी नहीं बताया गया है। चौथी चुनौती के तौर पर यह आशंका जताई गई है कि तकनीकी गवर्नेंस असफल हुआ तो परेशानी होगी। पांचवें स्थान पर डिजिटल असमानता यानी समाज के एक वर्ग का डिजिटल क्रांति से दूर होना। हालांकि, पिछले तीन-चार वर्षों में जहां डिजिटल उपलब्धता बढ़ी है वहीं, भारत मेंनेट के जरिए गांव-गांव को जोड़ने की पहल भी तेज हो गई है।
पर्यावरण कई देशों के लिए चुनौती
कई देशों के लिए पर्यावरण की चुनौतियों को उनकी प्रगति की राह में एक बड़ी बाधा के तौर पर रखा गया है, लेकिन भारत के लिए इस तरह की बात नहीं कही गई है। पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से ग्लासगो सम्मेलन में वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम करने की घोषणा की इसमें काफी तारीफ की गई है।